5 प्रतिभावान भारतीय क्रिकेटर जिनके करियर की चमक फीकी होती गयी

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबका सफल और लम्बा करियर नहीं होता है। खिलाड़ियों का कॉम्बिनेशन और प्रदर्शन ही उन्हें टीम में लम्बे समय तक बरकरार रख सकते हैं। खासकर भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में ये काफी मुश्किल काम है। जहां हर खराब प्रदर्शन दूसरे खिलाड़ियों के लिए मौके की तरह होता है। हालांकि अमोल मजूमदार जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी रहे हैं जो गलत युग में होने की वजह से टीम में जगह नहीं बना सके। लेकिन कुछ प्रतिभाएं जगह पाने और अच्छा प्रदर्शन करने के बाद अपनी चमक खोते गये। इस लेख में हम आपको 5 ऐसे भारतीय खिलाड़ियों के बारे में बता रहे हैं जिनके करियर की चमक फीकी हो गयी: इरफ़ान पठान भारत को कपिल देव के बाद अदद तेज गेंदबाज़ी आलराउंडर आज तक नहीं मिला। इरफ़ान पठान जब टीम में आये थे, तो उनके आरम्भिक दिनों के प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि वह आने वाले वक्त में टीम इंडिया के आलराउंडर बन सकते हैं। पठान की गेंदें काफी स्विंग होती थीं, साथ ही वह किसी भी क्रम पर बल्लेबाज़ी करने में सक्षम थे। पठान के नाम एक हैट्रिक है, साथ ही टी-20 वर्ल्डकप के फाइनल मैच में और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेहतरीन प्रदर्शन करने पर उन्हें मैन ऑफ़ द मैच भी मिला था। इरफ़ान पठान ने लगातार बेहतरीन खेल दिखाया और वह एक बेहतरीन आलराउंडर बनने की ओर अग्रसर हो रहे थे। उनके नाम भारत के लिए सभी फॉर्मेट में 300 विकेट और 3000 रन दर्ज हैं। लेकिन धीरे-धीरे पठान का करियर पटरी से उतर गया। साल 2008 में इरफ़ान पठान ने अपना आखिरी टेस्ट खेला है। इसके अलावा साल 2012 के बाद उन्होंने भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेला है। 32 वर्षीय ये आलराउंडर घरेलू क्रिकेट में बड़ौदा की तरफ खेल रहा है। जिसकी कप्तानी भी वह कर रहे हैं। लेकिन उनके जैसा अभी तक भारत को कोई आलराउंडर फ़िलहाल अभी तक नहीं मिला है। मनिंदर सिंह 17 वर्ष की उम्र में मनिंदर की तुलना दिग्गज स्पिन गेंदबाज़ बिशन सिंह बेदी से की जा रही थी। विपक्षी बल्लेबाज़ उनका सामना करने से कतराते थे। 27 वर्ष की उम्र में ही उनका टेस्ट करियर खत्म हो गया। उनके नाम 88 विकेट हैं, जो उन्होंने 37 के औसत से लिए हैं। बिशन सिंह बेदी की जगह भरना आसान नहीं है लेकिन मनिंदर की गेंदों में गजब की विविधता थी। उनकी गेंदें काफी स्पिन होती थीं। इंग्लैंड, श्रीलंका और पाकिस्तान के खिलाफ मैच विनिंग प्रदर्शन करके उन्होंने खुद को साबित भी किया था। हालांकि जितनी जल्दी उन्होंने सबको प्रभावित किया। उतनी तेजी से उनके प्रदर्शन में गिरावट भी आई। 1987 में उन्होंने बंगलौर में पाकिस्तान के खिलाफ 10 विकेट लिए लेकिन उसके बाद तीन टेस्ट मैचों में उन्हें सिर्फ 2 विकेट मिले। उसके बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। 1989 में उन्होंने वापसी की लेकिन वह असफल रहे। 