एक आदर्श कप्तान बनने के लिए उस खिलाड़ी में जुझारूपन, कर्मठता और आक्रामकता का होना बहुत जरूरी है, लेकिन अगर वही कप्तान टीम के लिए लगातार अच्छा प्रदर्शन करे तो ये टीम के अन्य खिलाड़ियों को प्रेरित करेगा। जो ज्यादा महत्वपूर्ण है।
सबसे बेकार बात ये लगती है, जब कप्तान लगातार अच्छा प्रदर्शन करने में नाकामयाब रहता है, फिर भी उसे टीम इसलिए जगह दी जाती है. क्योंकि वह टीम का कप्तान है। हम आपको आज ऐसे ही पांच दिग्गज खिलाड़ियों के बारे में बतायेंगे, जो लचर फॉर्म के बावजूद भी टीम में सिर्फ कप्तानी की हैसियत से बरकरार रहे:
#1 माइक ब्रेयर्ली
इस लिस्ट के बारे में हम जब भी चर्चा करेंगे तो उसमे सबसे पहला नाम माइक ब्रेयर्ली का होगा। जो टीम के लिए ओपनिंग करते थे। लेकिन वह कभी भी खुद को एक विशेषज्ञ बल्लेबाज़ के तौर पर स्थापित नहीं कर पाए। वह टीम में इसलिय बरकरार रखे जाते थे, क्योंकि वह कप्तान थे।
एक बल्लेबाज़ के तौर पर उनका टेस्ट में 22.88 और वनडे में 24.28 का औसत था। लेकिन एक कप्तान के तौर पर वह इस ग्रुप के एलिट सदस्यों में आते हैं।
34 साल के बाद उन्होंने शिक्षण कार्य की वजह से टीम में शामिल होने में असमर्थता जताई, क्योंकि वह फिलोसफी के लेक्चरर बन गये थे। न्यूकासल विश्वविद्यालय में लेक्चरर बनने से पहले 1977 में वह इंग्लैंड टीम के कप्तान बने थे।
उन्होंने 31 टेस्ट मैचों में कप्तानी की थी जिसमे 17 में जीत और 4 मैचों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उनका सम्मान और बढ़ जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी कप्तानी में दो एशेज (1977 और 81) का ख़िताब भी इंग्लैंड को जिताया था।
#2 डैरेन सैमी
डैरेन सैमी जब वेस्टइंडीज टीम के कप्तान बनाये गये थे। तब उनकी चौतरफा आलोचना होने लगी थी। लोग कहते थे कि सैमी में कप्तान के कोई गुण नहीं हैं। ऐसे में सैमी की खराब फॉर्म भी उनकी आलोचना का एक कारण बन रहा था।
लेकिन जिस वक्त सैमी ने कप्तानी सम्भाली थी, उस वक्त टीम में कोई दूसरा इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार नहीं था।
यद्यपि सैमी ने लिमिटेड ओवर के फॉर्मेट में कुछ अच्छी पारियां खेली थी, जिसकी वजह से उन्हें केमार रोच की जगह पर टेस्ट टीम में शामिल किया गया क्योंकि वह टीम के कप्तान भी थे।
सैमी की कप्तानी में वेस्टइंडीज ने टी-20 वर्ल्डकप जीता था। जिससे उन्हें हमेशा इतिहास में याद रखा जाएगा। लेकिन टेस्ट मैचों में वह उतने प्रभावी नहीं रहे जितना कि उन्हें होना चाहिए। सैमी को तब टेस्ट से संन्यास लेना पड़ा जब उनसे टेस्ट टीम की कप्तानी ले ली गयी।
#3 माइकल क्लार्क
पीठ की चोट से लम्बे समय तक परेशान रहे क्लार्क का 2015 विश्वकप में खेलना संदिग्ध लग रहा था। विश्वकप जैसे बड़े समारोह में क्लार्क का टीम में चुना जाना सिर्फ और सिर्फ उनकी कप्तानी का जोर था। प्रोफेसनल तरीके से उन्हें चुना जाना गलत था।
उनकी फॉर्म एशेज 2015 तक खराब रही, वह रन बनाने के लिए तरस रहे थे। तो उनका टीम में चुना जाना बस उनकी कप्तानी थी। उन्होंने खुद कहा था कि किसी भी विपक्षी को हराना तब और मुश्किल हो जाता है, जब वह 11 और हम 10 ही होते हैं।
ये एशेज सीरीज क्लार्क के लिए बहुत ही खराब गुजरी थी, जिसमें एक कप्तान और खिलाड़ी के तौर पर वह पूरी तरह विफल रहे थे। इसी के चलते उन्होंने क्रिकेट को अलविदा भी कह दिया।
#4 सौरव गांगुली
सौरव गांगुली भारत के सबसे सफल कप्तानों में शुमार किए जाते हैं लेकिन साल 2004 के बाद उनकी फॉर्म ने उनका साथ छोड़ दिया। गांगुली को अपने खेल के चलते बहुत संघर्ष करना पड़ा। वह एक के बाद एक पारी में असफल साबित होने लगे।
इसकी चर्चा भारतीय क्रिकेट में जोरों से होने लगी और उन्हें ग्रेग चैपल के चलते टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
लेकिन दादा ने हार नहीं मानी और उन्होंने 2006 में टीम में बेहतरीन वापसी की।
#5 एलिस्टेयर कुक
एलिस्टेयर कुक ने अभी हाल में पाकिस्तान के खिलाफ 263 रन की पारी खेलकर बहुत सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। लेकिन पिछले साल कुक का बुरा दौर था खसकर उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे। जिससे टीम में उनकी जगह पर सवाल उठने लगे थे।
विश्वकप की टीम से उन्हें बाहर करने का एक ये भी कारण था की उन्होंने पिछली 33 टेस्ट परियों में मात्र 23 के औसत से रन बनाये थे। जिसमें उन्होंने कोई भी शतक नहीं बनाया था।
उनके स्थान को लेकर उनकी सबसे ज्यादा आलोचना इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन कर रहे थे। उन्होंने उनकी तकनीकी पर सवाल उठाये थे। उन्होंने कहा कि उन्हें खुद से पूछना चाहिए कि क्या वह जो बाहर से दिखते क्या अंदर से भी वैसे ही हैं। उनकी बल्लेबाज़ी से इंग्लैंड क्रिकेट को किस हद तक मदद मिल रही है।
लेखक-दीप्तेश सेन, अनुवादक-मनोज तिवारी