वनडे में 5 ऐसे मौके जब निचले क्रम के बल्लेबाज़ों ने टीम को जीत दिलाई हो

BHUVI-DHONI

प्लेइंग इलेवन में आमतौर पर 6 मुख्य बल्लेबाज़ (जिसमें विकेट कीपर को भी गिना जाता है), एक ऑलराउंडर और 4 गेंदबाज़ शामिल होते हैं। जब किसी टीम का छठा विकेट गिरता है तो जीत की उम्मीदें काफ़ी कम रह जाती हैं, क्योंकि निचले क्रम के खिलाड़ियों को बल्लेबाज़ी का अनुभव कम होता है। ये ऐसे खिलाड़ी होते हैं जो आमतौर पर आख़िरी कुछ ओवर में पिच पर महज़ औपचारिकता निभाने आते हैं, लेकिन क्रिकेट के इतिहास में ऐसी कई मिसालें भरी पड़ीं हैं जब पुछल्ले बल्लेबाज़ों ने विपरीत हालात का हिम्मत से सामना किया हो। ऐसे कई मौके आए हैं जब सीमित ओवर के मैच में पुछल्ले बल्लेबाज़ों ने हार के मुंह से अपनी टीम के लिए मुश्किल जीत छीन ली हो। ऐसी जीत से दर्शकों में भी काफ़ी रोमांच पैदा होता है क्योंकि किसी को ये अंदाज़ा नहीं होता कि निचले क्रम के बल्लेबाज़ भी बड़ा कमाल कर सकते हैं। ऐसे मौके पर हारी हुई टीम के पास अफ़सोस करने के अलावा कुछ नहीं बचता। डिस्क्लेमर- हम यहां ऐसे बल्लेबाज़ों को तरजीह दे रहे हैं जो अपनी टीम में मुख्य बल्लेबाज़ नहीं थे, इसके अलावा सिर्फ़ उन मैचों पर ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है जो आईसीसी के मुख्य टूर्नामेंट और अन्य सीरीज़ के निर्णायक मैच है। #5 जब धोनी ने भुवनेश्वर को पहला अर्ध शतक बनाने की प्रेरणा दी थी (साल 2017 में श्रीलंका के ख़िलाफ़) धोनी को एक बेहतरीन फ़िनिशर के तौर पर जाना जाता है, हम यहाँ इसका सबसे ताज़ा उदाहरण बता रहे हैं। साल 2017 में जब टीम इंडिया का वनडे मुक़ाबला श्रीलंका से हो रहा था। श्रीलंका ने मिलिंदा सिरीवर्धना और चामारा कापुगेदारा की मदद से 50 ओवर में 236/8 रन का स्कोर बनाया। भारत को 47 ओवर में 230 रन का संशोधित लक्ष्य मिला। नए लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत की सलामी जोड़ी शिखर धवन और रोहित शर्मा ने शतकीय साझेदारी निभाई। शुरुआत में भारत का स्कोर 109/0 था, एक वक़्त ऐसा लग रहा था कि भारत से मैच आसानी से जीत जाएगा लेकिन अगले 4 रन के अंदर भारत के दोनों सलामी बल्लेबाज़ आउट हो गए। धीरे धीरे भारत का टॉप ऑर्डर ताश के पत्तों की तरह बिखर गिरा। भारत को स्कोर 131/7 हो गया, जिससे टीम इंडिया पर हार का ख़तरा मंडराने लगा। धोनी का पिछले कुछ वक़्त में जैसा प्रदर्शन रहा था उससे उनके फ़ैन को भी माही से किसी करिशमे की उम्मीद कम ही थी। महेंद्र सिंह धोनी ने गंभीरता से बल्लेबाज़ी शुरू की और पिच के मिज़ाज को समझते हुए अपने आप को माहौल के मुताबिक ढालना शुरू किया। पिच की दूसरे छोर पर भुवनेश्वर कुमार थे जो काफ़ी नर्वस दिख रहे थे। धोनी ने सिंगल लेना शुरू किया जिससे स्ट्राइक बदलती रहे, वो भुवनेश्वर का बख़ूबी साथ दे रहे थे। उपल थारंगा की बचाव की रणनीति ने दोनों भारतीय खिलाड़ियों को पिच पर जमने का भरपूर मौका दिया। उपल थारंगा ने अच्छी गेंदबाज़ी कर रहे अकिला धनंजया का इस्तेमाल नहीं किया जिसका सीधा फ़ायदा भारत को मिला। धोनी और भुवी ने श्रीलंका को मैच में वापसी को कोई मौका नहीं दिया और भुवनेश्वर ने शानदार 53 रन बनाए, धोनी ने भी एक बेहतरीन