कहावत है कि समय किसी का इंताजर नहीं करता । सिर्फ वनडे क्रिकेट में ही नहीं उम्र सीमा दिक्कत बनती है, बल्कि टेस्ट क्रिकेट में भी उम्र ढलने के साथ खेलना मुश्किल हो जाता है । टेस्ट क्रिकेट कभी-कभी ज्यादा उम्र खिलाड़ियों के लिए और घातक साबित हुआ है । किसी भी महान क्रिकेटर की बड़ी-बड़ी पारियां हमारे जेहन में सालों तक ताजा रहती हैं, लेकिन समय बीतने के साथ उस तरह के प्रदर्शन में गिरावट आने लगती है । ओवल टेस्ट मैच में मैच विनिंग पारी के बाद पाकिस्तानी बल्लेबाज यूनिस खान के साथ भी ऐसा हुआ । उन्हें गेंद की लेंथ को पढ़ने में काफी दिक्कत होने लगी । वो पहले अनुभवी खिलाड़ी नहीं हैं, जिनके साथ ऐसा हुआ है, बल्कि कई दिग्गज खिलाड़ियों को दिक्कत हुई है । आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही क्रिकेटरों पर जो अपने पीक पर तो काफी शानदार रहे, लेकिन समय ढलने के साथ ही उनके प्रदर्शन में गिरावट आती गई । डिस्क्लेमर- इस पोस्ट का मतलब किसी भी महान क्रिकेटर की क्षमता पर उंगली उठाना नहीं है। 5. सर विव रिचर्ड्स शायद दुनिया के अकेले ऐसे बल्लेबाज जिनके क्रीज पर होने मात्र से विपक्षी गेंदबाजों के पसीने छूट जाते थे । विव रिचर्ड्स ने 1974 में अपना डेब्यू किया था और 80 के अंत तक वो अपने चरम पर रहे । लेकिन करियर के आखिरी सालों में उनके आंखों और हाथ का तालमेल उतना अच्छा नहीं रहा, जिसकी वजह से उन्होंने बड़े-बड़े गेंदबाजों के छक्के छुड़ा दिए । 20 मार्च 1989 तक सर रिचर्ड्स ने 104 टेस्ट मैचों में 52.83 की औसत से 7714 रन बनाए । इस दौरान उन्होंने 23 शतक लगाए । उस समय वो वेस्टइंडीज की बल्लेबाजी लाइन-अप की रीढ़ थे । लेकिन अगस्त 1991 में अपने संन्यास के समय तक उनका करियर उतना शानदार नहीं रहा । सर रिचर्ड्स ने अपने करियर के आखिरी पड़ाव में 17 टेस्ट मैचों में 34.41 की औसत से महज 826 रन बनाए । इस दौरान वो मात्र एक शतक लगा सके । हालांकि अपने विदाई टेस्ट मैच तक विव रिचर्ड्स वेस्टइंडीज के कप्तान थे । 4. कपिल देव कपिल देव को क्रिकेट के हर विभाग में महारत हासिल थी । वो भारत के पहले भरोसेमंद तेज गेंदबाज थे । 1978 में जब चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने अपना डेब्यू किया तो भारतीय तेज गेंदबाजों की अधिकतर गेंदे बल्लेबाज के बल्ले का बाहरी किनारा लेकर स्लिप में जाती थी, लेकिन कपिल के आने के बाद विकेटकीपर के हाथ में भी कैच जाने लगा । इंग्लैंड के बेहतरीन तेज गेंदबाज फ्रेड ट्र्यूमेन उन्हें काफी पसंद करते थे और 'दर्शक की खुशी' कहते थे । कपिल देव को कभी अपना जोड़ीदार तेज गेंदबाज नहीं मिला, जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी । लेकिन फिर भी उनकी न्यूजीलैंड के महान ऑलराउंडर रिचर्ड हैडली के साथ टेस्ट मैचों में एक दूसरे से ज्यादा विकेट लेने की प्रतिस्पर्धा चलती रही । लेकिन 1 जून 1992 से लेकर मार्च 1994 में अपने रिटॉयरमेंट तक वो 16 टेस्ट मैचों में मात्र 33 विकेट ले सके ।जबकि इससे पहले 115 टेस्ट मैचों में उन्होंने 401 विकेट लिए थे । हालांकि बल्ले से तो कपिल देव का शानदार प्रदर्शन जारी रहा, लेकिन पेस में कमी के कारण उनकी स्विंग में कमी आ गई । लेकिन फिर भी वो रिचर्ड हेडली का रिकॉर्ड तोड़ने में सफल रहे और जब उन्होंने संन्यास लिया तो उस समय वो टेस्ट मैचों में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज थे । 