बड़ी उम्र में डेब्यू करके क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने वाले 5 बल्लेबाज

खेल में उम्र सिर्फ एक नंबर नहीं है, और एथलीटों से बेहतर इस बात को कोई नहीं जानता। यह ऐसा पेशा है जहां खिलाड़ी युवा उम्र में शुरुआत करता है और कुछ दशकों के बाद संन्यास ले लेता है और वह बीच कुछ ऐसा कारनामा कर देते हैं जिसकी वजह से वह लंबे समय तक प्रशसंकों के दिलों में बस जाते हैं। मगर हर किसी को जल्दी शुरुआत करने का मौका नहीं मिलता। कुछ खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी युवा उम्र घरेलू क्रिकेट में खेलकर बिताई और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सफर उनका देरी से शुरू हुआ। हालांकि इससे क्रिकेटरों के प्रदर्शन में कमी नहीं आई और उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। आज हम आपको ऐसे ही पांच खिलाड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने देरी से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया, लेकिन इतिहास रचा और अपनी छाप भी छोड़ी, जिसे लोग हमेशा याद रखेंगे। #5) एडम वोग्स adam-voges-1471681322-800 ऑस्ट्रेलिया के आक्रामक बल्लेबाज एडम वोग्स को अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत करने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा। 28 की उम्र में उन्होंने देश के लिए अनियमित तौर पर वन-डे और टी20 क्रिकेट खेलना शुरू किया। 35 की उम्र में वोग्स टेस्ट इतिहास में डेब्यू मैच में शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज बने थे। उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ 130 रन की पारी खेली थी। इस बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत वह ऑस्ट्रेलिया एकादश के नियमित सदस्य बन गए। वह आगे बढ़ते चले गए। उन्होंने टीम में सर्वश्रेष्ठ स्थान हासिल किया और बांग्लादेश में टेस्ट टीम के उप-कप्तान बने। उन्हें चोटिल डेविड वॉर्नर की गैरमौजूदगी में यह जिम्मेदारी दी गई थी। #4) सईद अजमल saeed-ajmal-1471681366-800 पाकिस्तान के प्रमुख ऑफस्पिनर रहे सईद अजमल ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देरी से एंट्री की। उन्होंने अपना पहला टेस्ट 32 की उम्र में खेला। अजमल ने एक के बाद एक शानदार प्रदर्शन किए और आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ स्पिनरों में शुमार हुए। उन्होंने गेंदबाजी में काफी मिश्रण बना रखे थे जो बल्लेबाजों के लिए बड़ी मुसीबत बन चुका था। पाकिस्तान के स्पिनर को एक ही लाइन से दूसरा व ऑफस्पिन करते देखना काफी सुखद अनुभव रहा। उनके मिश्रण से बल्लेबाज को गेंद समझने में काफी दिक्कत आती थी। अजमल अपना सर्वश्रेष्ठ देकर विरोधी टीम के लिए खौफ बन चुके थे। उनके मिश्रण को बल्लेबाज समझ नहीं पाते थे और इसी वजह से वह सबसे खतरनाक स्पिनरों में से एक बने। #3) माइकल हसी michael-hussey-1471681391-800 'मिस्टर क्रिकेट' की उपाधि हासिल करने वाले हसी को किसी परिचय की जरुरत नहीं है। दर्शक के रूप में उनकी वन-डे व टेस्ट में निरंतरता देखना बहुत ही सुखद अनुभव था। हसी को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू करने के लिए लगभग एक दशक तक इंतजार करना पड़ा था। 28 की उम्र में वन-डे में जबकि 30 की उम्र में हसी ने टेस्ट में डेब्यू किया। टेस्ट क्रिकेट में दो वर्ष के बाद उनकी औसत बढ़कर 86।18 हो गई। हसी ने सबसे तेज 1000 टेस्ट रन पूरे किए। उन्होंने 164 दिनों में यह किया और 2006 में आईसीसी वन-डे प्लेयर ऑफ द ईयर का खिताब जीता। उन्होंने 2010 टी20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल तक साबित किया कि वह खेल के हर प्रारूप में शानदार प्रदर्शन करेंगे। वह 24 गेंदों में 60 रन आसानी से बना देते थे। हसी आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स के महत्वपूर्ण हिस्सा रहे। उन्हें पता था कि सफलता हासिल करने की कोई सीमा नहीं है और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देरी से एंट्री उन्हें उपलब्धियों को हासिल करने से नहीं रोक सकी। #2) बेसिल डी ओलिविरा basil-doliveira-against-australia-1471681425-800 बेसिल डी ओलिविरा एक महान क्रिकेटर थे, जिन्हें कोई भूल नहीं सकता। दक्षिण अफ्रीका में उनकी प्रतिभा की अनदेखी की गई। देश में रंगभेद कानून के कारण उन्हें प्रथम श्रेणी क्रिकेट नहीं खेलने दिया। बाद में कमेंटेटर जॉन अर्लोट और पत्रकार जॉन के डॉली की मदद से वह 1960 में इंग्लैंड में गए। उन्होंने 34 वर्ष की उम्र में डेब्यू किया। मगर उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने से कोई रोक नहीं सका। इंग्लैंड के लिए बेसिल ने 2,484 रन बनाए और दाएं हाथ से माध्यम तेज गेंदबाजी करके 47 विकेट भी लिए। अपना कौशल इस उम्र में दिखाकर उनके चाहने वालों की तादाद बढ़ चुकी थी और सभी को सिर्फ यही मलाल था कि ऐसी प्रतिभा को 35 में नहीं बल्कि 19 की उम्र में पहचान मिल जाना चाहिए थी। #1) एनामुल हक enamul-haque-1471681445-800 बाएं हाथ के स्पिनर ने 35 की उम्र में डेब्यू किया था। अंतरराष्ट्रीय टीम में इतनी देर से मौका मिलने के बावजूद हक ने करीब दस वर्ष खेला और इस दौरान उन्होंने 10 टेस्ट व 29 वन-डे खेले। उनके गेंदबाजी में मिश्रण की कमी के चलते वर्ष 2003 में उन्हें संन्यास लेना पड़ा। बांग्लादेश क्रिकेट में उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। खेल के प्रति उनके प्यार ने उन्हें मैदान से दूर नहीं जाने दिया और अब वन अंपायर हैं। उन्होंने 2006 में अंपायरिंग शुरू की। 2012 में टेस्ट मैच में उन्होंने बतौर अंपायर अपनी पारी का डेब्यू किया। वह बांग्लादेश के पहले अंपायर बने जो न्यूट्रल मैच में दायित्व निभा रहे हों।

Edited by Staff Editor
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