5 भारतीय स्पिनर जो किसी दूसरे देश के लिए खेलते तो महान टेस्ट खिलाड़ी होते

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वीनू मांकड़, सुभाष गुप्ते और गुलाम अहमद से, शुरू हुई भारतीय स्पिन विरासत की मशाल बिशन सिंह बेदी, ईएएस प्रसन्ना, भागवत चंद्रशेखर और श्रीनिवास वेंकटराघवन के हाथों तक पहुंची। कुछ समय के लिये 80 के दशक में एक छोटा सा ख़राब दौर आने के बाद, अनिल कुंबले और हरभजन सिंह के रूप में नई एक खतरनाक जोड़ी बन गयी। अब भारत की समृद्ध स्पिन विरासत रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा के रूप में आगे बढ़ती रही है। इन खिलाड़ियों का प्रदर्शन इतना उच्चस्तरीय रहा कि घरेलू टेस्ट में लंबे समय तक अच्छा प्रदर्शन करने वाले अनगिनत स्पिनरों को भारतीय टीम में जगह नहीं मिली। यहाँ हम ऐसे पांच भारतीय स्पिनरों पर नज़र डाल रहे हैं जो अगर दूसरे देश के लिए खेलते तो शायद महान स्पिनर बन सकते थे। कहने की ज़रूरत नहीं, यह सूची पूरी तरह से काल्पनिक है और इन खिलाड़ियों के संभावित और प्रथम श्रेणी के रिकॉर्ड के आधार पर तैयार की गई है। इनमें से तीन स्पिनरों ने भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला था, जबकि अन्य दो स्थापित नामों की मौजूदगी के कारण राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह नहीं बना सके।


