जब राहुल द्रविड़ के अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरआत हुई, तो वह एक टेस्ट बल्लेबाज के रूप में देखे गये थे और एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए उन्हें काबिल नहीं माना जाता था। इसके पीछे कारण भी उचित रहे, क्योंकि अपने कैरियर के पहले भाग में वह काफी धीमी गति से बल्लेबाज़ी करने वाले बल्लेबाज़ रहे, जिनके रन काफी धीमी गति से आते थे। हालांकि, उन्होंने तीन वर्षों तक अपने करियर में काम किया और 1998-99 में न्यूजीलैंड दौरे के दौरान एक शानदार प्रदर्शन के साथ भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई। द्रविड़ को टेस्ट मैचों में शानदार प्रदर्शन के बाद चुना गया। इसके बाद वापस कभी मुड़े नहीं 1999 के विश्व कप को उन्होंने सबसे ज्यादा रन स्कोर करने वाले बल्लेबाज़ के रूप में समाप्त किया और इस प्रारूप में करीब 11000 रन के साथ भारत के सबसे बेहतरीन वनडे बल्लेबाजों में से एक बन गये। खेल के प्रारूप के अनुसार अपने खेल को ढालने की क्षमता से यह दिखता है कि द्रविड़ को क्यों भारत के सबसे महान बल्लेबाजों में से एक माना जाता है और कैसे किसी भी मुश्किल के मुताबिक खुद में क्षमता विकसित की जाये, यह निश्चित रूप से एक अच्छा सबक द्रविड़ से मिलता है।