बल्लेबाज़ी करते हुए 45 रन जोड़े। भारत को इस मैच में 3 विकेट से यादगार जीत हासिल हुई। #4 जब मैदान में बेहतरीन फ़िनिशर माइकल बेवन उतरे (साल 1996 में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़) BEVAN 90 के दशक में कंगारू टीम को अजेय माना जाता था क्योंकि उनकी टीम में हर तरह के खिलाड़ी होते थे। विस्फोटक बल्लेबाज़ी क्रम, बढ़ियां स्पिनर, ख़तरनाक विकेटकीपर बल्लेबाज़ और एक बेहतरीन कप्तान, ये सभी खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया को एक मज़बूत टीम बनाते थे। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया की ख़ूबी ये थी कि उनके अंदर जीत की भूख कभी ख़त्म नहीं होती थी भले ही उनकी टीम हार के कगार पर क्यों न हो। 1996 के बेंसन एंड हेजेज़ त्रिकोणीय सीरीज़ के 5वें मैच में ऑस्ट्रेलिया का सामना वेस्टइंडीज़ से हो रहा था। बारिश से बाधित मैच में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए वेस्टइंडीज़ ने 172/9 का स्कोर बनाया जिसमें कार्ल हूपर का अहम योगदान था। ऑस्ट्रेलिया के पॉल रायफ़ल ने बेहतरीन गेंदबाज़ी की थी जिसकी बदौलत ऑस्ट्रेलिया को 43 ओवर में 173 रन का लक्ष्य मिला। वेस्टइंडीज़ की तरफ़ से जवाबी हमला करते हुए कर्टली एम्ब्रोज़ और ऑटिस गिब्सन ने बेहतरीन गेंदबाज़ी की और 38 रन के स्कोर पर कंगारू टीम के 6 बल्लेबाज़ो को पवेलियन भेज दिया। ऑस्ट्रेलिया के विकेटकीपर बल्लेबाज़ इयान हिली और माइकल बेवन ने पारी को संभालते हुए स्कोर को 74 रन पर पहुंचा दिया। इसके बाद रोजर हार्पर ने हिली का विकेट झटका, ऐसा लगा कि ऑस्ट्रेलिया की जीत अब नामुमकिन है। लेकिन बेवन ने रायफ़ल को साथ लेते हुए कई रन जोड़े कभी वो फ़ील्डरर्स के बीच से शॉट लगाते, तो कभी दौड़ कर रन लेते थे। एक वक़्त ऐसा आया जब ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 7 रन की ज़रूरत थी जबकि उसे 2 विकेट बचे हुए थे। शेन वॉर्न उसी वक़्त रन आउट हो गए। फिर मैदान में ग्लेन मैक्रगा आए जिन्होंने एक रन लेकर बेवन को स्ट्राइक दे दी। अब कंगारुओं को जीत के लिए 2 गेंदों में 4 रन की ज़रूरत थी। ऐसे में बेवन के स्ट्रेट शॉट को रोजर हार्पर ने बेहतरीन तरीके से रोक दिया, अब ऑस्ट्रेलिया को आख़िरी गेंद में 4 रन की ज़रूरत थी। बेवन ने फिर ऐसा शॉट लगाया कि गेंद अंपायर के पास से गुज़रती हुई बाउंड्री पार हो गई। इस तरह सिडनी में ऑस्ट्रेलिया को एक यादगार जीत हासिल हुई और माइकल बेवन का नाम सर्वणिम इतिहास में दर्ज हो गया । #3 लसिथ मलिंगा की शानदार बल्लेबाज़ी (साल 2010 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़)MALINGA क्रिकेट प्रेमियों के ज़ेहन में लसिथ मलिंगा कि छवि यॉरकर फेंकने वाले गेंदबाज़ के तौर पर बनती है। इसके अलावा उनके घुंघराले बाल भी बहुत मशहूर हैं। लेकिन साल 2010 के मेलबर्न वनडे में उनका एक और चौंकाने वाला रूप देखने को मिला। मलिंगा और मैथ्यूज़ ने मिलकर 9वें विकेट के लिए रिकॉर्ड साझेदारी की जिससे ऑस्ट्रेलिया को उनके ही घर में हार का सामना करना पड़ा। पहले बल्लेबाज़ी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने श्रीलंका को 240 रन का लक्ष्य दिया जिसमें माइक हसी ने 71 रन