युवराज सिंह का संघर्ष तो क्रिकेट जगत की सबसे प्रेरणाप्रद कहानी है। युवराज महज 19 साल की उम्र में टीम इंडिया का हिस्सा बन गए थे। युवराज ने जल्द ही वनडे टीम में अपनी एक अलग पहचान बना ली। 2007 टी-20 विश्व कप और 2011 वनडे विश्व कप जिताने में युवराज की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। युवराज के करियर और उनके फैन्स को बड़ा झटका तब लगा, जब 2011 में उन्हें कैंसर होने का पता चला। युवराज ने एक योद्धा की तरह इन हालात का सामना किया और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देकर वह फिर से क्रिकेट के मैदान में फैन्स का मनोरंजन करने उतरे। 2014 में जब भारत टी-20 विश्व कप फाइनल में श्रीलंका से हारा, तब युवराज को तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हें टीम से भी निकाल दिया गया। कुछ लोगों ने तो उनके घर पर पत्थर तक फेंके। हालांकि, युवराज के आगे बुरे वक्त ने एक बार फिर घुटने टेक दिए और उन्होंने टीम में वापसी की। युवराज ने फिल्म 'रॉकी बैलबोआ' के डायलॉग (यह मायने नहीं रखता कि आपका वार कितना जोरदार था, बल्कि मायने यह रखता है कि आप कितना जोरदार वार सह सकते हो। जीत इस पर ही निर्भर करती है।) को साबित करके दिखाया। लेखकः कोवली तेजा, अनुवादकः देवान्श अवस्थी