भारतीय गेंदबाजों द्वारा किये गये 5 यादगार प्रदर्शन

भारतीय क्रिकेट पर अगर कोई किताब लिखा जाए, तो उस किताब के अधिकांश पन्ने बल्लेबाजों के शानदार पारियों से भरे मिलेंगे। आखिर हो भी क्यों ना, भारत ने विश्व क्रिकेट को सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, गुंडप्पा विश्वनाथ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे कई महान बल्लेबाज दिए हैं। एक समय ऐसा था जब भारतीय टीम की जीत या हार उनके बल्लेबाजों के प्रदर्शन पर टिकी होती थी और भारतीय टीम को दुनिया का सबसे मजबूत बल्लेबाजी क्रम वाला टीम माना जाता था। हालांकि धीरे-धीरे भारत अपने इस छवि से बाहर आया है। खासकर 90 के दशक से जब श्रीनाथ और कुंबले जैसे गेंदबाज टीम इंडिया का हिस्सा बने। बाद में इसमें जहीर खान, हरभजन सिंह, आशीष नेहरा, इरफान पठान का नाम भी जुड़ा। फिलहाल वर्तमान भारतीय गेंदबाजी आक्रमण को भारतीय टीम का सार्वकालिक श्रेष्ठ गेंदबाजी आक्रमण माना जा रहा है, जिसमें अश्विन, जडेजा, शमी, भुवी, बुमराह और उमेश जैसे विविधता से भरे गेंदबाज हैं। इनकी सबसे खास बात यह है कि इनके प्रदर्शन में निरंतरता है। इससे पहले विश्व स्तरीय गेंदबाजों की सूची में भारत के पास सिर्फ कपिल देव और बिशन सिंह बेदी के अगुवाई वाले स्पिन चौकड़ी का नाम ही होता था। तो इसी बहाने आज चर्चा भारतीय गेंदबाजों के 5 सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों पर, जो बल्लेबाजों की दबदबे वाली क्रिकेट बुक में शामिल होने की क्षमता रखते हैं। #एस श्रीसंत : दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 40/5 (जोहांसबर्ग, 2006)

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2006 में दक्षिण अफ्रीका गई टीम इंडिया की हालत बहुत अच्छी नहीं थी। टेस्ट सीरीज से पहले उसने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ चार वन डे मैच गवां दिए थे। भारतीय बल्लेबाज दक्षिण अफ्रीका के तेज और स्विंग लेती पिचों पर मेजबान गेंदबाजों के लहराती गेंदो का सामना करने में असमर्थ साबित हो रहे थे। इस तरह एक कड़े अनुभव के साथ भारतीय टीम टेस्ट सीरीज में प्रवेश कर रही थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि भारत दक्षिण अफ्रीका की धरती पर कभी टेस्ट मैच नहीं जीती थी और वन डे सीरीज में टीम के खराब फॉर्म को देखते हुए उसके टेस्ट जीतने के मौके ना के बराबर थे। जोहांसबर्ग के पहले टेस्ट में कप्तान राहुल द्रविड़ ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया और टीम इंडिया के फैब फोर यानी राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली के क्रमश: 32, 44, 28 और 51 रन की संघर्षपूर्ण परियों की बदौलत टीम ने 249 रन बनाए। इसके बाद बल्लेबाजी करने उतरी दक्षिण अफ्रीका का शीर्ष क्रम भारतीय गेंदबाजों के आगे पूरी तरह ध्वस्त हो गया और उसके चार शीर्ष बल्लेबाज आठ ओवर के भीतर ही पवेलियन में थे। जहीर खान और शांताकुमारन श्रीसंत की अगुवाई वाले गेंदबाजों ने इस अच्छे शुरूआत को जारी रखते हुए दक्षिण अफ्रीका की टीम को कोई मौका नहीं दिया और 26वें ओवर में ही पूरी टीम आल आउट हो गई। इस दौरान युवा श्रीसंत अधिक खतरनाक दिखे और उन्होंने पिच की गति और स्विंग का पूरा फायदा उठाते हुए दक्षिण अफ्रीका के पांच बल्लेबाजों को चलता किया। श्रीसंत की शिकार की सूची में ग्रीम स्मिथ, हाशिम अमला, जैक्स कैलिस, मार्क बाउचर और शॉन पोलॉक जैसे दिग्गज शामिल थे। दक्षिण अफ्रीका की पूरी टीम पहली पारी में 84 रन पर सिमट गई और इस पारी में श्रीसंत के आकड़े 10-3-40-5 थे। इसके बाद वीवीएस लक्ष्मण की अर्धशतक की मदद से भारत ने मेजबान टीम को 402 रन का लक्ष्य दिया, जिसे अफ्रीकी टीम हासिल नहीं कर सकी और 278 रन पर आल आउट हो गई । इस तरह भारतीय टीम ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर अपनी पहली जीत दर्ज की। श्रीसंत ने दूसरी पारी में भी तीन विकेट लिए। मैच में कुल आठ विकेट लेने वाले इस गुस्सैल गेंदबाज को मैन ऑफ द मैच के पुरूस्कार से नवाजा गया। स्टुअर्ट बिन्नी : बांग्लादेश के खिलाफ 4-6 (ढाका, 2014)

