जैसा कि एक बार राहुल द्रविड़ ने कहा था कि हर भारतीय खिलाड़ी की सफलता के पीछे एक कहानी है। पैसों की तंगी से लेकर क्रिकेट की राजनीति तक, क्रिकेटरों ने न जाने कितनी ही रुकावटों का सामना किया। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने के बाद भी कई खिलाड़ियों के करियर को फील्ड पर और उसके बाहर के विवादों ने खराब किया। कुछ ने इन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों को पार कर क्रिकेट को जुनून को सर्वोपरि रखा तो कुछ ने इन हालातों के आगे घुटने टेक दिए। बहुत से भारतीय खिलाड़ी ऐसे हैं, जिनके संघर्ष की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। आज कल बायॉपिक फिल्मों का दौर है, आइए जानते हैं दर्शकों के मनोरंजन के लिए किन भारतीय खिलाड़ियों की कहानी को पर्दे पर उतारा जा सकता है। #5 पठान ब्रदर्स यूसुफ पठान और इरफान पठान वड़ोदरा के मांडवी में पैदा हुए। उनके पिता स्थानीय मस्जिद में काम करते थे और उनकी मासिक आय महज 250 रुपए थी। क्रिकेट के जुनून को पालने के लिए पठान भाइयों के पास पैसे की कमी थी। दोनों के पास स्कूल, क्रिकेट ग्राउंड जाने के लिए एक ही साइकल थी और एक ही क्रिकेट किट। इरफान अपने पिता से 50 रुपये लेकर इस्तेमाल किए हुए स्पोर्ट्स शूज खरीदते थे, क्योंकि नए जूते खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। दोनों भाइयों इन हालातों पर जीत हासिल की और भारत की जर्सी पहनकर दिखाई। जहां इरफान लेफ्ट आर्म स्विंग बोलर के तौर पर अपनी खास पहचान बनाई, वहीं यूसुफ बने बेहद खतरनाक हार्ड हिटर। इनकी कहानी न सिर्फ कठनाइयों से जूझ रहे युवाओं को प्रेरित करती है, बल्कि इनके बीच का रिश्ता भी एक मिसाल है। #4 वीरेंदर सहवाग दिल्ली के नजफगढ़ में जन्मे सहवाग का बचपन भी कम कठिनाइयों भरा नहीं था। वीरू के नाम से लोकप्रिय, इस पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज की परवरिश एक संयुक्त परिवार में हुई। वह 50 भाइयों के साथ एक ही घर में रहते थे। उनके पिता अनाज के व्यापारी थे और चाहते थे कि वीरू भी उसी व्यवसाय से जुड़ें, लेकिन नियति तो कुछ और ही थी। वह क्रिकेट खेलने के लिए घर से 84 किमी दूर जाते थे। उन्होंने टीवी पर सचिन को देखकर बल्लेबाजी के गुर भी सीखे। सहवाग ने भी टीम इंडिया तक का सफल सफर तय किया। हालांकि, अपनी छवि बनाने में उन्हें थोड़ा समय जरूर लगा, लेकिन जल्द ही वह एक बेखौफ खिलाड़ी और निर्मम बल्लेबाज के रूप में लोकप्रिय हो गए। एक बार उन्हें ओपनिंग करने का मौका मिला, उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और खुद को सबसे विस्फोटक ओपनर के रूप में स्थापित किया। अपनी हाजिरजवाबी और स्पष्टवादिता के बल पर सहवाग ने दुनियाभर के क्रिकेट फैन्स का दिल भी जीता। #3 सौरव गांगुली भारत के सबसे बेहतरीन और सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली ने अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे और सबको बखूबी पार किया। दादा एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। गांगुली की परवरिश उनके बडे़ भाई स्नेहाशीष ने की। स्नेहाशीष बंगाल क्रिकेट टीम के लिए खेलते थे। दाएं हाथ से सब काम करने वाले गांगुली ने बाएं हाथ से बल्लेबाजी करना सिर्फ इसलिए सीखा ताकि वह अपने भाई के क्रिकेट किट का इस्तेमाल कर सकें। घरेलू क्रिकेट में शानदार खेल के बल पर 90 के दशक के