बनाए और श्रीलंका की तरफ़ से थिसारा पेरेरा ने 5 विकेट हासिल किए। अपने दोनों सलामी बल्लेबाज़ों के ऑउट होने पर श्रीलंका का स्कोर 73/2 हो गया। ऑस्ट्रेलिया के युवा गेंदबाज़ ज़ेवियर डोहर्टी ने शानदार 4 विकेट लिए जिससे श्रीलंका का स्कोर 107/8 हो गया। एंजेलो मैथ्यूज़ पिच पर मलिंगा का साथ निभाने आए, इस वक़्त श्रीलंका को जीत के लिए 134 रन की ज़रूरत थी। भले ही श्रीलंका के 8 विकेट गिर गए थे लेकिन रन रेट में कोई ख़ास बदलाव नहीं हुआ था, जिससे मलिंगा और मैथ्यूज़ को संभलने का मौका मिल गया। फिर मलिंगा ने विस्फोटक बल्लेबाज़ी करते हुए मैदान में कई शानदार शॉट लगाए, साथ खड़े मैथ्यूज़ ने भी मलिंगा का भरपूर साथ निभाया। माइकल क्लार्क ने कई अलग-अलग गेंदबाज़ों का इस्तेमाल किया फिर भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ और दोनों बल्लेबाज़ों ने श्रीलंका को जीत के करीब ला दिया। जब स्कोर बराबर हो गया और जीत के लिए सिर्फ़ 1 रन की ज़रूरत थी तो मलिंगा ने ग़लत वक़्त पर दौड़ते हुए सिंगल लेने की कोशिश की और रन आउट हो गए। ये हालात बिलकुल ऐसे ही लग रहे थे जैसे साल 1999 के वर्ल्ड कप के दौरान ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ़्रीका का सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला हो, जो टाई हो गया था। ऐसे में स्ट्राइक पर नर्वस दिख रहे मुथैया मुरलीधरन मौजूद थे। ऑस्ट्रेलिया को लगा कि वो साल 1999 का करिश्मा दोहरा सकते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया का भ्रम तब टूट गया जब वॉटसन की गेंद पर मुरली ने चौका लगा दिया और एक कभी न भुला पाने वाली जीत हासिल की। #2 कुंबले और श्रीनाथ की शानदार बल्लेबाज़ी (साल 1996 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़) KUMBLE-SRINATH साल 1996 के टाइटन कप में भारत का मुक़ाबला ऑस्ट्रेलिया से था। इससे पहले भारत अपना पहला मैच साउथ अफ़्रीका से हार गया, इस मैच को जीतना टीम इंडिया के लिए बेहद ज़रूरी था क्योंकि उसका सब कुछ दांव पर लगा था। ऑस्ट्रेलिया ने इस मैच में 215 रन बनाए थे, जिसमें मार्क टेलर ने शानदार शतक लगाया था। उस दौर में भारत लक्ष्य का पीछा न कर पाने के लिए बदनाम थी। टीम इंडिया ने इसी बदनाम छवि को बरकरार रखते हुए 47 रन पर 4 विकेट गवां दिया। फिर सचिन और जडेजा ने मोर्चा संभाला लेकिन जडेजा भी रन आउट हो गए इस वक़्त भारत को जीत के लिए 90 रन की ज़रूरत थी। सचिन ने अच्छा खेल दिखाया लेकिन वो भी 88 रन के निजी स्कोर पर पवेलियन लौट गए। परंपरा के मुताबिक कई भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने निराश होकर अपने टीवी सेट बंद कर दिए क्योंकि टीम इंडिया की जीत नामुमकिन सी लग रही थी। लेकिन बैंगलौर में शांत पड़े चिन्नास्वामी स्टेडियम में 2 भारतीय खिलाड़ियों को अभी भी जीत का यकीन था। अनिल कुंबले और जवागल श्रीनाथ को इस मैदान में खेलने का तजुर्बा बचपन से था क्योंकि वो यहां कि स्थानीय निवासी थे। श्रीनाथ ने कई बेहतरीन शॉट लगाए जिसमें एक स्ट्रेट में लगाया गया छक्का शामिल था, ऐसे में स्टेडियम में बैठे दर्शकों में थोड़ी उम्मीद बंधी। इस दोनों जोड़ीदारों का किस्मत ने भी काफ़ी साथ दिया