5 ऐसे भारतीय क्रिकेटर जिनके बारे में आप नहीं जानते कि उन्होंने भी काउंटी क्रिकेट खेला

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ऐसा कम ही देखा गया है कि भारतीय क्रिकेटर विदेशी टूर्नामेंट का हिस्सा बनें। खासतौर पर काउंटी क्रिकेट का, लेकिन वक्त के साथ प्रचलन बदलता हुए देखा गया है। यद्यपि, बीसीसीआई ने खिलाड़ियों को विदेशी टी-20 टूर्नामेंट्स में खेलने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन फिर भी रविचंद्रन अश्विन और चेतेश्वर पुजारा जैसे कई खिलाड़ियों ने काउंटी क्रिकेट खेला है और इंग्लैंड की पिचों पर खेलने का अच्छा अनुभव भी हासिल किया है। टेस्ट के 289, वनडे के 218 और टी-20 के 69 भारतीय खिलाड़ियों में बेहद कम क्रिकेटरों को काउंटी चैंपियनशिप में खेलते देखा गया है, जिनमें से कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्होंने इस तरह के टूर्नामेंट में बेहद शानदार प्रदर्शन किया है। फिर चाहे वह फारुख इंजिनियर हों या बिशन सिंह बेदी, जिन्होंने नॉर्थैम्पटनशायर की तरफ से 394 विकेट लिए हों, या फिर भारत के हालिया कोच रवि शास्त्री, जिन्होंने ग्लैमॉर्गन के लिए 60 मैचों में 3300 रन बनाए हों। इन सभी खिलाड़ियों ने अपने खेल को और अधिक तराशने के लिए इस तरह के टूर्नामेंट का सहारा लिया। कई खिलाड़ी और भी हैं, जिन्होंने इस रवायत को आगे बढ़ाया है और इनमें जहीर खान, वीरेंदर सहवाग, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज भी शामिल हैं। आइए जानते हैं ऐसे 5 भारतीय खिलाड़ियों के बारे में, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि ये भी काउंटी क्रिकेट का हिस्सा रहे हैं: #5. पीयूष चावला पीयूष चावला ने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत महज 17 साल की उम्र में ही कर ली थी। उनका सबसे मुख्य हथियार है, गुगली। वह चैलेंजर सीरीज के मैच में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को भी अपने इस हथियार से चकमा दे चुके हैं। पीयूष ने 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच से अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। हालांकि, इसके बाद वह टीम में अपनी स्थाई जगह बनाने में कामयाब न हो सके। लेकिन इस दौरान उन्होंने काउंटी के कुछ सीजन जरूर खेले। 2008 में टीम इंडिया से बाहर होने के बाद चावला ने 2010 में ससेक्स के साथ करार किया। पहले सत्र में चावला ने 6 काउंटी मैचों में 36 विकेच चटकाए। इस प्रदर्शन के बल पर चावला ने एक बार फिर टीम इंडिया में अपनी जगह बनाई और उन्हें 2010 टी-20 विश्व कप के लिए चुना गया। इसके बाद उन्हें 2011 एकदिवसीय विश्व कप के लिए भी टीम में जगह दी गई, लेकिन खराब प्रदर्शन के चलते उन्हें एक बार टीम से बाहर होना पड़ा। ऐसे हालात में चावला ने फिर से इंग्लैंड काउंटी क्रिकेट का हिस्सा होने का विकल्प चुना और उन्होंने समरसेट के साथ करार किया। 2013 में हुए इस टूर्नामेंट में चावला ने सिर्फ 4 मैच खेले और 27 विकेट अपने नाम किए। चावला अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को कुछ खास नहीं बना सके, लेकिन 2014 से वह आईपीएल में केकेआर टीम का नियमित हिस्सा रहे हैं। साथ ही, घरेलू क्रिकेट में वह लगातार उत्तर प्रदेश की टीम का भी प्रतिनिधित्व करते रहे और इस सीजन में गुजरात की तरफ से खेल रहे हैं। #4 आरपी सिंह rp-singh_2310getty_7501 आरपी सिंह भारत के उन चुनिंदा तेज गेंदबाजों में शामिल हैं, जिनके करियर की शुरूआत बेहतरीन हुई, लेकिन जल्द ही उनकी चमक धुंधली पड़ती गई। अंडर-19 वर्ल्ड कप से लोकप्रिय होने वाले रुद्र प्रदाप सिंह के रूप में भारत को स्विंग गेंदबाजी के लिए एक बेहतरीन विकल्प मिला था। 2007 में इस लेफ्ट आर्म गेंदबाज ने 2 मैचों में लेस्टरशायर का प्रतिनिधित्व किया था। भारत टीम के शेड्यूल ही वजह से वह इस टूर्नामेंट में इतना कम समय दे सके, लेकिन जो समय उन्होंने वहां बिताया, उसने उनके खेल को काफी बेहतर बनाया। इंग्लैंड में हुई टेस्ट सीरीज के 3 मैचों में सिंह ने 12 विकेट लिए और सीरीज जीतने में भारत की ओर से खास योगदान दिया। 2007 टी-20 विश्व कप के दौरान सिंह भारतीय गेंदबाजी के अहम हथियार रहे। साथ ही, 2008 में पर्थ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत को मिली जीत में भी आरपी सिंह का प्रदर्शन काफी कारगर रहा। दुर्भाग्यवश, सिंह अपना शानदार प्रदर्शन जारी न रख सके और उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। उन्होंने 2011 में इंग्लैंड में आखिरी बार टीम इंडिया की ओर से मैच खेला था। हालांकि, घरेलू क्रिकेट में उनकी भागीदारी जारी रही। वह गुजरात की रणजी टीम का हिस्सा बन गए और उनके गेंदबाजी आक्रमण की धुरी। 