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तीन मैचों की एकदिवसीय श्रृंखला में पहले से ही 1-0 से आगे चल रही भारतीय टीम दूसरे मैच में भी मेजबानों को कोई मौका देने के मूड में नहीं थी। बांग्लादेश की अगुवाई कर रहे मुशफिकर रहीम ने टॉस जीतकर भारतीय टीम को पहले बल्लेबाजी करने का मौका दिया। उस मैच में डेब्यू कर रहे बांग्लादेश के तस्कीन अहमद ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में धमाकेदार शुरुआत करते हुए पांच भारतीय बल्लेबाजों को चलता किया। तस्कीन के इस प्रदर्शन की बदौलत मजबूत बल्लेबाजी क्रम वाली भारतीय टीम सिर्फ 105 रनों पर ही सिमट गई। तब तक लग रहा था कि यह मैच बांग्लादेश आसानी से जीत जाएगी और सीरीज का निर्णय तीसरे मैच से ही होगा। लेकिन स्टुअर्ट बिन्नी को शायद यह मंजूर नहीं था। मोहित शर्मा ने बांग्लादेश के दोनों सलामी बल्लेबाजों को पवेलियन भेज बिन्नी के लिए एक परफेक्ट प्लेटफॉर्म तैयार किया। बिन्नी ने इस बेहतरीन शुरुआत का फायदा उठाते हुए सिर्फ 28 गेंदों के भीतर ही विरोधी टीम के आधे दर्जन बल्लेबाजों को आउट कर दिया। बिन्नी ने इसके लिए केवल चार रन खर्च किए और 4.4-2-4-6 के शानदार आंकड़े के साथ भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी का रिकॉर्ड बना डाला। बिन्नी की इस शानदार गेंदबाजी के कारण बांग्लादेश इस मैच में 60 रन भी नहीं बना सकी और 17.4 ओवर में ही 58 रन पर ढेर होकर मैच को 47 रन से गवां दिया। आशीष नेहरा : इंग्लैंड के खिलाफ 23-6 (डरबन, 2003)

