साल 2000 के बाद से क्षमता से अधिक आंके गये 5 टेस्ट क्रिकेटर

2000 के बाद से ही सीमित ओवरों के स्वरूपों ने धीरे-धीरे टेस्ट क्रिकेट को कोने में करना शुरू कर दिया है। विश्व भर में एकदिवसीय मैचों के प्रति सभी का आकर्षण बढता गया। 2007 में विश्व टी -20 के पहले संस्करण की सफलता के बाद, क्रिकेट के छोटे प्रारूप ने असीमित लोकप्रियता हासिल कर ली है। हालांकि, पिछले 18 सालों में अभी भी टेस्ट क्रिकेट प्रशंसकों के लिए कई आनंद भरे क्षण प्रदान करने में सफल रहा है। हालांकि विभिन्न टीमों के कई सितारों ने खेल के इतिहास में खुद का नाम बनाया है, लेकिन कुछ ऐसे भी खिलाड़ी हैं जो टेस्ट प्रारूप में अपने शुरुआती वर्षों में प्राप्त सफलताओं के बाद अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके हैं। यहाँ हम ऐसे ही पांच बड़े टेस्ट क्रिकेटरों पर नजर डाल रहे हैं, जिन्होंने 2000 के बाद खेला है। हालांकि, इस सूची में से कुछ नाम रंगीन कपड़ों में बहुत सफलता प्राप्त कर चुके हैं:

# 5 आशीष नेहरा

खेल के प्रति अपने हार न मानने वाले रवैये और रचनात्मक दृष्टिकोण के साथ, आशीष नेहरा ने कई चोटों से जूझकर भी भारत की सीमित-ओवर टीम के महत्वपूर्ण सदस्य बने रहे। विशेष रूप से वह 50 ओवर प्रारूप में वह एक बहुत ही उपयोगी गेंदबाज थे। सटीकता से गेंदबाजी करने की प्रतिभा के दम पर उन्होंने भारत के 2011 के विश्व कप की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनको सफ़ेद-गेंद से सफलता तो मिली, लेकिन वह टेस्ट क्रिकेट में वैसी सफलता नही अर्जित कर सके। 1999 में एशियाई टेस्ट चैम्पियनशिप के दौरान पदार्पण करने के बाद, नेहरा ने टेस्ट प्रारूप में 17 मैच खेले। जिसमे उन्होंने 42.40 की औसत से 44 विकेट लिये और वो भी 78.3 की स्ट्राइक रेट, जो उनके टेस्ट क्रिकेट में संघर्ष को दर्शाता है। जब सौरव गांगुली ने 2000 में कप्तानी संभाली, नेहरा को तेज गेंदबाजी विभाग में भारत की अगली बड़ी उम्मीद के तौर पर देखा गया था। हालांकि, फिटनेस के साथ-साथ पुरानी गेंद से ज्यादा प्रभाव न डाल पाने के चलते कि उनके टेस्ट करियर ने कभी रफ़्तार नही पकड़ी।

# 4 इमरान ताहिर

पाकिस्तान के सईद अजमल के अलावा कोई अन्य स्पिनर इस दशक में इमरान ताहिर के अलावा एकदिवसीय और टी-20 क्रिकेट में ज्यादा प्रभाव नही डाल सके हैं। हालांकि जिस कौशल ने उन्हें सफेद गेंद के साथ क्रिकेट में खतरनाक गेंदबाज़ बना दिया है, उसी ने टेस्ट क्रिकेट में सफलता प्राप्त करने से रोका है। एक ऐसे युग में जहां स्पिन खेलने की क्षमता ज्यादा नहीं रह गयी है, उनकी स्टंप-टू-स्टंप लाइन ने विपक्षी बल्लेबाजों को लाल गेंद के क्रिकेट में जोखिम लेने का दम दिया। 50 ओवर के प्रारूप में प्रभावित करने के बाद, दक्षिण अफ्रीका के लिये अपनी पहली टेस्ट कैप के लिये उन्हें बहुत लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा। उनसे उम्मीदें बहुत थी क्योंकि दक्षिण अफ्रीका ने अपनी स्पिन गेंदबाजी समस्याओं को हल करने के लिए इस लेग स्पिनर में हुनर देखा था। दुबई में पाकिस्तान के खिलाफ मैच विजेता स्पेल के बावजूद, लाहौर में जन्मा यह क्रिकेटर, टेस्ट क्रिकेट में क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाया है। अब तक खेले गये 20 मैचों में, उन्होंने 40.24 के औसत से 57 विकेट लिये और 3.50 का इकोनॉमी रेट रहा है।

