महेंद्र सिंह धोनी ने वनडे और टी-20 की कप्तानी छोड़ दी है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि वो भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल कप्तान हैं। वहीं वो एक ऐसे बल्लेबाज भी रहे हैं जिन्होंने अपनी बल्लेबाजी से भारतीय टीम को कई मैच जिताए हैं। क्रिकेट इतिहास के वो पहले ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी की तीनों ट्रॉफियां जीती हैं। धोनी ने अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को आईसीसी टी-20, वर्ल्ड कप और आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में जीत दिलाई। टीम के लिए धोनी ने काफी कुछ किया है। अपनी कप्तानी में धोनी ने बड़े-बड़े रिकॉर्डों को ध्वस्त किया। लेकिन लगभग एक दशक तक भारतीय टीम की कप्तानी करने के बाद उन्होंने टीम में क्या-क्या बदलाव लाया ? क्या वजह रही कि वो भारत ही नहीं दुनिया के इतने बड़े खिलाड़ी बन गए। आइए आपको बताते हैं। 1.छोटे फॉर्मेट में टीम में जीत की आदत डालना सौरव गांगुली भारत के पहले ऐसे कप्तान थे जिन्होंने सही मायनों में भारतीय टीम को जीतना सिखाया। उन्होंने अपनी कप्तानी में एक ऐसी टीम तैयार की जो हर हालात में लड़ना जानती थी। उन्होंने सिखाया कि कैसे फाइनल में पहुंचा जाता है लेकिन दुर्भाग्यवश भारतीय टीम फाइनल तक पहुंच कर फाइनल में हार जाती थी। कई बड़े मौकों पर भारतीय टीम को हार का सामना करना पड़ा। गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम 14 बार वनडे के फाइनल में पहुंची लेकिन सिर्फ एक फाइनल जीत पाई।वहीं 3 फाइनल मैचों का कोई रिजल्ट नहीं निकला। लेकिन धोनी ने अपनी कप्तानी में इस इतिहास को बदल दिया। धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने सीखा कि फाइनल मैचों में कैसे जीत हासिल की जाती है। पहले जहां भारतीय टीम फाइनल तक पहुंच कर हार जाती थी, अब धोनी की कप्तानी में टीम जीतने लगी। कई बड़े फाइनल मैचों में भारतीय टीम ने फतह हासिल की। धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने 13 फाइनल मैचों में से 8 में जीत हासिल की। इस वजह से इंडियन टीम फाइनल मैचों की पंसदीदा टीम बन गई। 2.युवा खिलाड़ियों का साथ देना और अगले कप्तान के लिए एक अच्छी टीम छोड़ कर जाना धोनी ने अपनी कप्तानी में पहली वनडे सीरीज 2008 में ऑस्ट्रेलिया में हुए सीबी सीरीज में जीती। धोनी की अगुवाई में भारतीय टीम ने उस समय दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में हराकर सीरीज अपने नाम किया। उस समय ऑस्ट्रेलियाई टीम के कप्तान रिकी पोन्टिंग ने भारतीय टीम को पहले 2 फाइनल में हराने का दावा किया था, लेकिन इंडियन टीम ने उनको गलत साबित कर दिया। लेकिन इस सीरीज से पहले भारतीय टीम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थी। भारतीय टीम ने अपने 2 बड़े खिलाड़ियों सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को टीम में जगह नहीं दी थी। इस पर कप्तान धोनी का कहना था कि इस तरह का संदेश सभी खिलाड़ियों में भेजना जरुरी होता है कि टीम से बड़ा कुछ भी नहीं होता। यही वजह रही कि उन्होंने हर समय युवा खिलाड़ियों का समर्थन किया। सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी में जहां युवराज सिंह, हरभजन सिंह और जहीर खान जैसे दिग्गज खिलाड़ियों को तैयार किया तो वहीं धोनी ने अश्विन, जडेजा, मुरली विजय और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने में काफी मदद की। ये खिलाड़ी अब भारतीय टीम का अहम हिस्सा हैं। गांगुली ने अपनी कप्तानी में जो टीम तैयार की थी उससे धोनी को काफी फायदा मिला था, ठीक उसी तरह धोनी ने अपनी कप्तानी में जो टीम तैयार की है उससे आने वाले दिनों में कोहली को काफी फायदा मिलेगा। 