क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। इस खेल में यह जरूरी नहीं है कि आप जितना बोयेंगे उतना ही आप काटेंगे। कुछ प्रतिभाशाली क्रिकेटर ऐसे ही होते हैं जिनके अंदर प्रतिभाएं तो अकूत भरी होती हैं पर वह अपने इस अकूत संपत्ति का इस्तेमाल अपने करियर में नहीं कर पाते हैं। उनके पास क्रिकेट खेलने के लिए जरूरी निरंतरता, टेंपरामेंट और कड़ी मेहनत करने की क्षमता तो होती है पर वह आश्चर्यजनक और निराशाजनक रूप से सफल नहीं हो पाते हैं। तो आज यहां कुछ ऐसे ही क्रिकेटरों पर एक नजर डालते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सकें।
#5 विनोद कांबली
विनोद कांबली एक बेहद प्रतिभाशाली बल्लेबाज थे जो अपने आकर्षक स्ट्रोक और मैदान पर अपनी आक्रामकता के लिए जाने जाते थे। कांबली ने अपने पहले सात टेस्ट मैचों में ही दो दोहरे शतक और दो शतक के साथ अपने धमाकेदार करियर की शुरूआत कर ली थी। अपनी आक्रमकता और निडर अप्रोच के साथ कांबली ने घोषणा कर दी थी कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को जल्द ही एक नया सितारा मिलने वाला है। इससे पहले कांबली ने पहले गेंद पर ही छक्का लगाकर अपने रणजी ट्रॉफी करियर की भी शानदार शुरूआत की थी। वहीं वनडे क्रिकेट में भी वह 1994 में शारजाह में ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज शेन वॉर्न पर एक ओवर में 22 रन बना चुके थे। वह 1000 टेस्ट रनों तक पहुंचने वाले सबसे तेज भारतीय थे और उन्होंने सिर्फ 14 पारियों में ही इस मील के पत्थर को पा लिया था। लेकिन दुर्भाग्य से इसके बाद कांबली का अंतरराष्ट्रीय करियर लगातार ढलने लगा और चयनकर्ता उन्हें चयन के लिए अयोग्य माना लिए। उन्होंने 23 साल की उम्र में अपना अंतिम टेस्ट मैच खेला। उनका टेस्ट करियर 54.20 की शानदार औसत के साथ 1084 रन पर खत्म हुआ। कांबली को अब एकदिवसीय क्रिकेट का स्पेशलिस्ट बल्लेबाज माने जाने लगा। यही कारण है कि वह 100 से अधिक एकदिवसीय मैच खेल सकें। 1996 के बाद से कांबली के एकदिवसीय प्रदर्शन में भी गिरावट आने लगी और उन्हें एकदिवसीय टीम से भी जल्द ही हटा लिया गया। इसके पहले तक वह टीम में नियमित मध्यक्रम के बल्लेबाज थे। हालांकि कांबली को बाद में वापसी के थोड़े मौके मिले लेकिन वह इसका फायदा नहीं उठा सके और दबाव के आगे बिखर गए। कांबली का एकदिवसीय करियर 2000 में समाप्त हुआ। उन्होंने तब तक एकदिवसीय क्रिकेट में 32.59 की औसत से 2477 रन बनाए थे। कई जानकारों का मानना है कि क्रिकेट के मैदान के अंदर और बाहर कांबली का टेंपरामेंट धीरे-धीरे खराब होता जा रहा था। वह धीरे-धीरे शराब के लत का शिकार हो गए थे और टीम के साथियों के साथ भी उनके संबंध खराब हो चले थे। यहां तक कि उनके बचपन के दोस्त सचिन से भी उनके संबंध खराब होने की खबर आ रही थी। कारण कुछ भी रहा हो पर सच्चाई ये है कि भारतीय क्रिकेट ने एक बेहद प्रतिभाशाली क्रिकेटर खो दिया था।
#4 नारी कांट्रेक्टर
नारी कांट्रेक्टर अपने समय के भारत के सबसे निडर बल्लेबाजों में से एक थे। वह अपने बेपरवाह बल्लेबाजी के कारण लगातार सुर्खियों में रहते थे। उन्होंने अपने रणजी करियर की शुरूआत दोनों पारियों में शतक लगाकर की थी। 1959 में इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में खेलते हुए वह ब्रायन स्टैथम की गेंद पर गंभीर रूप से घायल हो गए। यह चोट इतना गंभीर था कि कांट्रेक्टर की दो पसलियां टूट गई लेकिन कांट्रेक्टर ने अपनी पारी जारी रखी और ग्रीनहाउ के गेंद पर आउट होने से पहले 81 रन बनाए। इसके कुछ साल बाद कांट्रेक्टर ने इंग्लैंड के खिलाफ श्रृंखला जीतने वाली प्रसिद्ध भारतीय टीम का नेतृत्व किया। इसके बाद वह वेस्टइंडीज दौरे के लिए भी कप्तान बनाए गए। इस दौरे में भारत को पहले दो मैचों में हार का सामना करना पड़ा और पूरी टीम वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ अपना छाप छोड़ने के दबाव में बिखर गई।
#3 संदीप पाटिल
मुम्बई के बहुमुखी प्रतिभा के धनी क्रिकेटर संदीप पाटिल मध्यक्रम के एक बल्लेबाज होने के साथ-साथ एक उपयोगी मध्यम गति के गेंदबाज भी थे। पाटिल ने अपने पहले टेस्ट में ही ऑस्ट्रेलिया के डेनिस लिली और लेन पास्को की खतरनाक जोड़ी के खिलाफ 240 गेंदों में 174 रन की धमाकेदार पारी खेली थी। 1982 में इंग्लैंड के ओल्ड ट्रैफर्ड स्टेडियम में भी पाटिल ने महान बॉब विलिस की गेंदों पर लगातार छह चौके लगाए थे। भारत के लिए वह मध्य क्रम के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी थे। 1983 के विश्व कप की जीत के बाद पाटिल ने भारत के लिए कुछ महत्वपूर्ण पारियां खेली लेकिन उनका अनुशासनहीन रवैया उन्हें टीम में लंबे समय तक रहने में मदद नहीं कर सका। इस प्रकार एक प्रतिभाशाली करियर का अंत हो गया। पाटिल के नाम पर सिर्फ 28 टेस्ट और 45 एकदिवसीय मैच ही दर्ज हो पाए।
