कई देशों के उनके खुदके घरेलु टूर्नामेंट होते हैं, जहां से कई स्टार निकल कर आते हैं। वैसा ही कुछ रुतबा इंग्लैंड की काउंटी क्रिकेट का भी रहा है। काउंटी क्रिकेट खेल कर खिलाडियों को उनके राष्ट्रीय टीम में जगह मिली है। भारत के कई खिलाड़ियों ने भी काउंटी क्रिकेट खेली है। कईयों ने इसे विदेशी ज़मीन पर अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए किया तो वहीँ कईयों ने इससे अपनी राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई। ये रहे कुछ ऐसे भारतीय खिलाड़ी जिन्होंने काउंटी क्रिकेट से अपने टीम में जगह बनाई: #5 चेतेश्वर पुजारा थोड़े समय के लिए इंग्लिश काउंटी क्रिकेट से जुड़नेवाले सबसे ताज़ा नाम चेतेश्वर पुजारा। वें यॉर्कशायर की टीम से जुड़े। पुजारा का 2014 और 2015 की क्रिकेट में ख़राब प्रदर्शन रहा था। 2015 की ख़राब आईपीएल के चलते उन्होंने इंग्लिश काउंटी का रुख किया। काउंटी क्रिकेट के 26 मैचों में उन्होंने 50 से ज्यादा की औसत से 264 रन बनाये। हालांकि उन्हें तुरंत टीम में जगह नहीं मिली, लेकिन इससे उनके प्रदर्शन में सुधार आया और उन्हें श्रीलंका के खिलाफ तीसरे टेस्ट के लिये चुना गया। सलामी बल्लेबाज़ के रूप में उन्होंने नाबाद 145 रन बनाए। #4 जवागल श्रीनाथ भारत के महान तेज़ गेंदबाज़ों में से एक हैं जवागल श्रीनाथ। भारत के लिए उन्होंने 67 टेस्ट मैचों में 236 विकेट अपने नाम किये। कर्नाटक के इस खिलाडी ने अपने शुरूआती दिनों में काबिलियत दिखाई लेकिन वे लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे। साल 1995 में उन्होंने ग्लूस्टरशायर की ओर से खेलने का निर्णय किया। अच्छे काउंटी सीजन के बाद श्रीनाथ एक बेहतरीन गेंदबाज बन गए और फिर लगातार भारतीय टीम का हिस्सा रहे। साल 1996 में उन्होंने केवल 7 टेस्ट मैच में 33 विकेट लिये जहाँ पर उनकी औसत 27 थी। इसके बाद श्रीनाथ लीस्टरशायर का भी हिस्सा रहे और 23 मैचों में 123 विकेट लेकर उन्होंने अपने करियर पर विराम लगाया। #3 सौरव गांगुली सौरव गांगुली भारत के सबसे सफल कप्तान में से एक हैं, इसके अलावा वे एक कमाल के बल्लेबाज़ भी हैं। जब वे कप्तान थे तब उन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी सुधारने के लिए काउंटी क्रिकेट का रुख किया। साल 2000 में वे लंकाशायर से जुड़े और 2005 में वे ग्लेमोर्गन से जुड़े। कप्तानी और टीम में अपनी जगह खोने के बाद गांगुली ने वापस इंग्लैंड की ओर रुख किया और इस बार साल 2006 में नॉर्थम्पटनशायर से जुड़े। इसके बाद वापसी करते हुए गांगुली ने टीम में वापस जगह बनाई। अपने करियर के आखरी दो सालों में गांगुली ने अपने आप को सबसे अच्छा खिलाडी साबित किया। साल 2007 में उन्होंने 60 से अधिक की औसत से 1000 रन बनाए। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने आखिरी टेस्ट में 85 रन बनाये। #2 ज़हीर खान भारत के इस तेज़ गेंदबाज को टीम का स्टार गेंदबाज बनने में थोड़ा समय लगा। करियर के शुरुआत में ज़हीर ने सभी को अपनी पेस और स्विंग से प्रभावित किया। लेकिन साल 2005 में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। 2006 में ज़हीर ने इंग्लिश काउंटी टीम वोस्टरशायर के साथ करार किया और उस टूर्नामेंट में कमाल का प्रदर्शन किया। 16 मैचों में उन्होंने अपनी टीम के लिए 78 विकेट लिये। मुम्बई के इस गेंदबाज ने कई बार काउंटी क्रिकेट को अपनी सफलता का श्रेय दिया है। उनके अनुसार वहीँ से उन्होंने क्रिकेट को समझा। वहां से ज़हीर के करियर में बदलाव आया और वे आगे जाकर भारतीय टीम के मुख्य तेज़ गेंदबाज बने। #1 राहुल द्रविड़ काउंटी क्रिकेट से कामयाब होने का अगर कोई सबसे अच्छा उदाहरण है, तो वो है राहुल द्रविड़ का। भारतीय टीम में 'द वॉल' के नाम से जाने जाने वाले द्रविड़ को 1999/00 के सीजन में टीम में अपनी जगह पक्की करने में दिक्कत हो रही थी। वे 14 परियों में एक भी अर्धशतक नहीं बना पाएं। अपने करियर को वापस पटरी पर लाने के लिए द्रविड़ ने 2000 में इंग्लिश काउंटी टीम केंट से जुड़ गए। 16 मैचों में उन्होंने अपनी टीम के लिए 1000 रन बनाए। जब उन्होंने वापसी की तब वे काफी बदल चुके थे। उसके बाद राहुल द्रविड़ भारतीय टीम की अहम कड़ी बन गए। उन्होंने नंबर 3 का स्थान अपने नाम किया और उसपर कामयाब रहे। 164 टेस्ट के बाद जब वे रिटायर हुए तब उनके नाम 13,000 से ज्यादा रन थे। लेखक: अभिनव मैस्सी, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी