5 ऐसे भारतीय स्पिनर जिनका करियर शानदार हो सकता था

Hirwani Bowls

भारत को हमेशा से ही प्रतिभाशाली स्पिनरों का गढ़ माना जाता है। 1970 के दशक से ही भारतीय स्पिनरों ने विश्व क्रिकेट पर अपना धाक जमाना शुरू कर दिया था। बिशन सिंह बेदी से युजवेन्द्र चहल तक अनेक स्पिनरों ने कई यादगार परफॉर्मेंस देते हुए विश्व स्तर पर भारत का नाम ऊंचा किया है। आज भी अगर भारतीय टीम टेस्ट से लेकर टी20 में शीर्ष पर है तो उसके लिए आश्विन, जडेजा, कुलदीप यादव, अक्षर पटेल और युजवेन्द्र चहल जैसे गेंदबाज जिम्मेदार हैं। भारतीय स्पिनरों की फ्लाइट करने की क्षमता और डेड पिचों से टर्न कराने की क्षमता अद्भुत होती है। खासकर उपमहाद्वीप की पिचों पर ये और भी घातक हो जाते है। यही कारण है कि विदेशी टीमों का भारत दौरा हमेशा मुश्किल और कठिनाईयों से भरा होता है और वे स्पिनरों को खेलने में बहुत असहज महसूस करते हैं। हालांकि भारतीय क्रिकेट में ऐसे भी कई स्पिनर हुए जिनका कैरियर शानदार हो सकता था, लेकिन वे ऐसा कर नहीं पाए। यहां हम ऐसे ही पांच भारतीय स्पिनरों की चर्चा करेंगे जो मैदान पर अपनी वास्तविक क्षमता के मुताबिक प्रदर्शन करने में नाकाम रहे और टीम में अपनी जगह खो बैठे। नरेन्द्र हिरवानी नरेन्द्र हिरवानी ने जिस तरह से अपने टेस्ट जीवन की शुरुआत की थी, वैसा कम लोग ही कर पाते हैं। चश्में लगाकर गेंदबाजी करने वाले मध्य प्रदेश के इस कलाई के गेंदबाज ने अपने पहले ही टेस्ट मैच में 16 विकेट चटका दिए थे। उन्होंने वेस्टइंडीज की मजबूत बैटिंग लाइनअप के खिलाफ दोनों पारियों में आठ-आठ विकेट लिए और उन्हें भारतीय क्रिकेट के भविष्य का सितारा बताया जाने लगा था। ड्रीम डेब्यू के बाद हिरवानी का मुश्किल दौर शुरू हुआ और उनका वेस्टइंडीज, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड दौरा अच्छा नहीं गया। विदेश की तेज पिचों पर यह युवा गेंदबाज अपनी स्पिन गेंदबाजी को लेकर संघर्षरत दिखा और प्रतिकूल परिस्थितियों से तालमेल नहीं बिठा पाया। इंग्लैंड के खिलाफ 1990 में औसत दर्जे के प्रदर्शन के बाद टीम से उन्हें जल्द ही निकाल दिया गया। 1995-96 में उन्हें एक बार फिर से वापसी का मौका मिला लेकिन वह इसे नहीं भुना पाए। हालांकि वह 2006 तक घरेलू क्रिकेट खेलते रहें। हिरवानी ने भारत के लिए 17 टेस्ट मैच खेला और 30 की औसत व 2.77 की इकोनॉमी रेट से 66 विकेट लिया। हालांकि वह अपने पहले टेस्ट मैच के प्रदर्शन को कभी दोहरा ना सके। पीयूष चावला India v New Zealand - 2011 ICC World Cup Warm Up Game पीयूष चावला दो बार विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रह चुके हैं। महेंद्र सिंह धोनी की टीम 2007 और 2011 में जब विश्व चैंपियन बनी थी, तो दोनों बार यह लेग स्पिनर टीम में था। जूनियर क्रिकेट में लगतार अच्छे प्रदर्शन ने चावला को टीम इंडिया के मुहाने पर खड़ा कर दिया और 18 साल से कम उम्र में ही वो टीम में शामिल हो चुके थे। चावला एक पारंपरिक कलाई वाले स्पिनर हैं जो जरूरत पड़ने पर बल्ले से भी अपना योगदान दे सकते हैं। हालांकि लंबे समय से राष्ट्रीय चयनकर्ताओं के रडार पर होने के बावजूद वह कभी भी राष्ट्रीय टीम के नियमित सदस्य नहीं बन पाए। 2006 से शुरू हुए एक लंबे कैरियर में पीयूष चावला अब तक भारत के लिए केवल तीन टेस्ट मैच ही खेल पाए हैं। वहीं उनके वनडे मैचों की संख्या 25 है, जहां उन्होंने ठीक-ठाक प्रदर्शन करते हुए 32 विकेट लिए हैं। एक कलाई स्पिनर के रूप में चावला की प्रतिभा पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता। उनकी गेंद को फ्लाइट और टर्न कराने की क्षमता गजब की है और वह अपने गुगली से भी बल्लेबाजों को परेशान करते हैं। हालांकि पीयूष का लाइन और लेंथ कभी भी कनसिस्टेंट नहीं रहा जिसके कारण वह कई बार बीच के ओवरों में खूब रन भी लुटाते हैं। विपक्षी बल्लेबाजों ने हमेशा उन्हें एक कमजोर कड़ी मानते हुए उन पर निशाना साधा है। उदाहरण के लिए 2011 में बैंगलौर में इंग्लैंड के खिलाफ विश्व कप के एक मैच में एंड्रयू स्ट्रॉस ने चावला की गेंदों की जम कर धुनाई की थी। उस मैच में चावला ने दस ओवरों के अपने कोटे में 71 रन दिए थे, जिसके बाद विश्व कप के बचे बाकी मैचों के लिए उन्हें टीम में नहीं चुना गया। हालांकि पीयूष चावला अब भी घरेलू क्रिकेट और आईपीएल खेलते हैं, लेकिन चहल और कुलदीप जैसे युवा स्पिनरों के उभरने के बाद भारतीय टीम में चावला की वापसी अब काफी मुश्किल है। रमेश पोवार England v India - 5th NatWest ODI रमेश पोवार मुंबई के उन ढेर सारे क्रिकेटरों में से एक हैं जिन्होनें राष्ट्रीय क्रिकेट टीम को अपनी सेवाएं दी। हालांकि पोवार कभी भी टीम में अपनी नियमित जगह पक्की नहीं कर सके। 