#2 इरफ़ान पठान
बड़ौदा के इस नीले आंख वाले क्रिकेटर को अक्सर 'स्विंग के सुल्तान' नाम से बुलाया जाता था। यह क्रिकेटर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक तूफान की तरह आया, लेकिन आंधी की तरह उड़ गया। टेस्ट में बल्ले और गेंद दोनों के साथ 32 की औसत वाला यह क्रिकेटर एक समय भारतीय टीम की रीढ़ माना जाता था। वनडे क्रिकेट में भी उनका औसत बल्ले से 23 और गेंद के साथ 29 था। कई लोग यह भी कहते हैं कि इरफान की प्रतिभा उनके इन नंबर्स से भी उपर थी। इरफान ने अंडर -19 और प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपने बाएं हाथ के स्विंग गेंदबाजी के साथ अच्छा प्रदर्शन करते हुए भारतीय क्रिकेट टीम में दस्तक दी। 19 साल की उम्र में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला मैच खेलने वाले पठान अपने डेब्यू मैच में कोई करिश्मा नहीं दिखा सके और सिर्फ 1 ही विकेट ले पाए। लेकिन इसके बाद तो पठान ने धमाका ही कर दिया और पाकिस्तान के खिलाफ हैट्रिक ली। 2004 का साल पठान के लिए सबसे बड़ा रहा क्योंकि इस साल पठान ने अपनी स्विंग गेंदबाजी में अच्छे-अच्छे बल्लेबाजों को परेशान किया और टेस्ट में 32 व वनडे में 47 विकेट लिए। बांग्लादेश के खिलाफ दो टेस्ट में 18 विकेट लेने वाले इस गेंदबाज को आईसीसी ने इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर का इनाम प्रदान किया। चैपल-द्रविड़ की जोड़ी ने पठान को एक बल्लेबाज के रूप में भी तैयार करने की कोशिश की। इसलिए अक्सर उन्हें बल्लेबाजी क्रम में प्रमोट किया जाता था। 2005-06 की टेस्ट सीरीज में पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज में उन्होंने दूसरे टेस्ट में एमएस धोनी के साथ 210 रन की साझेदारी की। इसी सीरीज में पठान ने सलमान बट, यूनिस खान और मोहम्मद यूसुफ को आउट कर हैट्रिक भी लिया था। इससे लोगों ने पठान की तुलना भारतीय लीजेंड कपिल देव से करना शुरू कर दी थी। ऐसा लग रहा था कि कपिल देव के रिटायर होने के बाद से एक बॉलिंग ऑलराउंडर की भारतीय क्रिकेट की तलाश समाप्त हो गई है। लेकिन 2006 के बाद से पठान के फार्म में गिरावट आना शुरू हुआ। इस दौरान उनका आत्मविश्वास भी टूटा। वह बार-बार चोट लगने की वजह से भी परेशान रहें। हालांकि पठान ने एक-दो बार वापसी करने की कोशिश की लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। दुनिया उस 'स्विंग के सुल्तान-इरफान पठान को' फिर कभी नहीं देख सका।
#1 लक्ष्मण शिवरामकृष्णन
लक्ष्मण शिवरामकृष्णन ने सिर्फ 16 वर्ष की उम्र में अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट की शुरुआत की थी और रणजी ट्राफी के क्वार्टर फाइनल में दिल्ली के खिलाफ 28 रन देकर 7 विकेट लिए थे। उन्होंने पश्चिम क्षेत्र के खिलाफ एक मैच में सुनील गावस्कर को आउट कर सुर्खियां बटोरी थी। तमिलनाडु के इस लेग स्पिनर ने 1983 में वेस्टइंडीज के खिलाफ सिर्फ 17 साल की उम्र में अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत की। हालांकि वह इस मैच में एक भी विकेट लेने में नाकाम रहें और फिर 18 महीने के लिए टीम से बाहर हो गए। 18 महीने बाद टीम में वापसी करते हुए शिव ने घरेलू श्रृंखला में इंग्लैंड के खिलाफ तीन बार लगातार छह विकेट लिए। शिव को उनकी फ्लाइट कराने की क्षमता के कारण जाना जाता था और इसी हथियार से उन्होंने इंग्लिश बल्लेबाजों को खूब परेशान किया। एक टेस्ट मैच में 181 रन पर 12 विकेट और पूरी श्रृंखला में 25 विकेट लेकर वह मैन ऑफ द सीरीज के हकदार बने। लेकिन इसके बाग से शिव के फॉर्म में अचानक से गिरावट आनी शुरू हो गई। इस कारण वह फिर से टीम से बाहर हो गए। इसके बाद शिव ने एक ऑलराउंडर के रूप में वापसी करने की कोशिश की, लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। हालांकि वह अगले 10 साल तक घरेलू सर्किट में खेलते रहें और 1999 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट से रिटायर हुए। इस तरह एक और क्रिकेट का सितारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रतिभा का छाप नहीं छोड़ सका। लेखक- मनोज शर्मा अनुवादक - सागर