सौरव गांगुली से हम जीवन के ये 5 मंत्र सीख सकते हैं

देश की कप्तानी कई खिलाड़ियों ने की है, व निकट भविष्य में कई और करेंगे। लेकिन भारतीय क्रिकेट के कप्तानों की जब बात होगी तो सौरव गांगुली का नाम हमेशा शीर्ष में रहेगा। गांगुली भारत के साहसिक कप्तानों में से एक हैं, जिन्होंने टीम को बेहद शानदार तरीके से मैनेज किया। बाएं के इस स्टायलिश बल्लेबाज ने टेस्ट व वनडे टीम को बिल्कुल नया अंदाज दिया। जब भारतीय टीम मैच फिक्सिंग के बुरे दौर से गुजर रही थी, तब गांगुली के कंधे पर टीम की कप्तानी करने का जिम्मा आया। लेकिन गांगुली ने इस चुनौती को स्वीकार करते टीम के प्रदर्शन में सुधार किया। टीम देश के अलावा विदेशों में भी सफल रही। साल 2000 से लेकर 2011 तक जिस टीम ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई दी, वह प्रिंस ऑफ कोलकाता की बनाई हुई थी। भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक सौरव गांगुली की कप्तानी से हम ये 5 जीवन-मंत्र सीख सकते हैं, जिन्होंने उन्हें महान बनायाः कभी न सुनने वालों में 20 साल के होने से पहले ही गांगुली का चयन वर्ष 1992 की बेंसन व हेज वर्ल्ड सीरिज के लिए भारतीय टीम में हो गया था। ब्रिसबेन के मैदान में वेस्टइंडीज के खिलाफ गांगुली ने डेब्यू किया था। ब्रिसबेन की तेज व उछाल लेती हुई विकेट पर गांगुली एंडरसन कमिंस का शिकार हुए थे। (वीडियो सौजन्य: रोबलइंडिया 2) चार साल के वनवास के बाद गांगुली ने दोबारा भारतीय टीम में वापसी की। लेकिन आलोचकों ने उनके इस चयन को कोटा पिक बताया। हालांकि कलकत्ता के इस बल्लेबाज़ ने आलोचकों की बातों पर गौर न करते हुए बल्ले से शानदार जवाब दिया। गांगुली ने लॉर्ड्स के बाद ट्रेंटब्रिज के मैदान पर शतकीय प्रहार करके विश्व क्रिकेट में अपने आगमन का शंखनाद कर दिया। वह इतिहास के तीसरे बल्लेबाज़ बने जिसने अपने पहले दोनों मैचों की पहली पारी में शतक बनाया है। गांगुली ने जिस अंदाज में अपने आलोचकों को चुप कराया उससे उनका मुंह बंद हो गया था। गांगुली ने अक्सर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है, उन्होंने जिन्दगी में कभी भी हार न मानने का जज्बा बनाकर रखा है। ऐसे में उनसे हम इस खास अंदाज को सीख सकते हैं, जिससे हमारा जीवन आसान होगा। ढींग हांकने वाले से भयभीत न हों इमरान खान की कप्तानी में 1980 में जिस तरह से पाकिस्तानी टीम को वेस्टइंडीज के सामने कमजोर माना जाता था। उसी तरह से साल 2000 में सितारों से सजी ऑस्ट्रेलियाई टीम के सामने भर्ती टीम को कमजोर माना जाता था। लेकिन ईडन गार्डन में भारतीय टीम ने चमत्कारिक प्रदर्शन करते हुए क्रिकेट के इतिहास की सबसे लोकप्रिय सीरीज को 2-1 से जीत लिया। इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय वीवीएस लक्ष्मण व राहुल द्रविड़ की रिकॉर्ड साझेदारी और हरभजन सिंह के हैट्रिक लेने वाले स्पेल को जाता था। इसके अलावा इस पूरी सीरीज में गांगुली की कप्तानी का भी असर देखने को मिला था। जिसमें स्टीव का टॉस के लिए इंतजार करवाना, अनुभवी सचिन से पहले लक्ष्मण को बल्लेबाज़ी के लिए भेजना और खिलाड़ियों में विश्वास पैदा करना गांगुली का अहम निर्णय रहा था। गांगुली ने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को टीम पर हावी होने से पहले ही उन्हें हर मौके पर मुंहतोड़ जवाब दिया। गांगुली ने अपनी कप्तानी में भारतीय टीम में लड़ने का जज्बा पैदा किया। जिससे खिलाड़ियों में जीत हासिल करना का विश्वास जागा। जिसे हासिल करना भारत के लिए हमेशा चुनौती भरा रहा था। गांगुली के इस अंदाज से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। जिसमें सबसे अहम कभी किसी चीज से भयभीत नहीं होना