सचिन तेंदुलकर को जब 16 साल की उम्र में टीम में चुना गया था, तब वो सबकी नज़रों में आ गए थे। एक युवा खिलाड़ी के तौर पर उनके पास पाने के लिए बहुत कुछ था। हालांकि एक युवा खिलाड़ी को संभालना किसी कोच के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता, क्योंकि जल्दी सफलता पाने के डर के चक्कर में वो राह से ना भटक जाए।
सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, रोहित शर्मा, युवराज सिंह यह ऐसे कुछ खिलाड़ी जिन्होंने दिखाया कि किस तरह टैलेंट को प्रदर्शन में तब्दील किया जाता है। इन सभी खिलाड़ियों ने भारत को अपने दम पर कई मैच जिताए हैं।
हालांकि बहुत से ऐसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी रहे हैं, जिनसे उम्मीद तो काफी थी, लेकिन वो भारतीय टीम में जगह पक्की नहीं कर पाए।
आइये नज़र डालते हैं, ऐसे 5 युवा खिलाड़ियों पर, जिन्होंने अपने करियर के शुरुआत में बहुत तारीफ बटोरी, लेकिन उसके बाद भारतीय टीम में जगह बनाने में नाकाम रहें:
# पीयूष चावला
पीयूष चावला सबसे पहले सबकी नज़रों में 2005 चैलेंजर ट्रॉफी के समय आए, जब उन्होंने सचिन तेंदुलकर को गुगली पर बोल्ड किया था। उसके बाद इनमें काफी क्षमता देखी गई और उन्हें क्रिकेट की दुनिया उभरते हुए सितारे के रूप में देखा जाने लगा। जब वो 17 साल के थे, तब 2007 में उनका चयन इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए किया गया।
पहले मैच का दबाव चावला पर साफ दिख रहा था और उनकी गेंदो के ऊपर इंग्लैंड ने आक्रमण करना शुरू किया केविन पीटरसन ने, उसके बाद भारतीय कप्तान राहुल द्रविड़ ने उन्हें जल्द ही गेंदबाजी से हटा दिया। कुंबले रिटायरमेंट के करीब थे और हरभजन सिंह की फॉर्म उतनी अच्छी नहीं थी, इसलिए चावला से उम्मीद की जाने लगी कि वो टीम में अपनी जगह पक्की करेंगे।
भारत के लिए वो जितने मैच खेलते गए, उतना ही उनकी गेंदे लेग स्पिन होनी बंद हो गई और वो सिर्फ गुगली और फ्लिपर पर ज्यादा निर्भर होने लगे। वो 2011 में विश्व कप जीतने वाली टीम का भी हिस्सा थे, लेकिन वो चयनकर्ताओं का विश्वास जीतने में नाकाम रहे और वो अंतिम बार 2012 में टीम का हिस्सा थे।
# लक्ष्मी रत्न शुक्ला
35 वर्षीय लक्ष्मी रत्न शुक्ला फर्स्ट क्लास क्रिकेट में बंगाल के लिए खेलते थे। बहुत लोगों को याद है कि उन्होंने 1999 में भारत के लिए 17 साल की उम्र में अपना पहला मैच खेला था। तीन वनडे के बाद ही उनको टीम से बाहर कर दिया गया। 17 साल तक फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने वाले शुक्ला ने कुछ साल आईपीएल भी खेला, लेकिन वो दोबारा कभी टीम का हिस्सा नहीं बन सके। शुक्ला एक ऑल राउंडर थे, जो ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी के अलावा मीडियम फास्ट बॉलिंग भी कर लेते थे।
उनको बिट्टू के नाम से भी पुकारा जाता था। उन्होंने बंगाल के लिए 137 फ़र्स्ट क्लास मैच खेले, जिसमें उन्होंने 6217 रन बनाए और 172 विकेट भी हासिल किए। हालांकि भारत के उनका आगाज अच्छा नहीं रहा और उन्होंने चार ओवर्स में 32 रन खर्च किए थे। यह उनको हमेशा बुरे सपने के तौर पर सताएगा।
# नरेंद्र हिरवानी
एक बॉलर के तौर पर नरेंद्र हिरवानी हमेशा ही ट्रिविया के एक सवाल का जवाब रहेंगे कि अपने पहले टेस्ट में किसने सबसे ज्यादा विकेट लिए? एक 19 वर्षीय युवा खिलाडी, जोकि उत्तर प्रदेश से आता हैं, उसने वेस्टइंडीज के खिलाफ 1987 में अपने पहले ही मुक़ाबले में चेन्नई में 16 विकेट हासिल किए थे। हालांकि आने वाले सालों में अनिल कुंबले ने टीम के लिए काफी अच्छा किया, जिससे हिरवानी को ज्यादा मौके नहीं मिल सके।
हिरवानी ने अपने करियर में 17 टेस्ट खेले और 66 विकेट लिए और वनडे में उन्होंने 18 मैच खेले और 23 विकेट हासिल किए। आखिरकार उन्होंने 2006 में फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट से रिटायरमेंट लेकर अपना 23 साल के करियर पर विराम लगाया। उसके बाद 2008 में वो इंडियन टीम के चयनकर्ता बने। हालांकि जो छाप उन्होंने अपने पहले मैच में छोडी, वो उसको दोहरा ना सके।
# लक्ष्मण शिवरामाकृष्णन
शिवरामाकृष्णन की असफलता का अंदाज़ा आप इसी बात से निकाल सकते हैं कि उनका करियर महज 21 साल की उम्र में खत्म हो गया। उंन्होंने अपने करियर की आगाज 17 साल की उम्र में की और इसके साथ ही वो 9 टेस्ट मैच खेले, जिसमे उन्होंने 26 विकेट हासिल किए। उनके करियर का आगाज वेस्ट इंडीज के खिलाफ अच्छा रहा था और उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ मिली टेस्ट मैच जीतने में और 1985 में हुए वर्ल्ड चैंपियनशिप क्रिकेट में भी अहम भूमिका निभाई।
उनकी फॉर्म गिरती गई और टीम में उनका महत्व भी घटता गया। उन्होंने 1990 के अंत तक फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट खेला, लेकिन वो उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए।
# जयदेव उनादकट
साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ज़हीर खान के नहीं होने से जयदेव उनादकट को पहला टेस्ट खेलने का मौका मिला। एक 19 वर्षीय खिलाड़ी के लिए यह बहुत दबाव वाला मौका था, उन्होंने बिना कोई विकेट लिए 101 रन दे डालें।
वसीम अकरम को उनसे काफी उम्मीदे थी, उन्हीं के अंडर वो कोलकाता नाइटराइडर्स के लिए भी खेले। आईपीएल में अच्छा करने से उन्हें एक बार फिर टीम में मौका मिला। लेकिन एक बार फिर वो नाकाम रहे। लेखक- आद्य शर्मा, अनुवादक- मयंक महता