जिसकी वजह से कई कैच छूटे तो कई बार दोनों रन आउट से भी बच गए। दोनों के बीच 40 गेंदों में 52 रन की साझेदारी हुई जिससे 49वें ओवर में भारत को यादगार जीत मिली। उस वक़्त स्टेडियम में अनिल कुंबले की मां और दादी भी मौजूद थी जो टीम की हौसलाअफ़ज़ाई कर रहीं थीं। इस मैच को क्रिकेटप्रेमी आज भी याद रखते हैं। ये जीत भारत के लिए उस सीरीज़ में एक अहम मोड़ साबित हुआ। भारत टूर्नामेंट के फ़ाइनल में पहुंचा जिसमें टीम इंडिया ने साउथ अफ्रीका को हराकर टाइटन कप जीता। #1 जब कैरिबियाई जोड़ी ने मैच का रुख़ पलटा ( इंग्लैंड के ख़िलाफ़ चैंपियंस ट्रॉफ़ी 2004 का फ़ाइनल) WEST INDIES इस प्रदर्शन को हमने टॉप में दो वजहों से रखा है, पहला इसलिए क्योंकि क्रीज़ पर कोई माहिर बल्लेबाज़ नहीं था (हांलाकि कॉर्टनी ब्राउन एक विकेटकीपर बल्लेबाज़ थे लेकिन उनका बल्लेबाज़ी औसत 17.29 था इसलिए उन्हें एक बेहतर बल्लेबाज़ नहीं माना जा सकता था), और दूसरा आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के फ़ाइनल का दबाव। ये ज़ाहिर बात थी कि केनिंग्सटन ओवल में मैच इंग्लैंड और वेस्टइंडीज़ में से कोई भी जीते, टूर्नामेंट को एक नया चैंपियन मिलने वाला था। टॉस हारने के बाद इंग्लैंड को पहले बल्लेबाज़ी के पिच पर आना पड़ा, मार्कस ट्रेस्कॉथिक ने शानदार खेल दिखाते हुए 124 गेंदों में 104 रन बनाए, लेकिन सिर्फ़ एश्ले जाइल्स ने ही उनका अच्छा साथ निभाया और 31 रन बनाए। वावेल हाइंड्स ने किफ़ाइती गेंदबाज़ी करते हुए 10 ओवर में 24 रन देकर 3 विकेट हासिल किए। पूरी इंग्लैंड की टीम 217 रन पर सिमट गई। वेस्टइंडीज़ के लिए ये जीत काफ़ी आसान दिख रही थी लेकिन आईसीसी टूर्नामेंट का फ़ाइनल एक आसान लक्ष्य को भी मुश्किल बना देता है। इंग्लिश गेंदबाज़ों ने एक सधी गेंदबाज़ी करते हुए वेस्टइंडीज़ के टॉप ऑर्डर को पवेलियन भेज दिया, सिर्फ़ शिवनारायण चंद्रपॉल ने ही कुछ हिम्मत दिखाई। जब चंद्रपॉल आउट हुए तो वेस्टइंडीज़ का स्कोर 34 ओवर में 147/8 था। इसके बाद ब्राउन का साथ निभाने ब्रैडशॉ आए, उनके बल्ले का बाहरी किनारा लगते हुए गेंद बाउंड्री के पार चली गई, फिर वो संभलकर खेलने लगे। धीरे-धीरे ब्रैडशॉ के अंदर आत्मविश्वास पैदा हो गया और वो इस तरह के शॉट लगाने लगे जैसा कि आमतौर पर टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज़ लगाते हैं। दूसरी छोर पर खड़े ब्राउन काफ़ी ख़ुशकिस्मत थे क्योंकि वो बॉल को बल्ले से लगाकर रन लिए जा रहे थे। इस मैच में इंग्लैंड टीम में रणनीति की कमी साफ़ झलक रही थी क्योंकि कई बार फील्डरर्स के बीच से गेंद निकल कर रन में तब्दील हो रही थी। इंग्लैड की टीम उस वक़्त दबाव में आ गई जब कैरबियाई टीम ने 200 का स्कोर पार कर लिया। अब वेस्टइंडीज़ को 10 गेंदों में 9 रन की ज़रूरत थी, उसी वक़्त ब्राउन ने गेंद को बाउंड्री के पार कर दिया। कुछ गेंदों के बाद ब्रैडशॉ ने ख़ूबसूरत स्क्वॉयर ड्राइव लगाया और वेस्टइंडीज़ की जीत का परचम लहराया। हांलाकि इन दोनों बल्लेबाज़ों ने दुबारा ऐसा करिश्मा कभी नहीं किया, फिर भी उनका ये प्रदर्शन निचले क्रम के बल्लेबाज़ो के लिए मिसाल बन गया, जो वनडे के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।