5 भारतीय खिलाड़ी जिनका अंडर-19 से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में हुआ सफल बदलाव

जब भारतीय अंडर -19 टीम ने शनिवार को न्यूजीलैंड के बे ओवल ग्राउंड में विश्व कप जीता तो यह किसी टीम का रिकॉर्ड चौथा खिताब था।कप्तान पृथ्वी शॉ, उपकप्तान शुबमन गिल, तेज गेंदबाज कमलेश नागरकोटी और ऑलराउंडर शिवम मावी को हाल ही में संपन्न आईपीएल नीलामी में विभिन्न टीमों के साथ अनुबंध हासिल करने में भी सफलता मिली है, जो दिखा रहा है कि इन सभी युवाओं के लिए भविष्य सचमुच उज्ज्वल है। अंडर-19 की टीम आम तौर पर ऐसे युवा खिलाड़ियों के लिए मील का पत्थर होती है, जिन्हें सीनियर टीम में प्रवेश करना होता है। पिछले 20 सालों में कई भारतीय क्रिकेटरों ने इस स्तर पर सफलता हासिल की है और बाद में राष्ट्रीय टीम के लिए उनका एक लंबा और सफल करियर भी रहा। लिहाज़ा वर्तमान टीम के प्रदर्शन के तरीके से लग रहा है कि इस सूची में कुछ नए नाम जुड़ने में शायद ज्यादा समय नही लगने वाला।

#5 युवराज सिंह

वर्ष 2000 में अंडर -19 विश्वकप जीतने वाली टीम के दो मुख्य सितारों में से एक, युवराज सिंह का कप्तान मोह्हमद कैफ के साथ वरिष्ठ स्तर पर एक शानदार करियर रहा हैं। 2000 अंडर-19 विश्वकप में 103 रनों की स्ट्राइक रेट पर 203 रन बनाकर, 8 मैचों में 11.50 के साथ 12 विकेट हासिल करने वाले एक शानदार प्रदर्शन के चलते उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया था, जो चयनकर्ताओं की नज़र में आने के लिए पर्याप्त था। इसके बाद 2000 चैंपियंस ट्रॉफी में 19 वर्षीय खिलाड़ी के रूप में अपनी शुरुआत करने वाले युवराज, कप्तान सौरव गांगुली की भारतीय टीम के नियमित सदस्य बन गये। कवर प्वाइंट क्षेत्र के एक बेहतरीन क्षेत्ररक्षक और एक विश्वसनीय मध्यम-क्रम के बल्लेबाज, युवराज के करियर में उतार और चढाव दोनों आते रहे हैं। भारत के लिए 2011 के आईसीसी क्रिकेट विश्वकप की जीत में हरफनमौला प्रदर्शन करने के बाद युवी को फेफड़े के कैंसर से लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। जिससे उनका करियर समाप्त होने की ओर था, मगर उन्होंने वापसी की। हालांकि उनकी वापसी थोड़े समय तक ही रही है, मगर उनका 17 साल का लंबा करियर जिसमें उन्होंने 400 से अधिक मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। दर्शाता है कि कैसे एक अच्छा खिलाड़ी खेल के हर स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करता है।

#4 शिखर धवन

2004 में शिखर धवन, रॉबिन उथप्पा के साथ भारत की अंडर-19 टीम की रीढ़ थे, जिसका नेतृत्व अंबाती रायुडू ने किया था। धवन ने टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में भारत को ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें 7 मैचों में 84.16 की औसत से 505 रनों के साथ स्कोरिंग चार्ट में आगे रहे थे, जिसमें ग्रुप स्टेज में स्कॉटलैंड के खिलाफ 155* का स्कोर था। उन्हें मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट का अवार्ड भी मिला था। हालांकि उथप्पा को भारतीय टीम में जल्द ही जगह मिल गयी थी, वही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर डालने से पहले धवन को लंबी दौड़ लगानी पड़ी थी। 2010 में अपना एकदिवसीय करियर शुरू करने के बाद, धवन को 2013 में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करने का अवसर मिला और इस बीच तीन साल तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वह नही दिखाई दिए। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 187 रन की पारी के बाद से वह रुके नहीं और आज सभी स्वरूपों में भारत की टीम के स्थायी सदस्य बन गये हैं। अपनी विस्फोटक बल्लेबाज़ी शैली के लिए प्रसिद्ध, यह आक्रामक सलामी बल्लेबाज आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2013 में मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट भी रहा था। उनका फॉर्म थोड़ा अनिरंतर रहा है, लेकिन जब वह पूरे फॉर्म में होते हैं, तो इस गब्बर के आगे गेंदबाजों को टिकना मुमकिन नही होता है।

