2011 में विश्व विजेता बनने के बाद इन 5 भारतीय खिलाड़ियों का करियर अंधकार में चला गया

28 सालों के लंबे इंतज़ार के बाद 2011 में भारत का दोबारा विश्व कप जीतने का सपना पूरा हुआ। इस सपने के साथ कई बड़े खिलाड़ियों की उम्मीदें भी जुड़ी हुई थीं। हालांकि, इस बड़े मुकाम को पाने के बाद बहुत से खिलाड़ी ऐसे रहे, जिनके करियर का पतन शुरू हुआ और उन्होंने कुछ वक़्त बाद ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। हम इनमें से 5 मुख्य खिलाड़ियों के बारे में बात करेंगेः

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उल्लेखनीय नामः श्रीसंत

करियर के शुरूआती दौर में केरल के इस तेज़तर्रार और आक्रामक गेंदबाज़ को देखकर लगता था कि टीम इंडिया की लंबे समय से चल रही एक भरोसेमंद तेज़ गेंदबाज़ की तलाश, अब ख़त्म हो गई। श्रीसंत ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में 27 टेस्ट और 53 वनडे मैच खेले, जिनमें वह कई बार महंगे ज़रूर साबित हुए, लेकिन उन्होंने बड़े मौकों पर अपने शानदार स्पेल्स से खेल का रुख़ भी बदला। उन्हें वर्ल्ड कप में सिर्फ़ दो मैच खेलने का मौका मिला और वह कुछ ख़ास नहीं कर सके। टूर्नामेंट के बाद वह टीम से बाहर हो गए और वापसी करने में नाकाम रहे। टीम में उनकी वापसी हो सकती थी, लेकिन 2013 के आईपीएल फ़िक्सिंग स्कैंडल ने रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया और उनपर आजीवन प्रतिंबध लग गया।

#5 मुनाफ़ पटेल

मुनाफ़ पटेल ने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया, तब उन्होंने अपने अनुशासन और गति के लिए ख़ूब सुर्खियां बटोरीं। 2011 विश्व कप स्कॉयड का वह अहम हिस्सा थे। टूर्नामेंट में वह भारत की ओर से तीसरे सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने। सेमीफ़ाइनल मैच में पाकिस्तान के ख़िलाफ उनके बेहतरीन प्रदर्शन को भुलाया नहीं जा सकता। टूर्नामेंट के दौरान वह सिर्फ़ 27 साल के थे और ऐसा लगता था कि इस खिलाड़ी को अभी लंबा सफ़र तय करना है। फ़िटनेस और फ़ॉर्म की अनियमितता ने ऐसा होने नहीं दिया। उन्होंने अपना आख़िरी अंतरराष्ट्रीय मैच 2011 में ही खेला। फ़िलहाल वह 35 साल के हैं और उम्र के इस पड़ाव पर किसी गेंदबाज़ के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी करना लगभग असंभव है।

#4 गौतम गंभीर

गौतम गंभीर, तकनीकी रूप से निपुण यह बल्लेबाज़, एक वक़्त पर टीम इंडिया के टॉप ऑर्डर का सबसे मज़बूत ख़िलाड़ी था। उन्होंने टीम इंडिया की ओर से तीनों प्रारूपों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। एक दशक लंबे करियर में उनके खाते में 10 हज़ार रन हैं। 2011 विश्व कप फ़ाइनल में वह भारत की ओर से सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ थे। वर्ल्ड कप के बाद ख़राब फ़ॉर्म के चलते वह सभी फ़ॉर्मेंट्स से बाहर हो गए। गंभीर तब से ही अच्छी वापसी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, आईपीएल में उनका करियर अभी भी शानदार चल रहा है, लेकिन फिर भी अंतरराष्ट्रीय टीम में उनकी वापसी के आसार कम ही हैं।

#3 हरभजन सिंह

भारत के स्पिन स्कॉयड की सनसनी रह चुके हरभजन सिंह उर्फ़ ''भज्जी'' भी अपने ख़राब फ़ॉर्म के चलते करियर को वह मुकाम नहीं दे पाए, जिसके वह हकदार थे। 17 साल लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर में भज्जी ने 700 से भी ज़्यादा विकेट अपने नाम किए। 'टर्बनेटर' की संज्ञा से मशहूर भज्जी, एक वक़्त पर भारत के सबसे प्रमुख मैच विनर्स में से एक थे। 2011 विश्व कप तक भज्जी 30 साल के हो चुके थे। टूर्नामेंट में वह कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पाए और सिर्फ़ 8 विकेट ही ले सके। ख़राब फ़ॉर्म के चलते अश्विन को भज्जी के विकल्प के तौर पर चुन लिया गया। पिछले कुछ सालों में भज्जी ने नैशनल टीम में वापसी की, लेकिन उनकी धार पहले जैसी नहीं रही। अब वह 37 वर्ष के हो चुके हैं और फ़ैन्स उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा भर का इंतज़ार कर रहे हैं।

#2 वीरेंदर सहवाग

विश्व क्रिकेट के सबसे आक्रामक बल्लेबाज़ों में से एक वीरेंदर सहवाग, एक ऐसे बल्लेबाज़ थे, जिसने वनडे क्रिकेट में विस्फोटक बल्लेबाज़ी को नई परिभाषा दी। फ़ुटवर्क के लिए हमेशा उनकी आलोचना हुई, लेकिन अपनी शानदार टाइमिंग की बदौलत उन्होंने हमेशा ही गेंदबाज़ों के अंदर एक भय को बरक़रार रखा। टेस्ट में गंभीर और वनडे में सचिन तेंदुलकर के साथ उनकी ओपनिंग जोड़ी को हमेशा याद रखा जाएगा। सहवाग के नाम पर 17 हज़ार से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय रन हैं। वह भी 2011 विश्व कप टीम के सबसे महत्वपूर्ण और अनुभवी खिलाड़ियों में से थे। 2011 में ही सहवाग ने एक वनडे पारी में 219 रनों का तत्कालीन वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया था, लेकिन इसके बाद वह अपने उम्दा प्रदर्शन को दोहरा नहीं सके। फ़ॉर्म में अनियमितता के चलते उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया और 2014 में इस दिग्गज खिलाड़ी ने संन्यास ले लिया।

#1 युवराज सिंह

युवराज सिंह को हमेशा ही एक स्टाइलिश बैट्समैन और एक तेज़तर्रार फ़ील्डर के तौर पर देखा गया है। युवराज कम उम्र में ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का हिस्सा बन गए थे। अपनी जगह को पक्का करने के लिए उन्होंने कुछ समय ज़रूर लिया, लेकिन इसके बाद उन्होंने ख़ुद को दिग्गज साबित करके ही दम लिया। 2011 वर्ल्ड कप में बल्ले के साथ-साथ युवराज ने गेंदबाज़ी से भी सभी का दिल जीता। टूर्नामेंट में वह भारत की ओर से दूसरे सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज बने और मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट भी चुने गए। टूर्नामेंट के बाद वह कैंसर से बख़ूबी लड़े और टीम में वापसी भी की, लेकिन वह अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। हालांकि, 2019 विश्व कप के लिए युवराज के नाम की संभावनाएं अभी भी बनी हुई हैं, लेकिन अब फ़ैन्स को पहले जैसा युवराज न देख पाने की आशंका ज़्यादा है। लेखकः आकाश सिंघल अनुवादकः देवान्शअवस्थी

Edited by Staff Editor
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