5 भारतीय क्रिकेटर्स जो बन सकते थे एक बेहतरीन कप्तान

BHAJJI

भारतीय क्रिकेट इतिहास में एक से बढ़कर एक कप्तान आए हैं, जिनमें नवाब पटौदी, मोहम्मद अज़हरुद्दीन, सौरव गांगुली जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इस फ़हरीस्त में अगर शीर्ष स्थान की बात करें तो भारत को पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनाने वाले कपिल देव और टीम इंडिया को तीन बार आईसीसी ख़िताब (1 वनडे वर्ल्डकप, 1 टी20 वर्ल्डकप और 1 आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी) दिलाने वाले कैप्टेन कूल महेंद्र सिंह धोनी के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी। हालांकि भारतीय क्रिकेट टीम को जीत की आदत दिलाने वाले सौरव गांगुली यानी दादा का नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना लाज़िमी है। दादा और धोनी के लिए एक चीज़ जो समान है वह ये कि दोनों को ही टीम इंडिया की कमान विपरित परिस्थिति में संभालनी पड़ी थी। मैच फ़िक्सिंग विवाद और सचिन तेंदुलकर की कप्तानी छोड़ने के बाद जहां सौरव गांगुली पर कप्तानी का ज़िम्मा आया था। तो 2007 विश्वकप में पहले ही दौर में भारत के बाहर होने के बाद टीम इंडिया एक बुरे दौर से गुज़र रही थी और तभी क्रिकेट के सबसे छोटे फ़ॉर्मेट यानी टी20 विश्वकप से उस वक़्त के सीमित ओवर कप्तान राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर ने ख़ुद को अलग कर लिया था। तब बीसीसीआई ने धोनी को कप्तान बनाकर सभी को चौंका दिया था और माही ने उससे ज़्यादा सभी को हैरान तब कर दिया जब भारत ने टी20 वर्ल्डकप अपने नाम कर लिया। महेंद्र सिंह धोनी और भारतीय क्रिकेट इतिहास के शानदार भविष्य की तो बस ये एक शुरुआत थी, इसके बाद तो धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया टेस्ट की बेस्ट भी बनी, 2011 में वनडे वर्ल्डकप भी जीता और 2013 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी पर भी कब्ज़ा जमाया। यही वजह है कि माही को क्रिकेट पंडित भारत के ही नहीं बल्कि दुनिया के बेहतरीन कप्तानों में शुमार करते हैं। आज विराट कोहली के कप्तान रहते हुए भी सीमित ओवर में धोनी एक कप्तान की ही तरह मैदान में नज़र आते हैं, और इस बात को ख़ुद कोहली भी स्वीकार करते हैं। दादा से लेकर माही के दौर में कई ऐसे खिलाड़ी भी टीम इंडिया में रहे जो अच्छे कप्तान हो सकते थे, लेकिन जब गांगुली और धोनी जैसे लाजवाब कप्तान हों तो फिर किसी को मौक़ा मिलना मुश्किल ही था। कुछ ऐसे क्रिकेटर्स भी इस दौर में हमने देखें हैं जिनका क्रिकेटिंग ब्रेन शानदार था और घरेलू या जूनियर स्तर पर अपनी कप्तानी से उन्होंने सभी को प्रभावित किया था, क्रिकेट पंडितों की नज़र में भी वह टीम इंडिया की कप्तानी के क़ाबिल थे। तो आइए देखते हैं कि कौन हैं वह 5 क्रिकेटर्स जो बन सकते थे टीम इंडिया के कप्तान। (इस फ़ेहरीस्त में हम उन क्रिकेटर्स का ज़िक्र कर रहे हैं जिन्होंने कभी टेस्ट मैच में भारत की कप्तानी नहीं की है) #5 हरभजन सिंह पंजाब के फिरकी गेंदबाज़ जो अपने जाबांज़ हौसले और बेहतरीन ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी के दम पर विपक्षियों के पसीने छुड़ा दिया करते थे। दिग्गज अनिल कुंबले के साथ मिलकर हरभजन सिंह ने भारत को कई यादगार जीत दिलाई है। ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 2001 की ऐतिहासिक सीरीज़ को अगर वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ की पारियों के लिए याद किया जाता है तो उसी सीरीज़ में 32 विकेट और हैट्रिक लेने वाले हरभजन सिंह ने तो कंगारुओं के ज़ेहन में ऐसा ख़ौफ़ पैदा कर दिया था कि इस सरदार का नाम ही “टर्बनेटर’’ पड़ गया। टेस्ट क्रिकेट में 400 विकेट लेने वाले भज्जी एक बेहतरीन कप्तान भी थे जिसकी झलक उन्होंने घरेलू क्रिकेट में पंजाब के लिए दिखाई और फिर आईपीएल में भी कई बार उन्होंने अपनी कप्तानी और फ़ैसले से सभी को प्रभावित किया। लेकिन पहले दादा और फिर धोनी की मौजूदगी में उन्हें कभी टीम इंडिया की कप्तानी का मौक़ा नहीं मिल पाया। #4 वीवीएस लक्ष्मण VVS टीम इंडिया के ‘’फ़ैब फ़ाइव’’ का हिस्सा रहे कलाईयों के जादूगर वीवीएस लक्ष्मण भी इस फ़ेहरीस्त में नंबर-4 पर जगह बनाने में क़ामयाब हैं। जिस तरह पिच पर लक्ष्मण का वेरी वेरी स्पेशल क्लास देखने को मिलता था, ठीक उसी तरह वीवीएस एक शानदार