# 5. मुरली कार्तिक

मुरली कार्तिक की गति और साथ ही लंबाई में विविधताओं के चलते उनमें विकेट हासिल करने की क्षमता थी। हालांकि, कुंबले और हरभजन की दमदार उपस्थिति का मतलब था कि इस बाएं हाथ के स्पिनर को अपने करियर का ज्यादा समय तीसरे स्पिनर के रूप में गुज़ारना पड़ा, जिसका मतलब था कम मौकों का मिलना। मजबूत दक्षिण अफ्रीकी टीम के खिलाफ अपने पहले टेस्ट मैच के दौरान खुद के लिए एक बड़ा नाम बनाने का मौका होने के बावजूद कार्तिक दूसरी पारी में केवल एक विकेट ही हासिल कर सके। जब भी तीसरे स्पिनर की जरुरत पड़ती थी, तो कार्तिक को बुलाया जाता था। इसके बाद कार्तिक ने सिर्फ सात और टेस्ट मैच खेले, हालाँकि काउंटी स्तर पर इंग्लिश क्रिकेट में वो लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर अपना नाम बनाते रहे। कई क्लबों जैसे लंकाशायर, समरसेट और सरे ने इंग्लैंड क्रिकेट सर्कल में उन्हें बहुत सम्मान दिया। शायद बाएं हाथ का यह स्पिनर उस दौर में अगर इंग्लैंड के लिए खेला होता तो वो और अधिक लंबे टेस्ट करियर का आनंद उठा सकता था। टेस्ट कैरियर (2000-2004) 8 मैचों में 34.16 की औसत से 24 विकेट और 80.5 की स्ट्राइक रेट प्रथम श्रेणी कैरियर (1996/97 - 2014) 203 मैचों में 26.70 की औसत से 644 विकेट और 66.0 की स्ट्राइक रेट, जिसमें 36 पांच विकेट और 5 दस विकेट शामिल हैं। # 4. सुनील जोशी 02cf4-1508874623-800 सुनील जोशी कर्नाटक के एक बेहतरीन स्पिनर थे उन्होंने भारत की तरफ से 15 टेस्ट मैच खेले। इन 15 टेस्ट मैचों में उन्होंने 41 विकेट लिए। वह एक सधे हुए स्पिनर थे, जो बल्लेबाजों को गलती करने के लिए मजबूर करते थे। गेंद के साथ अपनी स्थिरता के अलावा जोशी एक ऐसे बल्लेबाज भी थे जो बल्लेबाज़ी ऑर्डर में नीचे खेलने में सक्षम थे। कुंबले ने खुद के लिए एक स्पिन स्लॉट बना रखा था, हरभजन सिंह के उदय ने प्रभावी रूप से बाएं हाथ इस स्पिनर के करियर को समाप्त कर दिया। अगर वह न्यूजीलैंड जैसी टीम के लिए खेलते तो उनके जैसे ऑलराउंड क्रिकेटर को और अधिक अंतरराष्ट्रीय मैचों में खेलने का मिल सकता था। क्योंकि जब तक 1997 में कीवी टीम में डेनियल विटोरी आये, तब तक जोशी ने घरेलू सर्किट में खुद के लिए एक जगह और पहचान बना ली थी। टेस्ट कैरियर (1996 - 2000) 15 मैचों में 35.85 के औसत से 41 विकेट और 84.1 की स्ट्राइक-रेट के साथ 1 बार पांच विकेट प्रथम श्रेणी करियर (1992/93, 2011) 160 मैचों में 25.12 की औसत से 615 विकेट और 62.1 की स्ट्राइक-रेट के साथ 31 बार पांच विकेट और 5 बार दस विकेट # 3. पद्मकर शिवलकर bf75b-1508875441-800 जब बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटराघवन की सम्मानित स्पिन चौकड़ी दुनिया भर में अपनी गेंदबाज़ी से खौफ पैदा कर रही थी, तब भारत में कुछ ऐसे प्रतिभाशाली स्पिनर भी थे, जिन्हें एक भी टेस्ट में खेलने का मौका नहीं मिला था।पद्मकर शिवलकर उन दुर्भाग्यपूर्ण खिलाड़ियों में से एक थे जो कि मुम्बई के दोहरे उछाल वाली पिच पर एक अविश्वसनीय प्रथम श्रेणी रिकॉर्ड होने बावजूद अपने करियर में सिर्फ घरेलू मैच ही खेल सके। यदि उस दौर में शिवलकर वेस्ट इंडीज जैसी टीम के साथ होते, जो की तब गति से भरे गेंदबाज़ी आक्रमण में बदलाव के लिये संघर्ष कर रहे थे, होते तो उनका अंतराष्ट्रीय करियर बेहद सफल होता। प्रथम श्रेणी कैरियर (1961/62 - 1987/88) 124 मैचों में 19 .67 के औसत से 589 विकेट और 57.9 की स्ट्राइक रेट 42 पांच विकेट और 13 दस विकेट # 2. राजिंदर गोयल 74a07-1508875702-800 शिवलकर की ही तरह राजिंदर गोयल भी एक और महान स्पिनर थे, जिसे भारतीय लाइनअप में सम्मानित चौकड़ी की दमदार उपस्थिति के चलते टेस्ट क्रिकेट से दूर रखा गया था। 1964-65 के सत्र के दौरान श्रीलंका (तब सीलोन) के खिलाफ एक ऑफ अनौपचारिक टेस्ट के अलावा उनको अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर कभी नहीं मिला। घरेलू सर्किट में लंबे समय तक कड़ी मेहनत करने पर इस बाएं हाथ के गेंदबाज़ ने भारतीय क्रिकेट सर्कल के बीच अपनी एक पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की। बिशन सिंह बेदी और सुनील गावस्कर ने भी उनकी काफी तारीफ की थी। गोयल का इतना ज्यादा राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव था कि एक बार कुख्यात डाकू भूरा सिंह यादव ने गोयल को (संन्यास के बाद) एक पत्र भेजा था जिसमें रणजी ट्रॉफी में 600 से ज्यादा विकेट लेने के लिए उन्हें बधाई दी थी। लगभग तीन दशक बाद उन्होंने मजाक में टिप्पणी करते हुए कहा भी था कि एक डकैत उसे अपने समय के भारतीय चयनकर्ताओं से ज्यादा पसंद आया। प्रथम श्रेणी कैरियर (1958/59 - 1984/85) 157 मैचों में 18.58 की औसत से 750 विकेट और 53.0 की स्ट्राइक रेट के साथ 59 पांच विकेट और 18 दस विकेट # 1 वामन विश्वनाथ कुमार 5a82e-1508875891-800 शिवलकर और गोयल से भी पहले अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाले, वामन विश्वनाथ कुमार 1960 के दशक के दौरान भारत की असंगत चयन नीतियों के एक और शिकार बने थे। तमिलनाडु (मद्रास) के इस दिग्गज का एक शानदार प्रथम श्रेणी कैरियर रहा जिसमें उन्होंने 20 से कम के एक असाधारण औसत से लगभग 600 विकेट लिए हैं। घरेलू स्तर पर अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद इस लेग स्पिनर को अपने देश के लिए टेस्ट क्रिकेट खेलने के कुछ ही अवसर प्राप्त हुए। 1961 के दौरान वीवी कुमार ने एक अच्छे पाकिस्तानी बल्लेबाजी लाइनअप के खिलाफ अपने पहले मैच में अपनी घूमती गेंदों से सभी को प्रभावित किया था। उसके बाद वो चोट लगने के बावजूद इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई टेस्ट में खेले। इस मैच में उन्हें कोई भी विकेट नही मिला, जिसके चलते वह आने वाले समय में टीम से तो बाहर रहे ही, साथ ही उनका अंतराष्ट्रीय करियर भी खत्म हुआ। एक समय सुभाष गुप्ते के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाने वाले, इस अनुभवी स्पिनर के अंतरराष्ट्रीय करियर का अंत चंद्रशेखर के आगमन के बाद समाप्त हुआ। टेस्ट कैरियर (1961) 2 मैचों में 28.85 की औसत से 7 विकेट और 1 पांच विकेट प्रथम श्रेणी के कैरियर (1955/56 - 1 976/77) 129 मैचों में 19.98 के औसत से 599 विकेट और 50.2 की स्ट्राइक रेट, 36 पांच विकेट और 8 दस विकेट