क्रिकेट महज एक खेल नहीं एक धर्म हैं खासतौर पर उन लोगों के लिए जो इससे जुड़े हुए हैं जो इस खेल को जानते हैं इस खेल का जुनून ही कुछ ऐसा हैं कि जो इससे एक बार इससे जुड़ जाए उसके लिए खुद को इससे अलग कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं। क्रिकेट एक ऐसा खेल हैं जिसमें इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता कि आप मैदान पर मौजूद हैं या नहीं यदि आप इसे देखते हैं खेलते हैं औऱ समझते हैं तो जाने अनजाने ये हिस्सा बन जाता हैं आपके जीवन का। फिर चाहे मैच कभी भी कही भी और किन्ही भी देशों को बीच हो रहा हो बिना स्कोर जाने या बिना मैच अपडेट आपका मन लगना मुश्किल हैं आप कहीं भी हो स्कोर अपडेट लेना नहीं भूलते तो जरा सोचिए कि उन लोगों का या उन खिलाड़ियों का क्या होता होगा जिन्होने खेल को अलविदा कह दिया हो। वो भी एक अच्छे खासे लम्बे समय के सफल करियर के बाद। खासतौर पर 200 टेस्ट मैच जितना लम्बा क्रिकेट करियर खत्म करने के बाद संन्यास लेने वाले खिलाड़ी का। हम बात कर रहे हैं लिटिल मास्टर या कहें क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर की। मास्टर ब्लास्टर को क्रिकेट को अलविदा कहे यूं तो कुछ सालों को वक्त हो गया हैं लेकिन यदि हम कहें कि संन्यास उन्होंने सिर्फ मैदान से लिया हैं क्रिकेट से नहीं तो गलत नहीं । क्योंकि संन्यास के बाद भी सचिन कई मायनों में क्रिकेट से जुड़े हुए हैं। फिर चाहे वो रिटायर हो चुके प्लेयर्स के लिए शेन वॉर्न के साथ मिलकर एक नई शुरूआत की कोशिश ही क्यों न हो। अपनी बल्लेबाजी से लाखों के दिल जीत लेने वाले सचिन अब मैदान पर बैट थामे नजर नहीं आते लेकिन खेल को लगातार बेहतर करने के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए। किस तरह तेजी से बदलती पीढ़ी को बेहतर खेल के लिए तैयार किया जाए। और ज्यादा से ज्यादा लोगों को खेल से जोड़ा जा सके ,टैलेंट को उभारा जा सके ज्यादा से ज्यादा मौके हर प्रतिभा तक कैसे पहुचायें जा सके ऐसे तमाम पहलुओं पर वो अपने सुझाव देते रहते है। क्रिकेट के विस्तार ले रहे आयामों के चलते हालिया वक्त में हर समय कहीं न कहीं कोई न कोई क्रिकेट टूर्नामेंट चल रहा होता है ऐसै में खेल के मौलिक स्वरूप और लोगो में खेल के प्रति क्रेज को बचाये रखना बहुत जरूरी है। मास्टर ब्लास्टर की नज़र में 5 दिलचस्प तरीके जो क्रिकेट के क्रेज को बरकरार रखने के लिए जरूरी हैं। दो पिच और दो गेंद घरेलू क्रिकेट में रणजी का क्रेज आज भी हैं और कई खिलाड़ियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के दरवाज़े भी रणजी ने ही खोले हैं ऐसै में सचिन का मानना हैं कि रणजी खेलने के तरीके में भी बदलाव की जरूरत है। सचिन के मुताबिक हर मैच को दो पिचों पर खेला जाना चाहिए पहली औऱ दूसरी पारी ग्रीन ट़ॉप पर और तीसरी और चौथी पारी टर्निंग ट्रैक पर इसके साथ ही सचिन का मानना है कि भारतीय गेंदबाजों को जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय मैंचो में विदेशी पिचों पर परेशानी उठानी पड़ती है उसे देखते हुए जरूरत है कि घरेलू मैचों में 2 गेंदों का इस्तेमाल करना चाहिए। एक कुकाबुरा गेंद भारतीय गेंदबाजो के लिए ग्रिपिंग में थोड़ी मुश्किल हैं और दूसरीएसजी गेंद। इस