बीसीसीआई क्रिकेट स्टेडियम के नियमित निर्माण को लेकर हमेशा आगे रहा है। भारत में क्रिकेट प्रेमियों के लिए यह खेल एक धर्म की तरह है और इसका मैदान किसी विशेष मंदिर से कम नहीं हैं।
मुंबई के जिमखाना स्टेडियम में भारत की मेजबानी में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय मैच के बाद से भारतीय क्रिकेट ने एक लंबा सफर तय किया है। देश में सबसे अधिक क्रिकेट मैदानों की सूची में भारत का पहला स्थान है। पूरे देश में 50 से भी अधिक ऐसे मैदान है जहाँ कम से कम एक अंतर्राष्ट्रीय मैच का आयोजन हो चूका है। लेकिन इस सूची में कुछ ऐसे मैदान भी है जिसको बीसीसीआई के द्वारा या फिर क्रिकेट प्रेमियों के द्वारा नज़रंदाज़ कर दिया गया है।
पूरे देश में नए-नए मैदानों को नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय खेलों की मेजबानी करने का सौभाग्य मिलता रहा है, वहीँ ऐसे कुछ पुराने मैदान है, जहाँ पिछले 20 वर्षों में अंतरराष्ट्रीय खेल का आयोजन नहीं किया गया है।
आइये, एक नजर डालते है उन 5 भारतीय मैदानों पर, जहाँ कम से कम एक अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजित हो चूका है, लेकिन अब बीसीसीआई के द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है।
#1. कप्तान रूप सिंह स्टेडियम, ग्वालियर
साल 2010-11, भारत में क्रिकेट प्रेमियों के लिए और खास तौर पर ‘क्रिकेट के भगवान’ माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर के प्रशंषको के लिए ये इतिहास लिखने वाला साल रहा होगा। यह वही मैदान है जहां मास्टर ब्लास्टर ने वनडे क्रिकेट में पहला दोहरा शतक बना कर इतिहास रचा था। भारत ने उस मैच में 153 रनों के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी, लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा होगा की यह मैच, इस मैदान का आखिरी मैच होगा।
ग्वालियर में स्थित इस मैदान में पहले अंतरराष्ट्रीय खेल का आयोजन 1988 में किया गया था और पिछले 22 वर्षों में इस मैदान ने कुल 12 एकदिवसीय मैचों की मेजबानी की है। साल 1998 में, इसी मैदान पर केन्या ने भारत को पहली बार हरा कर इतिहास रचा था।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, नए और बड़े मैदानों में मैच आयोजित होने लगे, परिणामस्वरूप इस मैदान ने पिछले 8 वर्षो में एक भी मैच की मेजबानी नहीं की।
#2. मोइन-उल-हक स्टेडियम, पटना
हाल ही में फिर से बनी बिहार की रणजी टीम ने बिहार में क्रिकेट को एक नया जीवनदान दे दिया है। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में आंतरिक राजनीति के कारण, बिहार में क्रिकेट कोसों दूर पीछे चला गया है।
बिहार के पटना में स्थित क्रिकेट का एकमात्र मोइन-उल-हक स्टेडियम, दो अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेजबानी कर चुका है। 25000 की क्षमता वाली इस स्टेडियम के बुनियादी ढांचे में कमी के कारण इसे खारिज कर दिया गया है। हालात इतने खराब है कि इस स्टेडियम में स्थानीय टूर्नामेंट भी नहीं होते हैं।
इस स्टेडियम को उस समय के आधुनिक तकनीकों से बनाया गया था, लेकिन रखरखाव में अनदेखी के कारण स्टेडियम की हालत अब बत्तर हो चुकी है। बिहार के विभाजन के बाद, आज तक यहाँ एक भी रणजी मैच का आयोजन नहीं किया गया है। खिलाड़ियों को अपने कौशल को विकसित करने के लिए उपयुक्त संसाधन न मिल पाने की वजह से क्रिकेट खेलने का सपना छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है। हालांकि, बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने इस स्टेडियम को फिर से एक अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम बनाने का एलान कर दिया है।
