इस प्रदर्शन को हमने टॉप में दो वजहों से रखा है, पहला इसलिए क्योंकि क्रीज़ पर कोई माहिर बल्लेबाज़ नहीं था (हांलाकि कॉर्टनी ब्राउन एक विकेटकीपर बल्लेबाज़ थे लेकिन उनका बल्लेबाज़ी औसत 17.29 था इसलिए उन्हें एक बेहतर बल्लेबाज़ नहीं माना जा सकता था), और दूसरा आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के फ़ाइनल का दबाव। ये ज़ाहिर बात थी कि केनिंग्सटन ओवल में मैच इंग्लैंड और वेस्टइंडीज़ में से कोई भी जीते, टूर्नामेंट को एक नया चैंपियन मिलने वाला था। टॉस हारने के बाद इंग्लैंड को पहले बल्लेबाज़ी के पिच पर आना पड़ा, मार्कस ट्रेस्कॉथिक ने शानदार खेल दिखाते हुए 124 गेंदों में 104 रन बनाए, लेकिन सिर्फ़ एश्ले जाइल्स ने ही उनका अच्छा साथ निभाया और 31 रन बनाए। वावेल हाइंड्स ने किफ़ाइती गेंदबाज़ी करते हुए 10 ओवर में 24 रन देकर 3 विकेट हासिल किए। पूरी इंग्लैंड की टीम 217 रन पर सिमट गई। वेस्टइंडीज़ के लिए ये जीत काफ़ी आसान दिख रही थी लेकिन आईसीसी टूर्नामेंट का फ़ाइनल एक आसान लक्ष्य को भी मुश्किल बना देता है। इंग्लिश गेंदबाज़ों ने एक सधी गेंदबाज़ी करते हुए वेस्टइंडीज़ के टॉप ऑर्डर को पवेलियन भेज दिया, सिर्फ़ शिवनारायण चंद्रपॉल ने ही कुछ हिम्मत दिखाई। जब चंद्रपॉल आउट हुए तो वेस्टइंडीज़ का स्कोर 34 ओवर में 147/8 था। इसके बाद ब्राउन का साथ निभाने ब्रैडशॉ आए, उनके बल्ले का बाहरी किनारा लगते हुए गेंद बाउंड्री के पार चली गई, फिर वो संभलकर खेलने लगे। धीरे-धीरे ब्रैडशॉ के अंदर आत्मविश्वास पैदा हो गया और वो इस तरह के शॉट लगाने लगे जैसा कि आमतौर पर टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज़ लगाते हैं। दूसरी छोर पर खड़े ब्राउन काफ़ी ख़ुशकिस्मत थे क्योंकि वो बॉल को बल्ले से लगाकर रन लिए जा रहे थे। इस मैच में इंग्लैंड टीम में रणनीति की कमी साफ़ झलक रही थी क्योंकि कई बार फील्डरर्स के बीच से गेंद निकल कर रन में तब्दील हो रही थी। इंग्लैड की टीम उस वक़्त दबाव में आ गई जब कैरबियाई टीम ने 200 का स्कोर पार कर लिया। अब वेस्टइंडीज़ को 10 गेंदों में 9 रन की ज़रूरत थी, उसी वक़्त ब्राउन ने गेंद को बाउंड्री के पार कर दिया। कुछ गेंदों के बाद ब्रैडशॉ ने ख़ूबसूरत स्क्वॉयर ड्राइव लगाया और वेस्टइंडीज़ की जीत का परचम लहराया। हांलाकि इन दोनों बल्लेबाज़ों ने दुबारा ऐसा करिश्मा कभी नहीं किया, फिर भी उनका ये प्रदर्शन निचले क्रम के बल्लेबाज़ो के लिए मिसाल बन गया, जो वनडे के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।