शुरुआती दौर में ही दादा को टीम इंडिया में जगह मिल गई। शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रही और 1992 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे में सिर्फ एक खराब मैच के बाद ही दादा को बाहर कर दिया गया। इसके बाद दादा ने 1996 में टीम में वापसी की और बाकी का सफर ऐतिहासिक बना दिया। दादा को टीम की कप्तानी उस दौर में मिली, जिसे भारतीय क्रिकेट का सबसे बुरा दौर कहा जा रहा था। अजहरूद्दीन फिक्सिंग के मामलों में शामिल पाए गए और फिर दादा ने बतौर कप्तान उनकी जगह ली। हालांकि, दादा ने अपनी नेतृत्वक्षमता से भारतीय क्रिकेट की सूरत को बदल कर रख दिया। उन्होंने टीम में विदेशी धरती पर मैच जीतने का जज्बा पैदा किया। दादा ने ऐसे कई युवाओं पर भरोसा दिखाया, जो टीम इंडिया का सुनहरा भविष्य बन गए। जैसे कि युवराज सिंह, जहीर खान और महेंद्र सिंह धोनी। दादा के करियर में बुरा दौर तब लौटा, जब वह कोच ग्रेग चैपल के साथ लंबे समय तक विवादों में बन रहे, लेकिन दादा ने इस रुकावट को भी पार कर दिखाया। गांगुली पर फिल्म बनाकर लोगों को यह बताया जा सकता है कि वह सचमुच कितने बड़े 'दादा' थे। #2 कपिल देव कपिल देव भारतीय क्रिकेट के सबसे शानदार ऑल राउंडरों में से एक माने जाते हैं। इतना ही नहीं उनकी गिनती विश्व के महानतम क्रिकेटरों में होती है। घरेलू क्रिकेट में अपने जलवों के दम पर वह 'हरियाणा हरिकेन' के नाम से मशहूर थे। वह अपने वक्त के सबसे शानदार स्विंग बोलर्स में से एक थे। इतना ही कपिल पाजी ने जरूरत पर टीम के लिए कई बड़ी पारियां भी खेली हैं। 1983 विश्व कप में जिम्बाब्वे के खिलाफ उनकी 175 रनों की पारी को, वनडे क्रिकेट की सबसे बेजोड़ पारियों में गिना जाता है। उनकी कप्तानी में ही भारत ने अपना पहला विश्व कप जीता। दुर्भाग्यवश 1999 में उनका नाम मैच फिक्सिंग में आया। इससे पूरे भारतीय क्रिकेट को सदमा लगा और कपिल पाजी को बुरे हालात का सामना करना पड़ा। हालांकि, बाद में सभी आरोप गलत साबित हुए। कपिल ने भी अपने करियर में हर तरह के रंग देखे। #1 युवराज सिंह युवराज सिंह का संघर्ष तो क्रिकेट जगत की सबसे प्रेरणाप्रद कहानी है। युवराज महज 19 साल की उम्र में टीम इंडिया का हिस्सा बन गए थे। युवराज ने जल्द ही वनडे टीम में अपनी एक अलग पहचान बना ली। 2007 टी-20 विश्व कप और 2011 वनडे विश्व कप जिताने में युवराज की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। युवराज के करियर और उनके फैन्स को बड़ा झटका तब लगा, जब 2011 में उन्हें कैंसर होने का पता चला। युवराज ने एक योद्धा की तरह इन हालात का सामना किया और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देकर वह फिर से क्रिकेट के मैदान में फैन्स का मनोरंजन करने उतरे। 2014 में जब भारत टी-20 विश्व कप फाइनल में श्रीलंका से हारा, तब युवराज को तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हें टीम से भी निकाल दिया गया। कुछ लोगों ने तो उनके घर पर पत्थर तक फेंके। हालांकि, युवराज के आगे बुरे वक्त ने एक बार फिर घुटने टेक दिए और उन्होंने टीम में वापसी की। युवराज ने फिल्म 'रॉकी बैलबोआ' के डायलॉग (यह मायने नहीं रखता कि आपका वार कितना जोरदार था, बल्कि मायने यह रखता है कि आप कितना जोरदार वार सह सकते हो। जीत इस पर ही निर्भर करती है।) को साबित करके दिखाया। लेखकः कोवली तेजा, अनुवादकः देवान्श अवस्थी