सुझाव पर यदि ध्यान दिया जाए तो इसका फायदा भारतीय बल्लेबाजों को उन परिस्थितियों में मिल सकता है जिनमें विदेशी पिचों पर बॉल ज्यादा ऑफ पिच हो या पेस पर हो। हालांकि इस सुझाव पर अमल करना थोड़ा मुश्किल हैं क्योंकि एक ही मैदान पर एक दूसरे के पास में दो पिच तैयार करने से एक पिच पर खेल के वक्त फील्डर्स को दूसरे पिच पर चलने से रोकना लगभग असंभव है। लगातार घरेलू औऱ बाहरी सीरीज ये आइडिया लिया गया है फुटबाल से जहां चैम्पियन्स लीग औऱ कई घरेलु मुकाबले इसी तरह से दुनिया भर में खेले जाते हैं। सचिन का सुझाव है कि फुटबाल की तरह ही क्रिकेट में भी हर द्विपक्षीय सीरीज़ दो चरणों में खेली जाए जिसमें दोनों ही टीमें घर और बाहर दोनों जगह खेलें। इसके जरिए दर्शकों को दोनों टीमों की वास्तविक ताकत पता चलेगी साथ ही सीरीज के दौरान टीम के अनुकूल होने के आधार पर पिच तैयार किये जाने को भी रोका जा सकेगा जिसका फायदा खेल और खिलाड़ी दोनों को ही होगा। इससे प्लेयर्स के कम समय के अंदर दो अलग अलग पिचों पर प्रदर्शन करने की क्षमता का पता भी चलेगा। हालांकि इस विचार को साकार कर पाना काफी मुश्किल इसीलिए हैं क्योंकि इसके लिए काफी सारी प्लानिंग की जरूरत होगी साथ ही प्लेर्यस के लिए भी बेहद कम समय के अंतर में यात्रा और हर जगह के मौसम और पिच के अनुसार खुद को ढ़ालना काफी मुश्किल होगा। एकदिवसीय मैच को 2 भागों में खेलना अपने इस सुझाव के बारे में सचिन आईसीसी को भी लिख चुके है जिसके मुताबिक उनका कहना है कि एकदिवसीय मैच भी टेस्ट मैच की तरह 2 भाग में होने चाहिए जिसमें एक टीम 25 ओवर खेले फिर दूसरी टीम 25 ओवर और फिर पहली औऱ दूसरी टीम फिर से 25 -25 ओवर खेले। ये सुझाव इसीलिए बेहतर माना जा सकता है क्योंकि कई मैदानों पर मैच के रिज्लट में टॉस का अहम योगदान होता है। कई बार देर शाम की ओस, ज्यादा धूप या पिच के ज्यादा सूखे होने के कारण भी मैच के परिणाम पर असर पड़ता है ऐसे में ये सुझाव ठीक नज़र आता है।हांलाकि आईसीसी की तरफ से इस प्रपोजल को अस्वीकार कर दिया गया है क्योंकि आईसीसी का मानना है कि एकदिवसीय क्रिकेट के भविष्य को लेकर अभी ऐसा कोई ख़तरा नहीं है कि इस कदम को उठाया जाए। विश्वकप में 25 टीमों की एंट्री 2019 के विश्वकप में सिर्फ 10 टीमों को एंट्री देने के फैसले से नाखुश नज़र आ रहे सचिन ने जो सुझाव दिया है वो फैसले के एक दम उलट है। सचिन का कहना है कि आईसीसी को विश्वकप के लिए और संभावनाओ को तलाशते हुए इसमें हिस्सा लेने वाली टीमों की संख्या बढ़ाकर 25 कर देनी चाहिए। हालाकि इतनी ज्यादा टीमों के खेल में हिस्सा लेने से विश्वकप की महत्ता पर असर पड़ सकता है ऐसा कईयों का मानना है लेकिन मानना ये भी है कि सीधे न खिला कर इन टीमों को एक दूसरे के खिलाफ क्वालिफायर खिलाकर फिर भेजा जाए।
प्लेइंग 11 की जगह प्लेइंग 14
एमसीए सचिन के एस सुझाव को पहले ही अपनी सहमती दे चुका है जिसके मुताबिक स्कूल टीम में 11की स्थान पर 14 खिलाड़ी रखे जा सकते हैं जिससे की बेहतरीन खिलाड़ियो को खेलने के ज्यादा मौके मिलें। इस सुझाव को अपनाना काफी आसान माना गया है इससे उन प्लेयर्स को भी खेलने का मौका मिल सकेगा जो टीम में सिर्फ इस वजह से जगह नहीं बना सके क्योंकि उनके काम्पटीटर ज्यादा मजबूत थे।