भारतीय क्रिकेट टीम में कई ऐसे बल्लेबाज़ आए हैं जो मैच जिताउ पारी खेलने में माहिर थे। कुछ खिलाड़ियों ने भारत की कामयाबी में अहम योगदान दिया है और क्रिकेट की दुनिया में काफ़ी नाम कमाया है। हांलाकि कई भारतीय खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिन्होंने एक मैच में अपने प्रदर्शन से भारत को शानदार जीत दिलाई है, लेकिन वक़्त बीतने के साथ उनकी चमक फीकी हो गई। इन खिलाड़ियों का अंतरराष्ट्रीय करियर ज़्यादा लंबा नहीं चल पाया और लगातार अच्छा खेल न दिखाने की वजह से उन्हें टीम से बाहर भी होना पड़ा।
हम यहां उन 5 भारतीय क्रिकेटर्स के बारे में बता रहें हैं जो सिर्फ़ एक मैच के लिए याद किए जाते हैं।
#5 दिनेश मोंगिया
बाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ ने साल 2001 में वनडे में डेब्यू किया था। घरेलू सर्किट में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने की वजह से उन्हें टीम इंडिया के लिए चुना गया था। उनके करियर की शुरुआत थोड़ी धीमी रही। साल 2002 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ उन्होंने लगातार 2 वनडे मैच में 71 और 49 रन की पारी खेली।
वो टीम इंडिया के अहम खिलाड़ी बन चुके थे। इसके बाद ज़िम्बाब्वे टीम भारत दौरे पर आई, उन्हें भारत के ख़िलाफ़ 5 वनडे मैचों की सीरीज़ खेलनी थी। 4 वनडे मैच के बाद सीरीज़ 2-2 की बराबरी पर आ गया था। भारत को आख़िरी मैच हर हाल में जीतना था।
सीरीज़ के 5वें और आख़िरी मैच में दिनेश मोंगिया ने ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ 159 रन की पारी खेली और टीम इंडिया को सीरीज़ जिता दी। साल 2003 के आईसीसी वर्ल्ड कप के लिए उन्हें टीम इंडिया में शामिल किया गया, लेकिन वो अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे, कुछ साल बाद वो टीम इंडिया से बाहर हो गए।
#4 ऋषिकेष कनितकर
कनितकर उन खिलाड़ियों की फ़ेहरिस्त में शामिल हैं जिनका प्रथम श्रेणी में शानदार रिकॉर्ड रहा है लेकिन वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतने कामयाब नहीं हो पाए। उनको सिर्फ़ इसलिए याद किया जाता है क्योंकि साल 1998 के इंडिपेंडेंस कप के फ़ाइनल में सक़लैन मुश्ताक़ की गेंद पर चौका लगाकर टीम इंडिया को जीत दिलाई थी।
टीम इंडिया को जीत के लिए 48 ओवर में 314 रन का लक्ष्य मिला था। सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और रॉबिन सिंह ने टीम के रन संख्या में काफ़ी योगदान दिया। लेकिन आख़िरी ओवर में मुक़ाबला कांटे का हो गया। तभी कनितकर ने शॉट लगाकर टीम इंडिया के लिए जीत की इबारत लिख दी। कनितकर ने टीम इंडिया के लिए 34 वनडे मैच खेले लेकिन 17 की औसत से महज़ 339 रन ही बना सके, इसके अलावा वो 17 वकेट ही हासिल कर पाए।
#3 अजय रात्रा
अजय रात्रा टीम इंडिया में तब आए जब बीसीसीआई विकेटकीपर को लेकर प्रयोग कर रही थी। लेकिन बाक़ी विकेटकीपर की तरह वो भी ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाए। हांलाकि स्टंप के पीछे वो कमाल दिखा रहे थे, लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी में वो बात नहीं दिख रही थी। साल 2002 में उन्होंने एंटीगा के मैदान पर वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ टेस्ट मैच में 115 रन की पारी खेली और क्रिकेट इतिहास में शतक लगाने वाले सबसे युवा विकेटकीपर बन गए। लेकिन अगले 9 टेस्ट मैच में वो 48 रन ही बना सके, जल्द ही पार्थिव पटेल ने उनकी जगह ले ली।
#2 जोगिंदर शर्मा
जोगिंदर शर्मा का नाम लेते ही साल 2007 का आईसीसी वर्ल्ड टी-20 का फ़ाइनल मैच याद आ जाता है जब उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एतिहासिक जीत दिलाई थी। पाकिस्तान को आख़िरी ओवर में जीत के लिए 13 रन की ज़रूरत थी। कप्तान धोनी ने जोगिंदर शर्मा को गेंदबाज़ी की ज़िम्मेदारी सौंपी। पाकिस्तान के मिस्बा-उल-हक़ ने ओवर की दूसरी गेंद पर छक्का लगा दिया, लेकिन अगली ही गेंद पर उन्हें श्रीशांत के हाथों कैच करा दिया और टीम इंडिया को ख़िताबी जीत हासिल हुई। शर्मा आज हरियाणा पुलिस में डीएसपी हैं।
#1 स्टुअर्ट बिन्नी
सटुअर्ट बिन्नी टीम इंडिया के महान क्रिकेटर रॉजर बिन्नी के बेटे हैं लेकिन उन्होंने अपने पिता की जितनी कामयाबी हासिल नहीं की। उन्होंने बांग्लादेश के ख़िलाफ़ शानदार प्रदर्शन किया था। सीरीज़ के दूसरे मैच में टीम इंडिया 105 रन पर ऑल आउट हो गई थी। इसके जवाब में बांग्लादेश की टीम 2 विकेट पर 43 रन बना चुकी थी। तभी स्टुअर्ट बिन्नी ने महज 4 रन देकर बांग्लादेश के 6 खिलाड़ियों को आउट कर दिया और टीम इंडिया को यादगार जीत दिला दी। हांलाकि इस मैच के बाद वो अपने बल्ले और गेंद से छाप छोड़ने में नाकाम रहे। उन्हें साल 2015 के आईसीसी वर्ल्ड कप के लिए टीम इंडिया में चुना गया। जल्द ही वो टीम से बाहर भी हो गए। वो आज भी कर्नाटक के लिए घरेलू क्रिकेट खेल रहे हैं और शानदार प्रदर्शन भी कर रहे हैं। अब उनकी टीम इंडिया में वापसी की उम्मीदें न के बराबर है।
लेखक- राजदीप पुरी
अनुवादक- शारिक़ुल होदा