3.वसीम अकरम वसीम अकरम को कौन भूल सकता है । उनकी वो स्विंग गेंदबाजी अच्छे-अच्छे बल्लेबाजों के पसीने छुड़ा देती थी । डायबिटीज का रोगी होने के बावजूद वसीम अकरम की गेंदों में पैनापन कम नहीं हुआ । पाकिस्तान के इस महान तेज गेंदबाज ने 1985 में ऐतिहासिक ईडन गार्डन में अपना डेब्यू किया और 1999 तक 91 टेस्ट मैचों में 383 विकेट लिए । जिसमें उन्होंने 22 बार 5 एक मैच में 5 विकेट लेने का कारनामा किया । लेकिन समय बीतने के साथ ही उनकी गेंदों का पैनापन कम होता गया और आखिर के 13 टेस्ट मैचों में वो मात्र 31 विकेट ही ले सके । 2002 में वसीम अकरम ने टेस्ट मैचों से संन्यास ले लिया, लेकिन 2003 वर्ल्ड कप तो वो वनडे मैच खेलते रहे । 2. रिकी पोंटिंग 2000 के मध्य तक रिकी पोंटिंग दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक थे । अपने लंबे-लंबे शॉट से वो बड़े-बड़े गेंदबाजों के पसीने छुड़ा देते थे । ऑस्ट्रेलियाई टीम की कप्तानी करते हुए उन्होंने काफी रन बनाए और ऑस्ट्रेलियाई टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया । लेकिन समय बीतने के साथ उनके भी हाथ ढीले पड़ते गए । 10 दिसंबर 2010 से लेकर दिसंबर 2012 में अपने संन्यास तक पोंटिंग 18 टेस्ट मैचों में 34.12 की औसत से केवल 1058 रन ही बना सके । लेकिन उससे पहले उन्होंने 150 मैचों में 54.27 की शानदार औसत से 39 शतक लगाते हुए 12000 से भी ज्यादा रन बनाए । लेकिन दुर्भाग्यवश उनका पुल शॉट जो उनका सबसे मजबूत पक्ष था वही उनकी कमजोरी बन गया । उन्हीं के साथ खेले एक दिग्गज खिलाड़ी माइकल क्लार्क ने हाल ही में खुलासा किया कि अगर पोंटिंग संन्यास ना लेते तो ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ता उन्हें टीम से ड्रॉप भी कर सकते थे।
- सचिन तेंदुलकर
सचिन तेंदुलकर एक ऐसा नाम जिससे दुनिया का हर क्रिकेट फैंस भलीभांति परिचित है। सचिन ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत 1989 में की थी । वानखेड़े स्टेडियम में जब सचिन ने अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला तो उनकी विदाई के वक्त हर किसी की आंखें नम थीं । यहां तक कि टीम के साथी खिलाड़ियों की भी आंखें नम थीं, हर कोई दुनिया के सबसे बेहतरीन क्रिकेटर के क्रिकेट छोड़ने से दुखी था । हालांकि आखिर के कुछ सालों में सचिन का प्रदर्शन उतना खास नहीं रहा, जिसे देखकर महसूस होने लगा कि सचिन के संन्यास का वक्त करीब आ गया है । 2010/11 में दक्षिण अफ्रीका दौरे के दौरान उन्होंने डेल स्टेन को काफी अच्छे से खेला । लेकिन तेंदुलकर अपने आखिर के 23 टेस्ट मैचों में 32.34 की औसत से 1229 रन ही बना सके । दुनिया में सबसे ज्यादा शतक का रिकॉर्ड बनाने वाले इस बल्लेबाज के बल्ले से इस दौरान एक भी शतक नहीं लगा । अगर 2011 वर्ल्ड कप के बाद सचिन ने संन्यास ले लिया होता तो शायद 177 मैचों में 56.94 की औसत से 14, 692 रन पर उनके करियर का शानदार अंत होता । सचिन के संन्यास लेने के बाद कहा जाने लगा था कि भारतीय फैंस क्रिकेट देखना कम कर देंगे, लेकिन यहीं से विराट कोहली का उदय हआ । कोहली ने सचिन को अपना आदर्श मानकर उनकी कमी पूरा करने की कोशिश की ।