रणजी ट्राफी के 5 कप्तान जो कभी भी टीम इंडिया के लिए नहीं खेले

125 करोड़ की आबादी वाले देश में क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल में राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए असली संघर्ष घरेलू क्रिकेट में होता है। भारत में अलल सुबह युवा लड़के अपने कंधे पर क्रिकेट के किट बैग लेकर अपने करीबी स्टेडियम में अभ्यास करने जाते हुए आपको दिख जायेंगे। उनके जहन में एक सपना तैरता रहता है कि एक दिन वह भारत के लिए क्रिकेट खेलेंगे। रणजी ट्राफी में अच्छा प्रदर्शन करने वाले क्रिकेटरों में से चयनकर्ता राष्ट्रीय टीम के लिए उनका चयन करते हैं। लेकिन कई दफा ऐसा भी होता है, जब अकूत रन बनाने और विकेट लेने के बावजूद भी खिलाड़ी को राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिल पाती है। आज इस लेख के जरिये हम आपको ऐसे 5 रणजी कप्तानों के बारे में बता रहे हैं, जो कभी भी राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं बना पाए: मिथुन मन्हास मिथुन मन्हास बहुत ही प्रतिभावान क्रिकेटर रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश उनके समय में भारतीय टीम में सचिन, गांगुली, द्रविड़ और लक्ष्मण थे। जिनकी वजह से उन्हें राष्ट्रीय टीम में खेलने का मौका नहीं मिला। दिल्ली की रणजी टीम की कप्तानी कर चुके मन्हास 1998 से लगातार घरेलू क्रिकेट में अपनी क्षमता का परिचय देते आये हैं। फ़िलहाल वह जम्मू और कश्मीर टीम के कप्तान हैं। साल 2007-08 सीजन में उनके बेहतरीन खेल के बदौलत दिल्ली ने रणजी ट्राफी का ख़िताब जीता था। उस सीजन में उन्होंने 57.56 के औसत से 921 रन बनाये थे। वैसे मन्हास के नाम प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 8504 रन दर्ज है। देवेन्द्र बुंदेला देवेन्द्र बुंदेला काफी पिछड़े पृष्ठिभूमि से आते हैं। उज्जैन जैसे स्मालटाउन से निकले बुंदेला का घरेलू स्तर पर बेहतरीन रिकॉर्ड रहा है। 1995-96 सीजन में देवेन्द्र ने रणजी में डेब्यू किया था। साल 1998-99 में लाइमलाइट में आये थे। इस सीजन में उन्होंने 77.53 के औसत से 11 मैचों में 1008 रन बनाये थे। साल 2010 में उन्हें मध्य प्रदेश की टीम का कप्तान बना दिया गया था। लेकिन उनके कप्तानी को बड़े टेस्ट से तब गुजरना पड़ा जब एमपी के 5 खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग में फंस गये थे। इसके बावजूद उन्होंने टीम की कप्तानी की और साल 2015-16 में प्लेऑफ तक सफर तय किया। बुंदेला के नाम 8445 रन रणजी रन दर्ज है। अमोल मजुमदार विनोद काम्बली और सचिन तेंदुलकर ने जब शारदा आश्रम विद्या मंदिर के लिए खेलते हुए हैरिस शील्ड टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में 664 रन की साझेदारी की थी। तब अगले बल्लेबाज़ के तौर पर अमोल मजुमदार पैड पहने हुए बैठे थे। लेकिन मुंबई की कप्तानी कर चुके अमोल ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया और अपने पहले मैच में ही 260 रन बना डाला। उन्होंने घरेलू स्तर पर कई रिकॉर्ड बनाये। लेकिन उन्हें भी सचिन, द्रविड़, गांगुली और लक्ष्मण की वजह से टीम इंडिया में मौका नहीं मिला। 15 साल तक मुंबई के लिए खेलते हुए 2009 में मजुमदार ने असम और आन्ध्र की तरफ से खेलना शुरू कर दिया। हालाँकि साल 2014 तक 171 मैचों में उनके नाम 11,167 रन बनाये थे। जिसमें 30 शतक भी शामिल हैं। येरे गौड़ रेलवे उन्हें अपनी टीम का राहुल द्रविड़ मानता है। गौड़ ने सन 1994-95 में कर्नाटक की तरफ से अपना रणजी डेब्यू किया था। उसके बाद वह रेलवे की तरफ से खेलने लगे। साल 2001-02 और 2004-05 में उन्होंने टीम को खिताबी जीत दिलाने में अहम भूमिका अदा की। साल 2006-07 में वह एक बार फिर कर्नाटक टीम के कप्तान बने थे। लेकिन वह फिर रेलवे में आ गये। साल 2012 में उन्होंने घरेलू क्रिकेट में अपने 17 साल पूरे किए। गौड़ ने 45.53 के औसत से 7650 रन बनाये। जिसमें 16 शतक थे। उन्होंने 2001-02 के सीजन में सबसे ज्यादा 761 रन बनाये थे। पंकज धरमानी पंजाब की तरफ से 1993 में पंकज धरमानी ने बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज़ अपना करियर शुरू किया था। धरमानी ने 18 साल घरेलू क्रिकेट खेला और कई रिकॉर्ड बनाये। उन्होंने 50 के औसत से 9,312 रन बनाये। जिसमें 42 अर्धशतक 26 शतक शामिल थे। उनका उच्च स्कोर 305 रन था। धरमानी ने भूपिंदर सिंह (202) के साथ 460 रन की सातवें विकेट साझेदारी निभाई थी। ये सेमीफाइनल मैच दिल्ली के खिलाफ था। धरमानी को भारतीय टीम में 1996 में दक्षिण अफ़्रीकी दौरे के लिए शामिल किया गया था। जहाँ उन्होंने अपने डेब्यू मैच में मात्र 8 रन बनाये थे। उसके बाद उन्हें दोबारा टीम में नहीं शामिल किया गया।