राहुल द्रविड़ से हम जीवन के ये 5 मंत्र सीख सकते हैं

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विश्व क्रिकेट में बहुत कम ही क्रिकेटर हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय महान राहुल द्रविड़ के सामान उनके व्यक्तित्व के लिए प्रशंसा मिली है और वो प्रशंसा सिर्फ अपने देश तक न फैली हुई हो। विश्व के शीर्ष बल्लेबाजों में से एक के रूप में उनका शानदार कैरियर और अब रिटायर होने के बाद कोच के रूप में बहुत सारे लोगों को क्रिकेट से जुड़े हुए सबक सिखा रहे हैं। आइये एक नज़र डालें उनके जीवन से मिलने वाले कुछ सबको पर जो हमे राहुल द्रविड़ के जीवन से सीखने को मिलते है: 5 धैर्य धैर्य एक क्रिकेटर के खेल जीवन को कैसे बदल उसे शिखर पर पंहुचा सकता है, इसका जीता जागता प्रमाण हैं राहुल द्रविड़। धैर्य बनाये रखना पूरी तरह से सफलता की राह पर हमारी सुरक्षा तय करता है, पर सभी का इस धैर्य को बनाये रखना बेहद कठिन काम है। अक्सर चीज़ें आपके विरुद्ध ही जाती आपको मिलेंगी पर इसी में खुद पर काबू बनाये रखना ही धैर्य है। क्रिकेट में उच्चतम स्तर पर सफल होने के लिए एक टेस्ट मैच के बल्लेबाज को बहुत ही धैर्य के साथ खेलना चाहिए क्योंकि खराब गेंदें कम ही आती हैं। इस मामले में द्रविड़ अपने आप में अकेले खिलाड़ियों में से एक थे, और उनके 16 वर्ष के करियर के दौरान वह अक्सर एक बड़े स्कोर के साथ अपनी टीम के शीर्ष बल्लेबाजी क्रम को बांधे रखते थे। द्रविड़ बड़े स्ट्रोक के लिए नहीं जाते थे, हालांकि वह ऐसा करने में काफी सक्षम थे और खराब गेंदों का इंतजार करते थे। उनकी इस क्षमता ने गेंदबाजों को अलग-अलग चीजों का इस्तेमाल करने पर मजबूर किया और अंततः ख़राब गेंदें सामने आने लगती थी। 4 अपने तरीकों पर भरोसे के साथ समर्पण बनाये रखना 61443-1509914654-800 यह अक्सर देखा जाता है कि जब चीजें हमारे विरुद्ध जाने लगती हैं, तो लोग हम अपने तौर तरीकों में बदलाव लाते हैं और नई चीजों का प्रयास करते हैं, जो कभी-कभी काम कर सकते हैं या नहीं भी। ज्यादातर ऐसा करने पर विफलता ही मिलती है और यह अक्सर क्रिकेटरों के साथ भी होता है, जो अक्सर अपनी तकनीक या खेलने के तरीकों में बदलाव की कोशिश करते हैं, जब भी उनके फॉर्म में गिरावट आती है। कई अन्य महान बल्लेबाजों की तरह द्रविड़ भी कई बार अपने करियर में कठिन दौर से गुजरे थे, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में अपनी तकनीक या अपनी बल्लेबाजी शैली को बदलने की कोशिश करने के बजाय वह अपनी उसी तकनीक को बनाये रखते हुए एक मनोवैज्ञानिक विश्वास के माध्यम से और मजबूत हो गए। कोई भी महान बल्लेबाज इस खेल में लंबे समय तक तभी सफल रह सकता है, यदि उसे अपने खेलने के तरीके में बहुत विश्वास हो और प्रतिकूल समय में भी अपनी शैली बदलाव लाने की बजाए अपनी बल्लेबाजी तकनीक को बदलने की बजाये अपने खेल को उसमे ढाला हो। 