# 3 उमर अकमल

2009 में न्यूज़ीलैंड के पाकिस्तान के दौरे के पहले टेस्ट के दौरान, एक स्टार का जन्म होता दिखाई दिया। डुनेडिन की एक तेज़ गति वाले ट्रैक पर, उमर अकमल ने 160 गेंद में 129 रन बनाकर शेन बॉन्ड और क्रिस मार्टिन के गेंदबाजी आक्रमण हमला बोला। इस पारी को देखने वाले हर दर्शक को लगा जैसे पाकिस्तान ने जावेद मियांदाद के बाद एक बार फिर वैसी ही क्षमता वाला बल्लेबाज पा लिया हो। डुनेडिन में पहला टेस्ट खेलने के लगभग नौ साल बाद, टेस्ट क्रिकेट में उमर अकमल आज कहीं खो से गये हैं। लापरवाही से शॉट खेलने के चलते और अपने विकेट को महत्वपूर्ण क्षणों पर फेंकने के चलते वह अब बस सीमित-ओवर के बल्लेबाज के बनकर रह गये हैं। सितंबर 2011 के बाद से खले गये 16 टेस्ट मैच में 65.98 की स्ट्राइक रेट से उन्होंने 35.82 की औसत से 1003 रन बनाये हैं। संभवतः उनके ये आंकड़े खेल के इस लंबे प्रारूप में उनके सफ़र की कहानी बताते हैं।

# 2 अजंता मेंडिस

भारत के खिलाफ 2008 में घरेलू शृंखला के दौरान अपना क्रिकेट करियर शुरू करने वाले अजंता मेंडिस ने एक शानदार बल्लेबाजी क्रम को घुटनों पर टिका दिया। उच्च गुणवत्ता वाली स्पिन खेल पाने में बल्लेबाजों का सक्षम न हो पाना और इस ऑफ स्पिनर की रहस्यमय गेंदबाजी ने सभी को परेशान कर दिया था। 18.38 की एक शानदार औसत से विकेट लेकर उन्होंने श्रीलंका की 2-1 से श्रृंखला जीत के लिए मार्ग प्रशस्त किया। हालाँकि, इन सबके बीच भी सहवाग ने उनकी विविधताओं को समझना शुरू कर दिया। सहवाग ने मेंडिस को मध्यम तेज गेंदबाज के तौर पर खेलना शुरू किया और जल्द ही दुनिया भर के बल्लेबाजों ने यही तकनीक अपना उनकी गेंदों के असर को कम करना शुरू कर दिया। निरंतर ख़राब प्रदर्शनों के बाद उन्होंने टेस्ट टीम में अपना स्थान खो दिया। कभी मुथैया मुरलीधरन के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाने वाले इस स्पिनर ने अभी तक सिर्फ 19 टेस्ट खेले हैं। अपनी पहली सीरीज़ में सफलता को छोड़कर, उन्होंने अपने पिछले 16 मैचों में केवल 44 विकेट लिये हैं।

# 1 मोहम्मद अशरफुल

2000 में टेस्ट पटल पर आने के बाद से, बांग्लादेश को हमेशा एक खेल को बदलने में सक्षम बल्लेबाज़ की तलाश रही। उन्हें यह तलाश पूरी होती दिखी जब 2001 के एशियाई टेस्ट चैम्पियनशिप के दौरान एक 17 वर्षीय दाएं हाथ के बल्लेबाज ने शानदार प्रदर्शन किया। मुरलीधरन की अगुवाई वाले श्रीलंका के गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ पहले मैच में ही एक शानदार शतक के साथ मोहम्मद अशरफुल ने बड़े स्तर पर खुद के आगाज़ की घोषणा की। अशरफुल को अपना दूसरा टेस्ट शतक बनाने के लिये तीन साल से ज्यादा का इंतजार करना पड़ा। जबकि वह विकेट के चारों ओर खेल सकते थे, लेकिन ऑफ-स्टंप के आसपास खेलने में उनकी कमजोरी ने उनकी समस्याएँ बढ़ा दी। 2006/07 सीजन में एक छोटी अवधि के दौरान, ऐसा लग रहा था कि उन्होंने आखिरकार इस समस्या से निजात पा ली। लेकिन उनकी सफलता कम ही समय तक की रही क्योंकि उनके प्रदर्शन में अनिरंतरता के चलते वह असफलताओं के शिकार हो गये। अशरफुल ने कुल 61 टेस्ट मैचों में भाग लिया था। 24 की एक औसत से 2737 रनों को बनाना उतना ही बुरा है जितना कि यह दिखता है। वास्तव में, उनकी एशिया के बाहर आयोजित 22 टेस्ट मैचों में 15.53 औसत सभी बल्लेबाजों में (कम से कम 20 मैचों में) सबसे खराब है। हालात और खराब हो गये जब उन्हें 2013 की बांग्लादेश प्रीमीयर लीग (बीपीएल) के दौरान स्पॉट फिक्सिंग में लिप्त पाया गया और राष्ट्रिय क्रिकेट से बहिष्कृत रहे है। 33 साल की बढ़ती हुई उम्र में अब अशरफुल का अंतरराष्ट्रीय करियर लगभग समाप्त ही दिखता है। लेखक: राम कुमार अनुवादक: राहुल पांडे

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