चाहिए। मिले मौके को भुनाना पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली को ऑफ़ साइड का भगवान कहा जाता है। उनके स्टांस की भी खूब चर्चा रही है। हालांकि विदेशों में तेज विकेटों पर उन्हें बाउंसर से थोड़ी बहुत दिक्कत हुई है। लेकिन उन्होंने मौका मिलने पर अपने करारे अंदाज में जवाब भी दिया है। साल 2003/04 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था। जहां आलोचकों ने सीरिज से पहले ही गांगुली की आलोचना शार्ट गेंद के सामने परेशानी को लेकर शुरू कर दिया था। लेकिन पहला टेस्ट गाबा में हुआ जहाँ गांगुली ने सबकी बोलती बंद करते हुए 196 गेंदों में 144 रन ठोंक दिए। ये स्कोर ऑस्ट्रेलिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी आक्रमण के खिलाफ उन्होंने बनाया था। भारत ने इतिहास रचते हुए इस सीरिज को 1-1 से बराबर किया था। इसलिए हमें अपने आलोचकों से डरना नहीं चाहिए, और आलोचना को सकारात्मक रूप से लेकर मिले मौके को भुनाना चाहिए। क्योंकि मौजूदा दौर में जिस तरह का माहौल है, उसमें प्रोफेशनल क्रिकेट में आपको लगातार अच्छा खेलना ही होगा। विश्वास दिखाना ही लीडरशिप है नैसर्गिक लीडर की पहचान और उनका मिलना बहुत ही कम बार होता है। अमेरिकी लेखक टॉम पीटर ने कहा है, “लीडर फॉलोवर्स नहीं बनाते हैं, बल्कि वे बहुत से लीडर बनाते हैं।” गांगुली की कप्तानी में यही चीज देखने को मिली थी, जिससे वह सच्चे लीडर साबित हुए थे। गांगुली की कप्तानी में टीम इंडिया बदलाव के दौर से गुजर रही थी। इस दौरान गांगुली ही थे, जिन्होंने हरभजन सिंह, जहीर खान, वीरेंदर सहवाग, युवराज सिंह और एमएस धोनी जैसे खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया और उन्हें विश्व क्रिकेट का लीडर बना दिया। पाकिस्तान के खिलाफ उनके एक निर्णय ने धोनी को साल 2005 में हीरो बना दिया था। धोनी ने अपनी 148 रन की पारी से लोगों अभिभूत किया था। लेकिन गांगुली ने ही उन्हें तीसरे नंबर पर भेजा था। यही नहीं गांगुली ने जो टीम तैयार की थी, उसने साल 2011 में भारत को विश्व विजेता बनाया था। उस टीम के ज्यादातर खिलाड़ी गांगुली की कप्तानी में निखरे थे। जिनमें से हर किसी में एक छुपा हुआ लीडर था। गांगुली की कप्तानी की ये खासियत थी कि वह सबको आगे बढ़ने का मौका देते थे। बुरे दौर को दोबारा वापसी करने के लिए एक प्लेटफार्म की तरह इस्तेमाल करें सौरव गांगुली के क्रिकेट करियर का सबसे बड़ा विवाद ग्रेग चैपल से हुआ था। गांगुली ने बतौर खिलाड़ी हरफनमौला क्रिकेट खेला और कप्तान के तौर वह निडर और एकतरफा सोच वाले फैसले लेने के लिए जाने जाते थे। लेकिन चैपल विवाद से उनके करियर पर काफी फर्क पड़ा। जॉन राईट के बाद गांगुली की पसंद के ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज ग्रेग चैपल भारत के कोच बने। लेकिन धीरे-धीरे गांगुली से उनकी जंची नहीं और पहले गांगुली को कप्तानी गयी और बाद में उन्हें टीम से भी बाहर कर दिया गया। जिसके बाद गांगुली ने दिलीप ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया और टीम में उन्होंने वापसी की। वापसी के बाद गांगुली ने टेस्ट और वनडे मिलाकर 55 मैचों में 3111 रन बनाये। जहां उनका औसत 45 का रहा। यहां तक की उन्होंने संन्यास भी अपनी शर्तों पर लिया। गांगुली की इस वापसी से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, ज़िन्दगी में हम क्या हो सकते हैं असफल ही न! लेकिन क्या हम असफलता के बाद घर में बैठ जाएँ, बिलकुल नहीं क्योंकि असफलता के बाद मिली सफलता हमें और मजबूत और बेहतर इन्सान बनाती है। गांगुली ने कभी हार नहीं मानी और बैठने के बजाय लड़ना जारी रखा। लेखक- राम कुमार, अनुवादक-जितेन्द्र तिवारी