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यह भारत और इंग्लैंड दोनों टीमों के लिए एक महत्वपूर्ण मैच था। विश्व कप के लीग मैच का यह लगभग आखिरी दौर था और दोनों टीमों को इसके बाद अपने चिर प्रतिद्वंदियों क्रमशः पकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया से भिड़ना था। इसलिए दोनों टीमें यह मैच जीतकर बढ़े हुए आत्मविश्वास के साथ हाई वोल्टेज मुकाबले में जाना चाहती थी। टीम इंडिया के कप्तान सौरव गांगुली ने टॉस जीतने के बाद पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया ताकि एक बड़ा स्कोर खड़ा कर के विरोधी टीम पर लक्ष्य का पीछा करने का दबाव बनाया जा सके। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के 50 रन और राहुल द्रविड़ के 62 रन की बदौलत भारत ने निर्धारित 50 ओवरों में 250 रन बनाए। दक्षिण अफ्रीका के तेज पिचों पर अगर टीम के बल्लेबाजी का भार तेंदुलकर पर था तो वहीं टीम की गेंदबाजी की जिम्मेदारी तेज गेंदबाजी तिकड़ी श्रीनाथ, जाहिर खान और आशीष नेहरा पर थी। इन तीनों गेंदबाजों में सबसे कम अनुभवी आशीष नेहरा थे लेकिन यह दिन शायद नेहरा का ही था। मोहम्मद कैफ ने इंग्लैंड के ओपनर निक नाइट को रन आउट कर भारतीय टीम को एक परफेक्ट शुरुआत दी। जबकि जहीर खान ने दूसरे ओपनर ट्रेस्कोथिक को आउट कर इंग्लैंड को मुश्किल में डाल दिया। इसके बाद आशीष नेहरा ने जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेते हुए इंग्लैंड के पूरे बल्लेबाजी क्रम को 10 ओवर के भीतर ही उखाड़ कर फेंक दिया। 13 वें ओवर में कप्तान गांगुली द्वारा गेंद सौंपे जाने पर दिल्ली के इस तेज गेंदबाज ने इंग्लैंड के बल्लेबाजी क्रम के रीढ़ को तोड़ डाला और छह विकेट झटक डाले। नेहरा की विकेट सूची में माइकल वॉन, नासिर हुसैन, एलेक स्टीवर्ट और पॉल कॉलिंगवुड जैसे बल्लेबाज शामिल थे। नेहरा ने इस मैच सीम बॉलिंग का शानदार प्रदर्शन करते हुए 10-2-23-6 के आंकड़े दर्ज किए। भारत ने इंग्लैंड को 168 रन पर आल आउट कर यह मैच आसानी से 82 रन से जीत लिया। हरभजन सिंह : ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 37.5-7-123-7 (कोलकाता, 2001)

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वह भी एक दौर था जब ऑस्ट्रेलियाई टीम को अपराजेय माना जाता था। अपने उसी दौर में ऑस्ट्रेलियाई टीम 2001 में भारत के दौरे पर आई थी और पहला टेस्ट तीन दिन के भीतर ही दस विकेट से जीतकर उसने अपने वर्चस्व का आभास भी करा दिया था। उस समय भारत की तरफ से एक युवा स्पिनर उभर रहा था जिसका नाम हरभजन सिंह था। हरभजन सिंह ने सीरीज के दूसरे मैच में बेहतरीन गेंदबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के लगातार 15 टेस्ट के विजयी अभियान को रोक दिया। हालांकि ऑस्ट्रेलिया के इस विजय अभियान को रोकना इतना आसान भी नहीं था। टेस्ट मैच के पहले दिन बल्लेबाजी करने उतरी कंगारू टीम को उनके ओपनर्स माइकल स्लेटर और मैथ्यू हेडन ने 103 रन की सधी हुई शुरुआत दी। इसके बाद हेडन और लैंगर ने भी दूसरे विकेट के लिए 90 रन जोड़े। हेडन धीरे-धीरे अपने शतक की तरफ बढ़ ही रहे थे कि हरभजन ने उन्हें 97 रन पर 12वें खिलाड़ी खिलाड़ी हेमंग बदानी के हाथों कैच आउट करा दिया। इसके बाद लैंगर और मार्क वॉ के भी विकेट जल्दी-जल्दी गिर गए और ऑस्ट्रेलियाई टीम अचानक से दबाव में आ गई। टर्बनेटर हरभजन ने इस बने हुए दबाव का भरपूर फायदा उठाया और पारी के 72वें ओवर के शुरूआती तीन गेंदों पर तीन विकेट झटक डाले। इस तरह से हरभजन भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट में हैट्रिक लेने वाले पहले गेंदबाज बन गए। उन्होंने पोंटिं, गिलिक्रिस्ट और वार्न को लगातार गेंदों पर आउट कर मैच को भारत के पक्ष में मोड़ दिया। हालांकि स्टीव वॉ और जेसन गिलेस्पी ने नौवें विकेट के लिए 133 रन जोड़ते हुए ऑस्ट्रेलिया को उबारने की कोशिश की लेकिन हरभजन सिंह ने पारी में 7 और मैच में कुल 13 विकेट लेते हुए ऑस्ट्रेलिया के विजय रथ को रोक दिया। यह एक ऐतिहासिक मैच था और ऑस्ट्रेलिया के 445 रन के जवाब में भारतीय टीम पहली पारी में सिर्फ 171 रन पर ही आल आउट हो गई थी। इस तरह भारत को फॉलोऑन का सामना करना पड़ा था। लेकिन दूसरे पारी में ‘वेरी वेरी स्पेशल’ लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ की साहसिक और विशाल पारियों की बदौलत भारत ने 657 रन का बड़ा स्कोर खड़ा किया। इस तरह ऑस्ट्रेलियाई टीम को 384 रन का लक्ष्य मिला जिसे ऑस्ट्रेलियाई टीम नहीं पा सकी और 171 रन से मैच हार गई। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक जीत और ऑस्ट्रेलिया के लिए एक शर्मनाक हार थी। इस मैच में लक्ष्मण ने 281 रन की शानदार और ऐतिहासिक पारी खेली थी और यह उस समय भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत स्कोर का रिकॉर्ड था। लक्ष्मण ने महान सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर के 236 रन के रिकॉर्ड को तोड़ा था। अनिल कुंबले : पाकिस्तान के खिलाफ 26.3-9-74-10 (दिल्ली,1999)

