90 के दशक के दौरान भारतीय टीम घरेलू परिस्थितियों में एक प्रभावशाली टीम बन रही थी। खिलाड़ी अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकल कर खेल रहे थे। हालांकि भारतीय बोर्ड के धैर्य की कमी के कारण कई यात्रा के मुद्दे सामने आए। कप्तान और कोच दोनों के बदलाव के कारण भी टीम लाइनअप में कई रूकावट पैदा हो रही थी। कप्तानी मोहम्मद अजरूद्दीन और सचिन तेंदुलकर के बीच एक व्यवसायिक खेल बन गई थी। जहां एक पूर्व कप्तान ने टर्निंग ट्रैंक पर भारतीय स्पिनर को संभालने की प्रशंसनीय योग्यता दिखाई तो वहीं दूसरा कप्तान बल्ले से उसी सफलता को दोहराने में असफल रहा। 1997-98 में श्रीलंका के खिलाफ घरेलू श्रृंखला के अंत में तेंदुलकर को कप्तानी से हटा दिया गया। कई सालों बाद तेंदुलकर ने खुलासा किया कि उन्हें मीडिया के किसी सदस्य से बर्खास्त करने के बारे में पता चला था। सचिन ने 'प्लेइंग इट माय वे' नामक अपनी आत्मकथा में लिखा है कि भारतीय बोर्ड ने उन्हें जिस तरह से कप्तानी से हटाया था उससे वो काफी दुखी हुए थे और इसी वजह से उन्हें बेहतरीन बल्लेबाजी करने की प्रेरणा मिली।