ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डेब्यू करने वाले 5 भारतीय क्रिकेटर जिनका करियर प्रभावी नहीं रहा

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पिछले एक दशक में बहुत से युवा और प्रतिभाशाली क्रिकेटरों ने एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत के लिए अपना डेब्यू किया, लेकिन उसमें से बहुत कम ही उच्चतम स्तर पर सफल हो सकें। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि डेब्यू करने वाले अधिकांश क्रिकेटर अपने आप को संभाल नहीं सके और टीम में बढ़ते प्रतिस्पर्धा के कारण टीम में अपना जगह खो बैठे। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला मैच खेलना किसी भी क्रिकेटर के लिए सपने के सच होने जैसा होता है और वह खिलाड़ी निश्चित रूप से कुछ अलग होगा कि उसे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना डेब्यू करने का मौका मिला। कुछ भारतीय क्रिकेटर ऐसे रहे जिन्होंने इस मिले मौके का पूरा फायदा उठाया जबकि कई ऐसा करने में सफल नहीं हो सके और कुछ समय बाद टीम से बाहर हो गए। तो आज चर्चा ऐसे ही पांच भारतीय क्रिकेटरों की जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना ओडीआई डेब्यू किया, लेकिन अधिक समय तक टीम में टिक नहीं पाए। कीर्ति आजाद ऑलराउंडर कीर्ति आजाद को 1980-81 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे के लिए भारतीय टीम में चुना गया था। हालांकि वह उस समय चयनकर्ताओं की पहली पसंद नहीं थे और उन्हें किसी खिलाड़ी के चोटिल होने पर ही टीम में चुना गया था। उन्हें मेलबर्न में बेन्सन एंड हेजेस वर्ल्ड सीरीज कप के तीसरे एकदिवसीय मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डेब्यू करने का मौका मिला। लेकिन वह अच्छी शुरुआत नहीं कर सके और बल्ले से संघर्ष करते हुए 22 गेंदों पर केवल चार रन ही बनाए। इस मैच में उन्हें गेंदबाजी करने का मौका नहीं मिला। बाद में उन्हें 1983 के विश्व कप के लिए चुना गया। यहां पर उन्होंने अपने क्रिकेटिंग जीवन के सबसे बेहतरीन पल का अनुभव किया था जब उन्होंने सेमीफाइनल में लीजेंड इयान बॉथम को क्लीन बोल्ड कर दिया। इस मैच में भारत को जीत मिली थी। हालांकि धीरे-धीरे उनका कैरियर ढलान पर आता गया और 25 एकदिवसीय मैच खेलने के बाद वह अप्रैल 1986 में टीम से बाहर हो गए। सौरभ तिवारी India_Vs_New_zealand_One_day_International,_10_December_2010_(6160465490) घरेलू क्रिकेट और आईपीएल में किए गए उत्कृष्ट प्रदर्शन की बदौलत झारखंड के सौरभ तिवारी को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2010 के घरेलू श्रृंखला के लिए भारतीय टीम में जगह मिली थी। उन्हें विशाखापट्टनम के दूसरे वनडे में पदार्पण का मौका मिला। इस मैच में तिवारी 45 वें ओवर में क्रीज पर आए जब टीम इंडिया को मैच जीतने के लिए 17 गेंदों में सिर्फ 12 रन की जरूरत थी और रैना के साथ मिलकर तिवारी ने मैच को आसानी से समाप्त कर दिया। इसके बाद तिवारी अब तक भारत के लिए केवल दो और एकदिवसीय मैच खेल पाए और अब टीम में उनके वापसी की संभावना भी काफी कम है। रोहन गावस्कर ODI - Australia v India रोहन गावस्कर महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर के बेटे हैं। जब रोहन ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब क्रिकेट प्रशंसकों को उनसे अपने पिता की तरह ही प्रदर्शन करने की उम्मीद थी। उन्हें पहली बार 2004 में ऑस्ट्रेलिया में तीन देशों की एकदिवसीय श्रृंखला के लिए टीम में चुना गया था। स्वभाव से शर्मीले रोहन को अपने 28वें जन्मदिन के खास मौके पर डेब्यू करने का मौका मिला। हालांकि यह मैच उनके लिए कुछ खास नहीं रहा, क्योंकि जब वह बल्लेबाजी करने आए तो पारी में सिर्फ 5 गेंद ही बचे थे। जबकि गेंदबाजी में वे 9 ओवर में 56 रन देकर सिर्फ एक विकेट ही ले पाएं। खराब बल्लेबाजी फॉर्म के कारण रोहन अपने कैरियर में सिर्फ 11 वनडे मैच ही खेल पाए। मनोज तिवारी f2b06bd36dc602d382070ee21af3b15a बंगाल के बल्लेबाज मनोज तिवारी इस सूची में सबसे अभाग्यशाली हैं। अगर वह वर्तमान की जगह किसी और युग में खेल रहे होते तो निश्चित रूप से उनका कैरियर काफी लंबा होता। उन्हें 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिसबेन में बारिश से प्रभावित मैच में अपना एकदिवसीय पदार्पण करने का मौका मिला था। तिवारी इस मैच में केवल दो रन बनाकर ब्रेट ली का शिकार हो गए थे। उन्होंने अब तक खेले गए 12 वनडे मैचों में एक शतक और एक अर्धशतक बनाया है, लेकिन भारतीय टीम के मजबूत बैटिंग लाइन अप को देखते हुए उनकी वापसी मुश्किल ही है। तिवारी ने अपना अंतिम वनडे मैच 2015 में जिम्बाब्वे के खिलाफ था। रमन लांबा Raman-Lamba दिवंगत रमन लांबा क्रिकेट जगत के लिए हमेशा एक पहेली रहेंगे, क्योंकि लांबा ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक सनसनीखेज शुरुआत की थी और पहले ही श्रृंखला में 'मैन ऑफ द सीरीज' चुने गए थे। लेकिन इसके बाद लांबा के खेल में लगातार गिरावट होती रही और जल्द ही वह टीम से गुमनाम हो गए। लांबा एक अपरंपरागत बल्लेबाज थे और वह अपने बल्लेबाजी में वह सब प्रयोग करने की कोशिश करते थे, जो उनके दौर के किसी भी बल्लेबाज ने सोचा भी नहीं होगा। वह तेज तेज गेंदबाजों के खिलाफ भी आगे बढ़कर तेज प्रहार करते थे, जो 80 के दशक के किसी भी बल्लेबाज के लिए एक सपना होता था। लांबा ने 1986 में जयपुर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने एकदिवसीय कैरियर की शुरुआत की और 8 चौके और 1 छक्के की मदद से 53 गेंदों में 64 रन बनाया। सीरीज के अगले मैच में भी लांबा ने अर्धशतक ठोका और तीसरे मैच में शतक बनाकर मैन ऑफ दी सीरीज बने। हालांकि लांबा अपने सनसनीखेज शुरुआत को एक लंबे कैरियर में नहीं बदल सके और सिर्फ 32 वनडे मैच खेल सके। मूल लेखक - सोहम समददार अनुवादक - सागर