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लगभग नौ साल के लम्बे अंतराल के बाद पाकिस्तानी टीम सीमा पार करके अपने पड़ोसी और कट्टर प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध टेस्ट सीरीज खेलने भारत आ रही थी। मेहमान टीम ने चेन्नई के पहले टेस्ट में मेजबान टीम को एक रोमांचक मुकाबले में 12 रन के नजदीकी अंतर से हरा दिया था। इस तरह दिल्ली के कोटला मैदान पर दूसरे टेस्ट मैच में उतरने से पहले भारतीय टीम पर श्रृंखला बराबर कराने का भारी दबाव था। भारत के कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया और स्पिन की मददगार पिच पर भारतीय टीम किसी तरह 252 रन बना पाई। अपने बेहतरीन फॉर्म को जारी रखते हुए सकलैन मुश्ताक ने इस पारी में भी पांच विकेट लिए और इस सीरीज के तीनों परियों में तीन बार पांच विकेट लेने का रिकॉर्ड बनाया। लेकिन इसके बाद भारतीय स्पिन जोड़ी हरभजन और कुंबले ने भी आपस में पाकिस्तान के सात विकेट बांटकर उन्हें 172 रन पर ही रोक दिया। हालांकि दूसरी पारी में भी सकलैन ने भारतीय बल्लेबाजों को अपनी ऑफ-ब्रेक गेंदबाजी से नचाया और फिर से पांच विकेट लेकर भारतीय टीम को गहरे संकट में डाल दिया। दबाव से भरे इस मैच में भारत की जीत की जिम्मेदारी अब स्पिन जोड़ी पर ही टिकी हुई थी। टीम का मुख्य गेंदबाज होने के नाते कुंबले ने इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लिया और विपक्षी टीम के सभी बल्लेबाजों को अकेले ही समेट दिया। उस समय किसी ने भी यह अनुमान नहीं लगाया था कि मैच चौथे दिन ही खत्म हो जाएगा लेकिन कुंबले ने अविश्वसनीय प्रदर्शन करते हुए इसे संभव कर दिखाया। 420 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए पाकिस्तान के सलामी बल्लेबाजों सईद अनवर और शाहिद आफरीदी ने 101 रन की साझेदारी कर एक मजबूत शुरूआत दी, लेकिन इसके बाद से कुंबले ने जादू दिखाना शुरू किया। उन्होंने लगातार गेंदों पर अफरीदी और इजाज अहमद को आउट कर टीम इंडिया की मैच में वापसी कराई। इसके बाद इंजमाम-उल-हक और मोहम्मद युसुफ कुंबले के लेग स्पिन के अगले शिकार बने। धीरे-धीरे कुंबले ने एक-एक करके पाकिस्तान के सभी बल्लेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। इस तरह कुंबले ने इतिहास रच दिया था और वह जिम लेकर के बाद पारी में 10 विकेट लेने वाले दुनिया के महज दूसरे गेंदबाज बन गए थे। कुंबले ने इस दौरान 26.3-9-74-10 के आंकड़ें पेश किए और भारत ने यह मैच 212 रनों के बड़े अंतर से जीत लिया। नि:संदेह अनिल कुंबले के इस प्रदर्शन को लक्ष्मण के ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 281 रन की पारी के साथ क्रिकेट के लंबे प्रारूप में भारत के लिए सबसे बेहतरीन प्रदर्शन कहा जा सकता है। मूल लेखक – संकल्प श्रीवास्तव अनुवादक - सागर

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