भारतीय क्रिकेट के इतिहास कई ऐसे सलामी बल्लेबाजों के नाम रहे जिन्होंने क्रिकेट की दुनिया में न सिर्फ एक सलामी बल्लेबाज़ बल्कि क्रिकेट के महान खिलाड़ी के तौर पर अपनी पहचान बनाई। हालांकि सलामी बल्लेबाज़ी के तरीके को बदलने और विपक्ष पर आते ही आक्रमण करने के एक नये दृष्टिकोण कोस्थापित करने की बात जब भी होगी तो वीरेंदर सहवाग उसकी शुरुआत करने वाले खिलाड़ी के तौर पर देखे जायंगे। अक्सर सत्र भर में ही टेस्ट मैचों की दिशा को बदल देने के कारण, सहवाग ने दर्शकों को आकर्षित किया और भारत को खराब पिचों पर भी जीतने में सक्षम बनाया। 50 ओवर प्रारूप में, उनकी तेज़ शुरूआत 2011 की विश्व कप की विजेता टीम का एक अहम पहलू भी था, जिसके चलते भारतीय लाइनअप एक मजबूत बैटिंग लाइनअप भी बन गई। खेल से रिटायर होने के बावजूद, नजफगढ़ के 'नवाब' आज भी ट्विटर पर अपनी मनोरंजक बातों से लोगो का मनोरंजन जारी रखे हुए हैं। आईये एक नज़र डालते हैं उनके जीवन की ऐसी ही पांच बातों पर जो एक आम इन्सान के लिये अहम सीख बन सकती हैं।
सहवाग का नाम आते ही सबको बतौर सलामी बल्लेबाज़ खेली गयी उनकी ताबड़तोड़ पारियाँ ही याद आती है, लेकिन उनके क्रिकेट करियर की शुरुआत एक ऑफ-स्पिन ऑलराउंडर के तौर पर हुई थी, जिसे निचले क्रम के साथ मिलकर तेज़ रन बनाने की जिम्मेदारी मिली थी। उनकी पहली पहचान बनाने वाली पारी आई, 2001 बैंगलोर एकदिवसीय में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ, जब एक तेज अर्धशतक और तीन विकेट के लिए उन्हें उनका पहला 'मैन ऑफ द मैच' पुरस्कार भी हासिल हुआ। https://youtu.be/lyUzlJeQYtY अनुभवी सचिन तेंदुलकर को पैर की चोट के चलते जब बाहर होना पड़ा, तब कप्तान सौरव गांगुली ने श्रीलंका में 2001 के कोको कोला कप के नौवें मैच के दौरान सहवाग को अपने साथ पारी की शुरुआत करने को कहा। मिले हुए मौके का पूरा फायदा उठाते हुए दाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ ने न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत के लिए एक आसान जीत तो तय ही की साथ ही मात्र 70 गेंद पर शतक लगाया। हालांकि उन्हें दोबारा मध्य-क्रम में स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन टीम प्रबंधन ने एक सलामी बल्लेबाज के रूप में उनके कौशल का ध्यान रखा। 2002 के इंग्लैंड दौरे के दौरान, सहवाग को अस्थायी सलामी बल्लेबाज के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्होंने ट्रेंट ब्रिज में शतक जड़ दोनों प्रारूपों में इस जगह को अपना बनाया। जिस तरीके से सहवाग ने टेस्ट और एकदिवसीय दोनों में पारी की शुरुआत करने के लिये मिले अवसरों का लाभ उठाया, वह संभावनाओं और अवसरों की पहचान कर उनका लाभ उठाना सिखाता है। जैसा कि इस दिल्ली के धुरंधर ने कर के दिखाया, कि यदि अवसर सामने हो तो उसे लपकने में देरी नही करनी चाहिये। # 4. अपनी पहचान बनाना अपने करियर के अंतिम समय पर सहवाग ने यह स्वीकार किया कि वह जब पहली बार भारतीय टीम में शामिल हुए तो वह सचिन तेंदुलकर की तरह बल्लेबाजी करना चाहते थे। इस सलामी बल्लेबाज ने साथ ही कहा कि, "मुझे एहसास हुआ कि केवल एक ही तेंदुलकर हो सकता है और मैंने अपना स्टांस और बैक-लिफ्ट बदल दिया। