एक ऐसा खिलाड़ी, जो इतने लंबे समय तक खेलता रहा हो, हमेशा विफलता के बाद फिर से लौटना पड़ता है। हालांकि, यह तब और कठिन हो जाता है जब उसका कैरियर अपने अंत की और हो, यही कारण है कि, 2006 और 2007 के बीच की अवधि के बीच ख़राब समय के बाद तेंदुलकर की उल्लेखनीय वापसी, उनके करियर से प्राप्त होने वाली जीवन की महान सीखों में से एक है।
टेनिस एल्बो से पीड़ित होने के बाद, उनका कैरियर समाप्ति की ओर था, लेकिन इससे लड़ने और भारतीय टीम में वापस आये। मगर वापसी के बाद, उनका ख़राब फार्म से पीछा नही छुटा। इस दौरान, 'एंडुल्लर' जैसी शीर्षकों वाली खबरों के दौर से निराश हुए, लेकिन आखिरकार उन्होंने 2007 से अपने कैरियर के अंत 2013 तक कई शतक जमाए। इसके अलावा, उन्होंने भारत के विजयी 2011 विश्व कप अभियान में दो शतक बनाए और वह उस टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे, जो धोनी की कप्तानी में टेस्ट में विश्व नंबर 1 बनी।
उनकी वापसी शानदार रही और यह तथ्य कि उन्होंने अपने करियर के सबसे ख़राब दौर पर निराशा में नहीं उम्मीद को नही छोड़ा, अपने आप में एक सबक है।