क्रिकेटिंग ब्रेन के धनी भी थे। भले ही उन्होंने कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कप्तानी नहीं की लेकिन ज़रूरत पड़ने पर वह हमेशा अपने कप्तानों को सुझाव देते रहते थे। लक्ष्मण को भी कप्तानी न मिलने की वजह उनके दौर में टीम इंडिया में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, सौरव गांगुली और फिर महेंद्र सिंह धोनी जैसे कप्तानों का होना था। #3 ज़हीर ख़ान ZAK इस फ़ेहरीस्त में तीसरे नंबर पर एक और गेंदबाज़ का नाम है, एक ऐसा गेंदबाज़ जिसे भारतीय क्रिकेट इतिहास में कपिल देव के बाद सबसे सफल तेज़ गेंदबाज़ माना जाता है। ज़हीर ख़ान, बाएं हाथ के इस तेज़ गेंदबाज़ ने टीम इंडिया को अनगिनत मैचों में जीत दिलाई, 2003 वर्ल्डकप के फ़ाइनल तक पहुंचाने में और फिर 2011 में वर्ल्डकप चैंपियन बनाने में ज़हीर ख़ान का एक बड़ा किरदार था। एक शानदार गेंदबाज़ के साथ साथ ज़हीर के पास एक बेहतरीन क्रिकेटिंग ब्रेन भी था, जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार उनके साथी कप्तानों ने भी फ़ायदा उठाया और उनसे सुझाव लिया। भले ही ज़हीर को कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कप्तानी का मौक़ा नहीं मिला, लेकिन वह एक शानदार और सफल कप्तान भी हैं इसकी झलक आईपीएल में देखने को मिली। दिल्ली डेयरडेविल्स के लिए ज़हीर ख़ान एक चालाक कप्तान भी साबित हुए, आईपीएल में ज़ैक की कप्तानी को आधार मानते हुए ही हम उन्हें इस फ़ेहरीस्त में जगह दे रहे हैं। #2 गौतम गंभीर GAUTi कभी कभी किसी खिलाड़ी को वह तवज्जो नहीं मिल पाता है जिसका वह सही मायनों में हक़दार होता है। उन्हीं में से एक हैं टीम इंडिया के बाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज़ गौतम गंभीर, भारत अगर धोनी की कप्तानी में 2007 टी20 वर्ल्डकप और 2011 वनडे वर्ल्डकप चैंपियन बना तो इन दोनों ही फ़ाइनल में गौतम गंभीर का बल्ला गरजा। 2007 टी20 वर्ल्डकप के फ़ाइनल में उन्होंने कमाल के 75 रन बनाए तो 2011 वर्ल्डकप फ़ाइनल में विपरित परिस्थियों में गंभीर के बल्ले से 97 रन आए। इन सबके अलावा न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ उन्हीं के घर में नेपियर टेस्ट में 16 घंटे तक बल्लेबाज़ी कर टेस्ट मैच ड्रॉ कराने में भी गंभीर का बड़ा योगदान था। इतना ही नहीं वनडे क्रिकेट में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ घरेलू सीरीज़ में कप्तानी करते हुए उन्होंने भारत को 5-0 से जीत भी दिलाई थी, लेकिन इसके बावजूद वह कभी नियमित तौर पर टीम इंडिया के कप्तान नहीं बन पाए। आईपीएल में भी गंभीर ने कोलकाता नाइटराइडर्स को अपनी कप्तानी में दो बार चैंपियन बनाया। धोनी के बाद क्रिकेट पंडित गौतम गंभीर को ही टीम इंडिया का कप्तान मान रहे थे लेकिन ख़राब फ़ॉर्म और ख़राब क़िस्मत की वजह से कप्तानी की रेस के साथ साथ वह टीम से भी बाहर हो गए। #1 मोहम्मद कैफ़ KAIF इस फ़ेहरीस्त में पहले पायदान पर जो नाम है उसे पढ़कर आप हैरान हो जाएंगे, लेकिन उनकी क़ाबिलियत पर किसी भी क्रिकेट प्रेमी को शक़ नहीं होगा। हम बात कर रहे हैं अंडर-19 वर्ल्डकप में भारत को पहली बार चैंपियन बनाने वाले मोहम्मद कैफ़ की, श्रीलंका में हुए अंडर-19 वर्ल्डकप में कैफ़ ने अपनी फ़ील्डींग के साथ साथ जिस चीज़ से सभी को प्रभावित किया था वह थी उनकी लाजवाब कप्तानी। अंडर-19 में भारत को चैंपियन बनाने का इनाम कैफ़ को टीम इंडिया की जर्सी के तौर पर मिला, उन्होंने अंडर-19 के ही अपने साथी युवराज सिंह के साथ मिलकर लॉर्ड्स पर भारत को ऐतिहासिक नैटवेस्ट ट्रॉफ़ी जीत दिलाई थी। मोहम्मद कैफ़ ने उत्तर प्रदेश को भी अपनी कप्तानी में पहली बार रणजी ट्रॉफ़ी चैंपियन बनाया था। कैफ़ के बारे में कहा जाता है कि वह अजीबो ग़रीब फ़ील्ड पोजिशन से विपक्षी टीम के बल्लेबाज़ों को हैरान कर देते थे, हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैफ़ को कभी ये मौक़ा नहीं मिल पाया। जिस तरह क्रिकेट पंडितों की नज़र में धोनी के बाद गंभीर कप्तानी के सबसे बड़े दावेदार थे, ठीक वैसे ही दादा का उत्तराधिकारी कैफ़ को कहा जाने लगा था। लेकिन कैफ़ के साथ भी वही हुआ जो गंभीर के साथ हुआ था, दोनों ही न सिर्फ़ कप्तानी की रेस से बाहर हुए बल्कि टीम से भी जगह खो बैठे। हालांकि इसके लिए कैफ़ का ख़राब फ़ॉर्म और मिले मौक़ों को पूरी तरह से नहीं भुना पाना भी एक बड़ी वजह है।