2016/17 में गुजरात ने रणजी ट्रॉफी अपने नाम की, जिसमें सिंह की अहम भूमिका रही। #3 मोहम्मद कैफ md-kaif-759 मोहम्मद कैफ को हमेशा 2 चीजों के लिए याद रखा जाएगा। एक तो यह कि वह भारत के शानदार फील्डर्स में से एक रहे हैं। पॉइंट और कवर पर युवराज सिंह के साथ उनकी जोड़ी का कोई तोड़ नहीं था। दूसरा, लॉर्ड्स में खेले गए नैटवेस्ट फाइनल में उनकी 87 रनों की नाबाद पारी, जिसके बल पर भारत ने इंग्लैंड के 325 रनों के पहाड़ जैसे लक्ष्य को सफलतापूर्वक पार कर किया। गौरतलब है कि कैफ तब मैदान पर आए थे, जब भारत 146 रनों पर अपने 5 विकेट गंवा चुका था। बहुत कम भारतीय फैन्स जानते होंगे कि कैफ उन 35 भारतीय खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने काउंटी क्रिकेट खेला है। उन्होंने दो सत्रों में डर्बीशायर (2002) और लेस्टरशायर (2003) के लिए कुल 9 मैच खेले हैं। इंग्लैंड में कैफ का प्रदर्शन कुछ अच्छा नहीं रहा। वह 22.82 के खराब औसत के साथ 17 पारियों में सिर्फ 388 रन ही बना सके। इस वजह से इंग्लैंड ने कैफ को फर्स्ट क्लास क्रिकेट में खिलाना ठीक नहीं समझा। कैफ को भारत की टेस्ट टीम में भी कभी स्थाई जगह नहीं मिल पाई। हालांकि, दिसंबर 2006 तक वह वनडे टीम का अहम हिस्सा जरूर रहे। इसके बाद फॉर्म में लगातार गिरावट के चलते उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया और कैफ तब से टीम में वापसी नहीं कर सके। #2 प्रज्ञान ओझा ojha_650_122714103132 बिशन सिंह बेदी के बाद प्रज्ञान ओझा को भारत का सबसे उम्दा लेफ्ट आर्म ऑफ-स्पिनर माना जाता है। 24 टेस्ट मैचों में 113 विकेट होने के बावजूद भी, ओझा को उतना श्रेय नहीं मिला, जितने के वह हकदार थे। ओझा भी काउंटी क्रिकेट का हिस्सा रह चुके हैं। उन्होंने 2011 में सरे की तरफ से सिर्फ 4 मैच ही खेले थे, लेकिन उनका प्रदर्शन लाजवाब रहा। ओझा ने 12.95 के शानदार औसत के साथ 24 विकेट अपने नाम किए। सरे चैंपियनशिप की दूसरी सबसे अच्छी टीम रही और इसमें ओझा के प्रदर्शन की अहम भूमिका रही। काउंटी क्रिकेट ने ओझा के खेल को निखारा और आने वाले 13 टेस्ट मैचों में ओझा ने भारत के लिए 71 विकेट चटकाए। दुर्भाग्यवश, 2013 के बाद से इस 31 वर्षीय खिलाड़ी को भारतीय टीम से खेलने का मौका नहीं मिला है। सचिन तेंदुलकर का आखिरी टेस्ट ही ओझा का आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच था। #1 युवराज सिंह Yuvrajx640 युवराज को भारत के ऑल-टाइम बेहतरीन हिटर्स में गिना जाता है। जब युवराज अपनी लय में होते हैं, तब दुनिया के किसी भी मैदान की बाउंड्री उनकी लिए बड़ी नहीं होती। युवराज ने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच से की थी। पहले ही मैच में युवराज ने मैक्ग्रा, ली और गिलेस्पी जैसे गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाते हुए शानदार 84 रनों की पारी खेली। यह संकेत थे कि भारत को एक ऐतिहासिक खिलाड़ी मिलने वाला है। नैटवेस्ट फाइनल में कैफ के साथ युवी की यादगार साझेदारी, टी-20 विश्व कप (2007) में 6 गेंदों पर 6 छक्के, 2011 विश्व कप में 'मैन ऑफ द सीरीज' का खिताब। ये सभी मौके बताते हैं कि युवी ने भारतीय क्रिकेट को कितनी सुनहरी यादें दी हैं। बहुत कम फैन्स युवराज के यॉर्कशायर के साथ काउंटी करियर के बारे में जानते होंगे। 2003 में युवी ने उनके लिए 7 मैच खेले। युवराज उन 2 भारतीयों में से एक हैं, जिन्होंने यॉर्कशायर के लिए खेला है। हालांकि, काउंटी चैंपियनशिप में युवी का फर्स्ट क्लास क्रिकेट का रिकॉर्ड कुछ खास नहीं रहा है। 12 पारियों में उनके नाम पर सिर्फ 145 रन हैं, जिसमें सिर्फ 1 ही अर्धशतक शामिल है। युवराज के नाम पर काउंटी का एक शानदार रिकॉर्ड है। वह पहले भारतीय हैं, जिन्होंने लेस्टरशायर के खिलाफ टी-20 मैच खेला और 37 गेंदों में शानदार 71 रनों की पारी खेली। बाद में 2011 में, युवराज को कैंसर होने की खबर सामने आई, लेकिन युवराज इस बाधा को भी सफलतापूर्वक पार कर गए। 2012 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की, लेकिन युवी अपनी पुरानी लय नहीं हासिल कर सके। इस वजह से टीम में उनकी जगह अस्थाई ही रही। लेखकः साहिल जैन, अनुवादकः देवान्श अवस्थी

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