डीआरएस लेने के मामले में महेंद्र सिंह धोनी का कोई जवाब नहीं है और भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली इस बात को बखूबी जानते हैं
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साल 2008 में श्रीलंका-भारत के बीच हुई टेस्ट सीरीज में पहली बार डिसीजन रिव्यु सिस्टम (डीआरएस) इस्तेमाल किया गया था। डीआरएस का इस्तेमाल करते समय कप्तान के साथ सभी खिलाड़ियों को सचेत रहना होता है, क्योंकि मैच में रिव्यु सिस्टम सीमित ही होते हैं। डीआरएस में कप्तान के साथ सबसे अहम किरदार विकेटकीपर का होता है, क्योंकि विकेटकीपर का स्थान बिलकुल बल्लेबाज और अंपायर की सीध में होता है, तो एक विकेटकीपर को बाकी खिलाड़ियों के मुकाबले आउट और आउट न होने का अच्छे से पता होता है।
भारतीय कप्तान विराट कोहली रिव्यु सिस्टम लेने में बहुत भावनात्मक हो जाते हैं और अपनी भावनाओं में खो कर वह डीआरएस की मांग कर बैठते हैं। साथ ही उन्हें अपने गेंदबाजों पर भी अधिक भरोसा है लेकिन उनकी भावनाओं में कई बार टीम को रिव्यु सिस्टम गवाना पड़ता है। भारतीय टीम के लिए एकदिवसीय क्रिकेट में यह जिम्मेदारी भारत के पूर्व कप्तान और मौजूदा समय के बेहतरीन विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी के हाथों में होती है। उनके द्वारा लिया गया तक़रीबन हर एक रिव्यु सिस्टम सफल होता है। कप्तान कोहली और एमएस धोनी के बीच डीआरएस को लेकर खूब किस्से हाल फ़िलहाल देखे गए। कोहली का धोनी पर रिव्यु सिस्टम को लेकर भरोसा धोनी के आत्मविश्वास को ज्यादा बढ़ा देता है।
कोहली और धोनी द्वारा लिए गए डीआरएस के पलों पर एक नजर :भारत vs वेस्टइंडीज, त्रिनिदाद, जून 2017
भारतीय टीम वेस्टइंडीज के खिलाफ 6 साल बाद वनडे सीरीज खेल रही थी। सीरीज के पहले मैच में भारतीय टीम ने जीत हासिल कर दूसरे मैच में 311 रनों का मुश्किल लक्ष्य मेहमान टीम के सामने रखा। 311 रनों का पीछा करने उतरी वेस्टइंडीज की टीम की तरफ से शाई होप 81 रन बनाकर शानदार बल्लेबाजी कर रहे थे। इस दौरान कुलदीप यादव की एक गेंद पर होप को एलबीडब्ल्यू की अपील का सामना करना पड़ा लेकिन अंपायर ने उन्हें नॉटआउट करार दिया। भारतीय टीम के कप्तान कोहली ने तुरंत एमएस धोनी के कहने पर रिव्यु की मांग की और अंपायर ने नॉटआउट के फैसले को आउट में बदल दिया। धोनी की नजरों ने बड़ी ही बारिकी से उस फैसले को देखा और अपने कप्तान को रिव्यु लेने पर मजबूर कर दिया, जिसका नतीजा टीम को एक फॉर्म में चल रहे बल्लेबाज के विकेट के रूप में मिला।