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपना खेल बदलना चाहिए और मैंने यह किया। उसके बाद, मैं अपनी तकनीक से खेल रहा था।" जब सहवाग क्रिकेट के मैदान पर उतरे तो तेंदुलकर के साथ समानता की बात होनी ही थी। क्रीज पर समय गुजारते वक्त उनके हर एक शॉट से लेकर उनके खड़े होने के तरीके तक सहवाग ने दिग्गज बल्लेबाज का अनुकरण किया। हालांकि, जैसे-जैसे लोगों ने सचिन के साथ उनकी समानता की चर्चा करना शुरू किया, उन्होंने अपनी खुद की पहचान बनाने की आवश्यकता को समझा और धीरे-धीरे अपनी एक खिलाड़ी के तौर पर अलग पहचान बनाई। जैसा अक्सर कहा जाता है, प्रत्येक व्यक्ति के पास उसकी अनूठी शक्तियां और कमजोरियां भी होती हैं। बस उसकी खोज और पहचान करने की देरी होती है। सही कोशिश करने पर हमें खुद के चरित्र विकास में मदद मिलती है। # 3. लीक से हट कर परंपराएं तोड़ना
# 2. प्रत्येक बच्चे के अन्दर के खिलाड़ी का विकास करनाबचपन में सहवाग क्रिकेट सीखने के लिये 5 घंटों की यात्रा करते थे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मौजूदा और साथ ही साथ भविष्य की पीढ़ी के छात्रों में खेल और शिक्षा का संतुलित बना रहे, इस प्रतिष्ठित क्रिकेटर ने अपने नाम पर एक स्कूल खोला है। जिसका नाम 'सहवाग इंटरनेशनल स्कूल' है, हरियाणा स्थित इस शैक्षणिक संस्थान में शिक्षा और खेल दोनों ही विधाओं को महत्व दिया जाता है। हालांकि भारत में खेलों का बुनियादी ढांचा हर साल मजबूत हो रहा है, फिर भी भारत खेल में ताक़त बनकर तब तक नही उभर सकता जब तक कि देश के बच्चों के बीच खेल संस्कृति स्थापित करने को महत्व नहीं दिया जाता। ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तरह हमे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगातार सफलता तभी मिलेगी जब बचपन से ही हम खेलों को गले लगाने की परंपरा की शुरुआत करेंगे। https://youtu.be/p5S9LuRVTyg इस प्रकार, इस तरह के एक शैक्षिक संस्थान को खोलने की सहवाग की पहल ने न केवल उनके पिता के सपने को पूरा किया बल्कि आधुनिक खिलाड़ियों को विभिन्न खेलों में भाग लेने के लिए और पूरी तरह से विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया। वर्तमान पीढ़ी के माता-पिता के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि वे अपने बच्चों को उनके वीडियो गेम से दूर करें और असली खेल गतिविधियों का हिस्सा बनायें। # 1. व्यंग की खुराक हमारे अंदर का मनोबल बढ़ाता है 13 लाख से ज्यादा फ़ॉलोवर्स के साथ, सहवाग ट्विटर पर सबसे लोकप्रिय पूर्व क्रिकेटरों में से एक है। उनकी बढ़ती लोकप्रियता का प्रमुख कारण उनके ट्वीट की व्यंगात्मक प्रकृति है। वह नियमित तौर पर मनोरंजक ट्वीट करते रहते हैं और हास्य की खुराक बनाये रखते हैं। किसी पूर्ववर्ती समकालीन या किसी सक्रिय क्रिकेटर को अपने शानदार ट्वीट से जन्मदिन की बधाई देना, और अपने त्वरित जवाबों से रोचकता बनाये रखना उनकी पहचान है। आज की दुनिया के इस तनावपूर्ण माहौल में, हम अक्सर व्यंग को भूल जाते हैं। सहवाग अपने ट्विटर पेज के माध्यम से जिस तरह से व्यंग के माध्यम से हल्का-फुल्का मौहाल बनाये रखते है, और हमे कैसे व्यंगात्मक लहजे के साथ जीवन की चिंताओं से कुछ पलों के लिये दूर हों, खुद को भी बेहतर इंसान बनाया जाये और अपना मनोबल बढ़ाये रखा जाये सिखाते हैं।