1993 में ज़िम्बाब्वे के खिलाफ मनिंदर ने अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला। जहां उन्होंने 7 विकेट लिए लेकिन उसके बाद उन्हें टीम में मौका नहीं मिला। लक्ष्मण सिवरामकृष्णन ऐसा बहुत ही कम देखने को मिला जब किसी खिलाड़ी को अपना आखिरी टेस्ट 20 साल की उम्र में खेलना पड़ा है। खासकर वह युवा खिलाड़ी भारतीय हो तो ये बात और हैरान करती है। लक्ष्मण ने 17 वर्ष की उम्र में वेस्टइंडीज के खिलाफ डेब्यू किया था। कमेंटेटर बनने से पहले लक्ष्मण एक प्रतिभावान लेग स्पिनर रहे हैं। 16 साल की उम्र में रणजी में डेब्यू करते हुए उन्होंने 28 रन देकर 7 विकेट लिए थे। उसके बाद उन्हें इंग्लैंड के खिलाफ 1984 में खेलने का मौका मिला, जहां उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और मैन ऑफ़ द मैच बने। लक्ष्मण ने 9 टेस्ट मैच खेले थे, जिसमें इंग्लैंड के खिलाफ 23 विकेट लेने के पर उन्हें मैन ऑफ़ द सीरिज बने थे। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में हुए 1985 की विजेता भारतीय टीम के अभिन्न अंग भी वह रहे थे। लेकिन इन सबके बावजूद 1987 के वर्ल्डकप में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। उन्होंने अपना आखिरी अंतर्राष्ट्रीय मैच 21 साल की उम्र में खेला था। अजय शर्मा अजय शर्मा की कहानी भी काफी दिलचस्प है, जो भुलाये नहीं भूली जा सकती है। वह तीसरे ऐसे बल्लेबाज़ हैं जिन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में बेहतरीन औसत के साथ 10 हजार रन बनाये हैं। पहली बात उनका करियर मात्र एक टेस्ट का रहा और दूसरी बात उन्हें जब भी याद आते हैं तो कहानी मैच फिक्सिंग की होती है। जिसमें नाम आने से उन्हें आजीवन प्रतिबंधित कर दिया गया था। 129 प्रथम श्रेणी मैचों में अजय शर्मा ने 67 के औसत और 38 शतकों की मदद से 10120 रन बनाये थे। 1988 में उन्होंने अपना टेस्ट डेब्यू किया। उन्होंने 30 और 23 का स्कोर किया था। लेकिन उसके बाद वह भारत के लिए लम्बे प्रारूप में नहीं खेले थे। हालांकि उन्होंने भारत के लिए 31 वनडे मैच खेले थे। वह कामचलाऊ बाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज़ भी थे। लेकिन उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। घरेलू क्रिकेट में उनका औसत 70 का था। फिर भी उनका करियर मात्र एक टेस्ट मैच का रहा। विनोद काम्बली जब आप अपने पहले रणजी मैच में पहली गेंद पर चक्का मारकर अपने करियर को शुरू करते हैं। लगातार 2 शतक बनाकर पहले भारतीय क्रिकेटर बनते हैं। 7 टेस्ट मैच में 4 शतक शामिल होते हैं। इसके बावजूद भी अगर वह खिलाड़ी मात्र 17 टेस्ट ही खेल पाए, जिसमें उसका औसत 54 के करीब हो। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में काम्बली ने 60 के औसत और 35 शतक की मदद से 10 हजार के करीब रन बनाये थे। काम्बली ने शेन वार्न के एक ओवर में 22 रन भी ठोंके थे। उनका रिकॉर्ड गजब का था। यद्यपि 100 वनडे मैच खेलने वाले काम्बली को 23 की उम्र में आखिरी टेस्ट खेलने का मौका मिला था। कुछ लोग काम्बली को सचिन से भी बेहतर खिलाड़ी मानते थे। लेकिन लम्बे प्रारूप में उनके प्रदर्शन में गिरावट के बाद वह सिर्फ पोस्टर चाइल्ड बनकर रह गये।