2005 से 2010 के दौरान वह सीमित ओवरों के मैचों के लिए लगातार चयनकर्ताओं के रडार पर रहें। पोवार एक ऑफ स्पिनर थे और उन्होंने एक लंबे सफल घरेलू कैरियर का आनंद उठाया। वह कई सालों तक मुंबई के स्पिन गेंदबाजी आक्रमण का भार अपने कंधों पर लेकर चलते रहे। लंबा घरेलू कैरियर होने के बावजूद फॉर्म और फिटनेस समस्या के कारण पोवार का अंतरराष्ट्रीय करियर कुछ खास लंबा नहीं रह सका। उन्होंने भारत के लिए 29 एकदिवसीय और 2 टेस्ट मैच खेले और कई बार कुछ यादगार प्रदर्शन भी किया। पोवार की अचानक से फेंकी गई तेज गेंदे कई मौकों पर बल्लेबाजों को धोखा दे देती थीं। पोवार बल्लेबाजी भी अच्छा कर लेते थे। घरेलू क्रिकेट में पोवार के नाम 7 शतक दर्ज हैं। मुंबई के बाद गुजरात से थोड़े समय तक घरेलू क्रिकेट खेलने के बाद पोवार ने 2015 में सभी तरह के क्रिकेट से संन्यास ले लिया। प्रज्ञान ओझा India v CA Chairman's XI - Day 1 प्रज्ञान ओझा एक और बाएं हाथ के स्पिनर हैं जो विभिन्न वजहों से अपने कैरियर को लंबा नहीं कर सके। अपने बेहतरीन गेंदबाजी के कारण ओझा अपने जूनियर क्रिकेट के दिनों से ही काफी चर्चित थे और उनकी काफी सराहना होती थी। अनिल कुंबले के रिटायर होने के बाद एक लेग स्पिनर के रुप में ओझा भारत की पहली पसंद थे, हालांकि वह अधिक समय तक टीम में नहीं टिक पाए। ओझा मुख्य रूप से एक टेस्ट गेंदबाज थे और उन्होंने 24 टेस्ट मैच में 113 विकेट लिए। वह 2011 से 2013 के बीच टेस्ट टीम के नियमित सदस्य थे। हालांकि, रविंद्र जडेजा के उभार के बाद धीरे-धीरे ओझा का महत्व खत्म होता गया और उन्होंने टीम में अपना स्थान गंवा दिया। ओझा अपने रवैये के कारण भी कई बार विवादों में रहे। हाल ही में ओझा का कैब प्रमुख और पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली के साथ झगड़ा हो गया, जब गांगुली ने उन्हें एनओसी देने से मना कर दिया था। ओझा का गेंदबाजी एक्शन भी कई बार संदेह के दायरे में आ चुका है और आईसीसी ने भी उन्हें क्लीन चिट नहीं दिया है। इसलिए राष्ट्रीय टीम में ओझा का वापसी करना लगभग असंभव हैं। लक्ष्मण शिवरामकृष्णन <p/> लक्ष्मण शिवरामकृष्णन की कहानी भारतीय क्रिकेट की सबसे निराश करने वाली कहानियों में से एक है। 18 साल की कम उम्र में ही इस खिलाड़ी ने तमिलनाडु के घरेलू क्रिकेट सर्किट में अपनी पहचान बना ली थी। 1970 के दशक में प्रसिद्ध स्पिन चौकड़ी के रिटायर होने के बाद कहा जाता था कि लक्ष्मण भारत के सबसे बड़े स्पिनर हो सकते हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक शानदार शुरूआत की थी और उनके शुरुआत के दो साल बेहतरीन रहे थे। उन्होंने 1985 में भारत को विश्व चैम्पियनशिप क्रिकेट का खिताब जिताने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि इसके बाद चीजें तेजी से बदली। शिवरामकृष्णन अपने प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख पाए और बार-बार टीम से अंदर बाहर होते रहें। उन्हें वापसी करने का एक-दो बार मौका भी मिला लेकिन अब उनके गेंदबाजी में पहले वाली धार नहीं थी। मीडिया के लाइमलाईट में इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने अपनी चमक खो दी थी। इसके बाद कम प्रतिभाशाली माने जाने वाले खिलाड़ियों रवि शास्त्री और अनिल कुंबले ने टीम में अपनी जगह बना ली। शिवरामकृष्णन ने अपनी बल्लेबाजी में सुधार करके एक ऑलराउंडर के रूप में टीम में वापसी करने की कोशिश की लेकिन वह फिर भी सफल नहीं हो सके।

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