#3 रोहित शर्मा

गेंदों को मैदान के बाहर पहुँचाने वाले और देखते देखते दोहरे शतक की लाइन लगाने वाले रोहित शर्मा पहले एक प्रतिभाशाली युवा मध्यक्रम के बल्लेबाज़ हुआ करते थे। 2006 के अंडर-1 9 विश्वकप में चेतेश्वर पुजारा जो टूर्नामेंट के सर्वोच्च रन स्कोरर थे, और पियूष चावला के साथ खेलते हुए इस बल्लेबाज़ ने मध्य-क्रम के बल्लेबाज के रूप में 6 मैचों में 41 की औसत से 205 रन बनाए थे। एक साल के अंदर ही रोहित ने जल्द ही बड़ी छलांग लगाते हुए वरिष्ठ टीम में जगह बना ली थी। हालांकि, अनिरंतर प्रदर्शन ने उनके करियर को बाधित किया और बेहद प्रतिभाशाली होने के बावजूद वह लगातार भारतीय टीम से अन्दर-बाहर होते रहे थे। लेकिन एक बार जब उन्हें सलामी बल्लेबाज़ के तौर पर मौक़ा मिला, तो वहां से उनका करियर बदल चुका था। साल 2013 से वह सीमित ओवर के क्रिकेट में सलामी बल्लेबाज के रूप में खेल रहे हैं, और आज रोहित दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय बल्लेबाजों में से एक हैं।

#2 रविंद्र जडेजा

2008 में विश्वकप जीतने वाली अंडर-19 टीम के एक सदस्य रविंद्र जडेजा दो अंडर -19 टीमों का हिस्सा बनने वाले चुनिन्दा खिलाड़ियों में से एक हैं। 2008 में उन्होंने भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,जहाँ उन्होंने 3.14 की इकॉनमी से 6 मैचों में 10 विकेट लिए थे और भारत की ओर से सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ थे। उनके प्रदर्शन के चलते 2008 में उद्घाटन आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स ने उनके साथ अनुबंध किया था। एक साल से भी कम समय में वह भारत की टीम में सीमित ओवरों के प्रारूपों में चुन लिये गये और निचले क्रम में अपनी आक्रामक बल्लेबाजी और बाएं हाथ की स्पिन बॉलिंग से टीम के एक नियमित सदस्य बन गये। उनके करियर की शुरुआत में उन्हें पहले एक सीमित ओवरो का विशेषज्ञ माना गया था, मगर जडेजा ने खेल के सबसे लंबे प्रारूप में शानदार प्रदर्शन कर सबकी सोच बदल दी। टेस्ट और वनडे दोनों में गेंदबाजी रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल करने के बाद जडेजा अब टेस्ट क्रिकेट में भारतीय टीम के स्थायी सदस्य हैं।

#1 विराट कोहली

2008 के अंडर-19 विश्व कप विजेता टीम के कप्तान और साथ ही भारतीय राष्ट्रीय टीम के वर्तमान कप्तान विराट कोहली के अंतरराष्ट्रीय करियर में असाधारण कुछ भी नहीं है। मोर्चे की अगुवाई वह हमेशा आगे बढ़ कर करते रहे हैं, कोहली भारत के दूसरी सबसे ज्यादा और टूर्नामेंट के तीसरे सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी थे। जब टूर्नामेंट में उन्होंने 94 से अधिक की स्ट्राइक रेट से 235 रन बनाए थे और उनकी औसत 47 की रही थी। उनका प्रदर्शन और कप्तानी कौशल इतना असाधारण था कि आईपीएल के पहले ही सीजन में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर द्वारा उन्हें अनुबंधित कर लिया गया था। विश्व कप के कुछ महीनों बाद ही उनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट में प्रवेश हुआ और फिर कोहली का करियर लगातार आगे ही बढ़ रहा है। सीमित ओवरों के प्रारूप में उनका रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है कि वह पिछले 10 सालों में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे हैं। एक समय उन्हें सीमित ओवरों का विशेषज्ञ माना जाता था, मगर जब 2015 में उन्हें राष्ट्रीय टीम का कप्तान बना दिया गया था तबसे अब तक वह दुनिया के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं जिनका औसत खेल के हर प्रारूप में 50 से अधिक है। लेखक: कार्तिक सेठ अनुवादक: राहुल पांडे

Edited by Staff Editor
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