यह एक स्वीकृत तथ्य है कि महान क्रिकेटरों को राष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड से लगभग थोड़ी छूट दी जाती है। हर कोई बल्ले या गेंद के साथ खराब फार्म की अवधि से गुजरता है और महान खिलाड़ी भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। उनकी उम्र और फॉर्म पर उंगली खड़ी होती हैं लेकिन वह खिलाड़ी लंबे समय से टीम की मजबूती होते हैं या फिर उन खिलाड़ियों की काट जब तब मिल नहीं जाती है तब तक उन पर सवाल नहीं किये जाते हैं। ऐसे में घटती क्षमता और बढ़ती उम्र को देखते हुए चयनकर्ता के पास खिलाड़ी को ड्रॉप करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता है। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में बहुत से महान क्रिकेटरों को लंबे समय तक खराब दौर से गुजरने के बाद अपने करियर को आखिरकार अनिवार्य रूप से समाप्त करना ही पड़ा है। आइये नजर डालते हैं ऐसे ही पांच महान भारतीय खिलाड़ियों पर- #5 वीरेंदर सहवाग
अगर भारत के लिए कुछ बेहतरीन बल्लेबाजों की एक सूची बनानी है तो वीरेंदर सहवाग का नाम इस लिस्ट में निश्चित रूप से होगा। हालांकि 2011 के विश्व कप के बाद से उन्हें जिस तरह से खराब स्थिति का सामना करना पड़ा था, उसके बाद उन्हें अपने करियर के अंत तक पहुंचना पड़ा। जनवरी 2011 से अपने करियर के अंत तक अपने आखिरी 18 टेस्ट मैचों में उन्होंने केवल एक शतक जमाया और उनका औसत 28.62 का रहा, जो उनके करियर औसत 49.34 के बिलकुल विपरीत था। तथ्य यह है कि उन्होंने बल्लेबाजी में मदद के लिए चश्मा पहनने का निर्णय लिया लेकिन वह भी उनकी सहायता नहीं कर सका। एकदिवसीय क्रिकेट में उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया और 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ धमाकेदार 219 रन ठोक डाले। हालांकि, श्रीलंका के खिलाफ श्रृंखला में व उसके बाद 2012-13 में पाकिस्तान के खिलाफ लगातार दो विफलताओं के बाद सहवाग ने अपने करियर के अंत होने के संकेत दे दिये। आख़िरकार एक स्टार बल्लेबाज ने 2015 में अपने गिरते हुए करियर का अंत कर दिया। उन्होंने भारत के लिए अपना आखिरी मैच 2013 में खेला था। #4 दिलीप वेंगसकर
1980 के दशक में मुंबई के बल्लेबाज दिलीप वेंगसरकर भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज थे और लगभग 2 साल तक रेटिंग प्रणाली के अनुसार दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज रहे। हालांकि, नवंबर 1988 से फरवरी 1992 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे तक के अपने करियर के अंतिम कुछ सत्र उनकी जिंदगी के सबसे उथल-पुथल भरी अवधि थी जिस वजह से उन्हें आखिरकार खेल से रिटायरमेंट लेनी पड़ी। उस समय के 18 टेस्ट मैचों के दौरान उन्होंने एक भी शतक नहीं लगाया और उनका औसत 22.66 रहा (करियर औसत 42.13)। उनके संघर्ष को 1989 में वेस्टइंडीज के दौरे में विशेष रूप से देखा जा सकता था। हालांकि, 1991-92 का ऑस्ट्रेलिया दौरा उनका अंतिम दौर साबित हुआ क्योंकि 5 टेस्ट में वेंगसरकर का औसत केवल 17.55 था। उस समय अपने रिटायमेंट का फैसला उनके लिए सबसे आवश्यक साबित हुआ और वह उस दौरे से वापस अपने वतन लौट आये। #3 मोहिंदर अमरनाथ