3 सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता ebf7d-1509914733-800 जब राहुल द्रविड़ के अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरआत हुई, तो वह एक टेस्ट बल्लेबाज के रूप में देखे गये थे और एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए उन्हें काबिल नहीं माना जाता था। इसके पीछे कारण भी उचित रहे, क्योंकि अपने कैरियर के पहले भाग में वह काफी धीमी गति से बल्लेबाज़ी करने वाले बल्लेबाज़ रहे, जिनके रन काफी धीमी गति से आते थे। हालांकि, उन्होंने तीन वर्षों तक अपने करियर में काम किया और 1998-99 में न्यूजीलैंड दौरे के दौरान एक शानदार प्रदर्शन के साथ भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई। द्रविड़ को टेस्ट मैचों में शानदार प्रदर्शन के बाद चुना गया। इसके बाद वापस कभी मुड़े नहीं 1999 के विश्व कप को उन्होंने सबसे ज्यादा रन स्कोर करने वाले बल्लेबाज़ के रूप में समाप्त किया और इस प्रारूप में करीब 11000 रन के साथ भारत के सबसे बेहतरीन वनडे बल्लेबाजों में से एक बन गये। खेल के प्रारूप के अनुसार अपने खेल को ढालने की क्षमता से यह दिखता है कि द्रविड़ को क्यों भारत के सबसे महान बल्लेबाजों में से एक माना जाता है और कैसे किसी भी मुश्किल के मुताबिक खुद में क्षमता विकसित की जाये, यह निश्चित रूप से एक अच्छा सबक द्रविड़ से मिलता है। 2 टीमवर्क 80a32-1509914812-800 किसी भी टीम स्पोर्ट्स में एक खिलाड़ी के लिये एक टीम खिलाड़ी होना चाहिए, और ऐसे में वह खिलाड़ी टीम की जीत में अहम किरदार तो निभाता ही है, साथ ही टीम का एक अहम हिस्सा बन कर उभरता है। द्रविड़ को यही विशेषता उनके टीम के अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाती थी कि टीम में वरिष्ठ खिलाड़ियों में से एक होने के बावजूद टीम के लिए जरूरी काम करने की उनमे सहज गुणवत्ता थी। जब भारतीय टीम ने सौरव गांगुली की कप्तानी में एक अतिरिक्त बल्लेबाज़ खिलाने का फैसला किया, तो राहुल द्रविड़ ने विकेटकीपिंग दस्ताने पहनने की पहल की और फिनिशर की भूमिका निभाने के लिए नंबर 5 पर जा कर खेले। विकेटकीपिंग एक कठिन काम है और यह तथ्य कि द्रविड़ ने इसे निभाया है, यह दर्शाता है कि उन्होंने कैसे टीम को खुद से ऊपर रखा दर्शाता है। इसके अलावा, नंबर 5 के नीचे जा के बल्लेबाज़ी करने के चलते उनके बड़े रन बनाने के अवसर सीमित हो गये, फिर भी वह भारत के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ियों में से एक बने, क्योंकि वह उस अवधि के दौरान खेल में सबसे अच्छे खिलाड़ी बने थे। 1 कब अंत करना है इसकी जानकारी होना b3c60-1509914876-800 कुछ ही ऐसे क्रिकेटर हुए है जिन्हें अपने करियर में फिट रहते हुए संन्यास लेने का अवसर प्राप्त होता है और इसकी संभावना नहीं होती है कि उन्हें चयनकर्ताओं द्वारा बाहर कर दिया जाएगा। राहुल द्रविड़ निश्चित रूप से उस श्रेणी में आते है, जब उन्हें लगा कि वह अपने सर्वश्रेष्ठ पर नहीं है और फिर भी आराम से वह कम से कम एक और साल तक खेल सकते थे,उन्होंने सन्यास लिया। वह 2011 में इंग्लैंड के दौरे पर भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ थे और उन्होंने 3 शतक बनाए। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के 2011-12 के दौरे उनके लिए रनों का सुखा रहा और बजाय की कुछ और दौरों तक खेलना जारी रखे, द्रविड़ ने वही पर अपना अंतराष्ट्रीय करियर अंत करने का फैसला लिया। आप जिस खेल या व्यवसाय से जुड़े हो उससे दूरी बनाना आसान फैसला नही होता है, और फिर भी बिना किसी दिखावे या शोर-शराबे के अंत कर चल देने का द्रविड़ का फैसला निश्चित रूप एक बड़ा सबक है।

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