2011 में वानखेड़े स्टेडियम में मौजूद जनता प्रसन्नता से झूम रही थी तो वही इस जीत के सभी नायक बीच मैदान पर अपनी भावनायें रोक पाने में सक्षम नही थे। युवराज की आंखों से बह रहे आंसुओं से सबको यही लगा की ये एक खिलाड़ी के लिये सबसे बड़े खिताब को जीतने की ख़ुशी थी। सही कहा जाये तो यदि किसी चित्र से हजार व्यक्त होते है, तो यह उनमें से एक था। 2011 के विश्व कप की जीत के खाफी बाद यह खुलासा हुआ कि वह पूरा टूर्नामेंट एक भारी शारीरिक दर्द के साथ खेले थे। बार-बार खांसने के और सांस लेने में कठिनाइयों का सामना करते हुए, युवराज ने क्रिकेट के मैदान पर अपने देश की अगुवाई करने के लिए इस पीड़ा का सामना किया था। कैसे दर्द से लड़कर सफलता अर्जित की जाती है यह उसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उनके लगातार बेहतरीन प्रदर्शन के लिये युवराज को इस टूर्नामेंट का, 'प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' सम्मान दिया गया था। उस यादगार फाइनल के गुज़रे छह साल से अधिक का समय बीत चुका है। फिर भी, जीवन की इतनी बड़ी जंग लड़ना और उनका दृढ़ संकल्प सभी को याद है। जब एक विजेता कैसे शारीरिक दर्द को हराता है, और शिखर तक पहुचता है, इससे बहतर सबक शायद ही कहीं मिले।