एक खिलाड़ी जो 1983 विश्व कप के फाइऩल और सेमीफाइनल दोनों में भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी था, वह टेस्ट क्रिकेट में अपनी बेहद साहसी बल्लेबाजी के लिए और अधिक जाना जाता था। 1983 में मोहिंदर अमरनाथ ने वेस्टइंडीज और पाकिस्तान के रूप में दुनिया के दो सबसे अच्छे तेज गेंदबाजी आक्रमण का सामना किया और खूब सारे रन बटोरे। हालांकि उनके करियर में गिरावट 1986 के समय से आनी शुरु हुई और आखिरकार 1988 में उन्होंने अपने करियर का आखिरी टेस्ट खेला। अपने चिर प्रतिद्वदी पाकिस्तान के खिलाफ निराशजनक सीरीज के बाद वेस्टइंडीज के खिलाफ भी वह नाकाम साबित हुए। उस दौरान खेले गए 15 टेस्ट मैचों में उन्होंने 33.23 की औसत से रन बनाए (करियर औसत 42.50) और एक शतक लगाया। अमरनाथ ने उस श्रृंखला के बाद कोई भी टेस्ट नहीं खेला। #2 बिशन सिंह बेदी
कई लोगों के अनुसार बिशन सिंह बेदी उन महान स्पिनरों में से एक हैं जो कभी भारत के लिए खेले हैं और वास्तव में, उन्हें खेल के लिए सबसे महान बाएं हाथ के परंपरागत गेंदबाजों में गिना जाता है। 67 टेस्ट में 266 विकेट का आंकड़ा उन्हें भारत से सबसे अधिक सफल स्पिनरों में साबित करता है और साथ ही वह अपने करियर के दौरान 1960 के दशक के अंत में और 1970 के दशक में भारत के लिए कुछ मैच विजेताओं में से एक थे। हालांकि उनका खराब फॉर्म 1978 में पाकिस्तान के खिलाफ आया, जिसने उनके भाग्य को बदलने का फैसला किया। साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दो टेस्ट मैच में 10 विकेट लेने के बाद बेदी पाकिस्तान के खिलाफ अपनी निराशाजनक प्रदर्शन के कारण 3 टेस्ट में सिर्फ 6 विकेट ही हासिल कर सके। अपने करियर के आखिरी 11 मैचों में उन्होंने 30 विकेट लिए जिस दौरान उनका औसत 43.76 रहा (करियर औसत 28.71) और साथ ही वह इस दौरान एक भी बार पांच विकेट लेने में भी असफल रहे। उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 1979 में खेला और फिर रिटायमेंट की घोषणा कर दी। #1 कपिल देव
कभी-कभी विश्व रिकॉर्ड का पीछा करना थोड़ा मोहक हो सकता है और लेकिन कई बार ये मोह मुश्किल भरा भी साबित हो सकता है और ऐसा ही कपिल देव के साथ अपने करियर के अंत में हुआ है। वह भारत के और वास्तव में विश्व के मध्यम गति के शीर्ष स्विंग गेंदबाजों में से एक थे, हालांकि अपने करियर के अंत में उनके फॉर्म में गिरावट जरूर आयी। फिर भी, वह लगातार बढ़ रहे थे क्योंकि वह सबसे अधिक विकेटों लेने के विश्व रिकार्ड के काफी करीब थे और पिछले कुछ सालों में उनकी संख्या इस तथ्य को सही साबित भी कर रही थी। जनवरी 1992 से मार्च 1994 के बीच खेले गए अपने पिछले 19 टेस्ट में कपिल देव ने सिर्फ 49 विकेट लिए थे जिसमें एक बार भी पांच विकेट हासिल नहीं किये थे और उनकी स्ट्राइक रेट 80.3 (करियर स्ट्राइक रेट 63.9) तक बढ़ गई थी। तथ्य यह है कि उनके खराब फार्म से बहुत अधिक स्पष्ट हो गया, जब वह अपने विश्व रिकॉर्ड को प्राप्त करने के बाद सिर्फ एक और टेस्ट खेलने के बाद सेवानिवृत्त हो गए।