कुछ ही ऐसे क्रिकेटर हुए है जिन्हें अपने करियर में फिट रहते हुए संन्यास लेने का अवसर प्राप्त होता है और इसकी संभावना नहीं होती है कि उन्हें चयनकर्ताओं द्वारा बाहर कर दिया जाएगा। राहुल द्रविड़ निश्चित रूप से उस श्रेणी में आते है, जब उन्हें लगा कि वह अपने सर्वश्रेष्ठ पर नहीं है और फिर भी आराम से वह कम से कम एक और साल तक खेल सकते थे,उन्होंने सन्यास लिया। वह 2011 में इंग्लैंड के दौरे पर भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ थे और उन्होंने 3 शतक बनाए। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के 2011-12 के दौरे उनके लिए रनों का सुखा रहा और बजाय की कुछ और दौरों तक खेलना जारी रखे, द्रविड़ ने वही पर अपना अंतराष्ट्रीय करियर अंत करने का फैसला लिया। आप जिस खेल या व्यवसाय से जुड़े हो उससे दूरी बनाना आसान फैसला नही होता है, और फिर भी बिना किसी दिखावे या शोर-शराबे के अंत कर चल देने का द्रविड़ का फैसला निश्चित रूप एक बड़ा सबक है।