#3. कीनन स्टेडियम, जमशेदपुर
झारखंड के जमशेदपुर में स्थित इस स्टेडियम का नाम टाटा स्टील के पूर्व महाप्रबंधक जॉन लॉरेंस कीनन के नाम पर रखा गया है। 19,000 लोगों की क्षमता वाली इस स्टेडियम का निर्माण वर्ष 1939 में किया गया था।
1983 में यहाँ पहला अंतरराष्ट्रीय मैच भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेला गया था। यहाँ पर कुल मिलाकर 9 अंतरराष्ट्रीय मैच आयोजित किए गए है, जिसमें से टीम इंडिया ने 8 मैचों में जगह बनाई है। हालांकि, भारतीय टीम सिर्फ एक मैच में जीत हासिल करने में सफल रही है।
इस स्टेडियम में आखिरी मैच भारत और इंग्लैंड के बीच 2006 में खेला गया था। पिछले 12 वर्षों में इस स्टेडियम ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच की मेजबानी नहीं की है। यह स्टेडियम उग्र भीड़ के कारण बहुत चर्चा में रहा था। इस स्टेडियम में मैच न होने का एक बड़ा कारण रांची में बना जेएससीए क्रिकेट मैदान भी है।
#4. नहर सिंह स्टेडियम, फरीदाबाद
फरीदाबाद में स्थित नाहर सिंह स्टेडियम या मयूर स्टेडियम, भारत में बहुत कम चर्चित स्टेडियम में से एक है। 25000 लोगों की क्षमता वाले स्टेडियम का निर्माण 1981 में किया गया था।
इस स्टेडियम में कुल 8 अंतरराष्ट्रीय मैच आयोजित हो चुके है, जिसमे भारत ने 7 मैचों में जगह बनाई है। यहाँ पहला अंतरराष्ट्रीय मैच भारत और वेस्ट इंडीज के बीच 1988 में खेला गया था जिसमें भारत को हार मिली थी। भारत के महानतम खिलाड़ीयों में से एक कपिल देव ने अपने करियर का आखिरी एकदिवसीय मैच इसी मैदान पर खेला था।
इस मैदान में आखिरी मैच भारत और इंग्लैंड के बीच 2006 में खेला गया था। पिछले 12 वर्षों में इस स्टेडियम ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच की मेजबानी नहीं की है। जब हम क्रिकेट को हर कसबे तक पहुँचाने की बात करते हैं, तब ऐसे मैदानों की कद्र की जानी चाहिए और इन्हे अधिक से अधिक मैचों की मेज़बानी सौपनी चाहिए।
#5. नेहरू स्टेडियम, पुणे
महाराष्ट्र के पुणे में स्थित नेहरू स्टेडियम का निर्माण 1969 में किया गया था। 25000 लोगों की क्षमता वाले इस स्टेडियम में पहला अंतरराष्ट्रीय मुकाबला भारत और इंग्लैंड के बीच 1984 में खेला गया था। मुंबई के वानखेड़े के बाद, नेहरू स्टेडियम, देश के कुछ प्रसिद्ध मैदानों में से एक था।
1996 के विश्व कप में केन्या ने इसी मैदान पर वेस्टइंडीज को लीग स्टेज में हरा कर क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर किया था। भारत ने यहां कुल मिलाकर 8 एकदिवसीय मैच खेले हैं जिसमें 5 में जीत दर्ज की है।
इस मैदान पर आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच भारत और श्रीलंका के बीच 2005 में खेला गया था। पिछले 13 वर्षों में इस स्टेडियम ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच की मेजबानी नहीं की है। जब से महारष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन ने खेल की कमान संभाली है, तब से इस मैदान को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। पुणे में अधिकतर मैच अब एमसीए स्टेडियम में खेले जाते है।