3. टीम में चयन के लिए फिटनेस और फील्डिंग को सबसे ज्यादा जरुरी बनाना 90 के दशक और 2000 के शुरुआत में भारतीय टीम की फील्डिंग उतनी अच्छी नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलियाई टीम की फील्डिंग के सामने भारतीय टीम की फील्डिंग काफी कमजोर थी। लेकिन धोनी ने कप्तान बनते ही सबसे पहले भारतीय टीम की फील्डिंग और फिटनेस में सुधार पर काम किया। 2012 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में उन्होंने ये कहकर भारतीय क्रिकेट में भूचाल ला दिया था कि गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर में से कोई 2 ही टीम में जगह बना सकता है। क्योंकि इन खिलाड़ियों की फील्डिंग उतनी अच्छी नहीं है। ये खिलाड़ी कितने बड़े प्लेयर हैं इस बात को बताने की जरुरत नहीं है लेकिन धोनी ने ऐसा कहकर साफ संदेश दे दिया की टीम में बने रहने के लिए ना केवल फॉर्म बल्कि फील्डिंग और फिटनेस भी उतना ही जरुरी है। धोनी ने खुद कई मौकों पर इसका उदाहरण पेश किया। अपने पूरे करियर में धोनी मैदान पर काफी फुर्तीले रहे हैं। कई बार अपनी विकेटकीपिंग से उन्होंने सभी क्रिकेट फैंस को हैरान कर दिया। वहीं उनके बाद आई युवा खिलाड़ियों की फौज भी काफी फिट थी। टीम में अभी जो खिलाड़ी हैं सबकी फील्डिंग लाजवाब है, कप्तान कोहली खुद भी बहुत अच्छे फील्डर हैं। ऐसे में अपनी फील्डिंग से ये खिलाड़ी मैच में काफी अंतर पैदा कर देते हैं जो कि जीतने के लिए काफी अहम होता है। 4. खेल के दौरान एकदम शांत रहना कुछ संदर्भ में हम ये कह सकते हैं कि कप्तान उतना ही अच्छा होगा जितनी अच्छी उसकी टीम होगी, लेकिन यहां ये भी ध्यान देने वाली बात है कि एक कप्तान ही टीम को बनाता है। रिकी पोंटिंग और उनकी टीम ने काफी शानदार क्रिकेट खेला था। वहीं सौरव गांगुली एक आक्रामक खिलाड़ी थे जो उनकी टीम में भी दिखता था। अनिल कुंबले दृढ़ संकल्प वाले खिलाड़ी थे और वो चीज उनकी टीम में दिखती थी। 2008 में पर्थ में खेला गया वो टेस्ट मैच कौन भूल सकता है। आक्रामकता के दौर में जब धोनी टीम के कप्तान बने तो उन्होंने भारतीय टीम का पूरा नजरिया ही बदल दिया। पहले भारतीय टीम जहां बड़े स्कोर का पीछा करते हुए दबाव में बिखर जाती थी, धोनी की कप्तानी में टीम ने दबाव झेलना सीखा। पहले कई बार ऐसा होता था कि अच्छी स्थिति में होने के बावजूद टीम हार जाती थी। लेकिन धोनी ने अपनी कप्तानी से सभी खिलाड़ियों में ऐसा विश्वास पैदा किया कि वो मुश्किल से मुश्किल हालात का सामना करने से पीछे नहीं हटे। धीरे-धीरे पूरी भारतीय टीम का लुक बदल गया। एक समय लक्ष्य का पीछा करते हुए धड़ाम हो जाने वाली भारतीय टीम रन चेज की सबसे बड़ी टीम बन गई। पिछले 2 सालों में धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने लक्ष्य का पीछा करते हुए कई बड़े मैचों में जीत हासिल की। इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान वर्तमान कप्तान विराट कोहली का है, लेकिन धोनी ने भी कोहली से कम मैच नहीं जिताए हैं। अपनी कप्तानी में धोनी ने 43 पारियों में लक्ष्य का पीछा करते हुए 1558 रन बनाए। जिसमें से टीम का जीत औसत शानदार 91.64 है। धोनी के एट्टीट्यूड ने सभी खिलाड़ियों का नजरिया बदल दिया और टीम चेज करने में माहिर हो गई। 5. हैरान कर देने वाले बड़े फैसले लेने की क्षमता महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी कप्तानी में कई बड़े मौकों पर ऐसे फैसले लिए जिसे किसी और कप्तान में लेने की हिम्मत आज तक नहीं हुई। मसलन, 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल मैच का आखिरी ओवर जोगिंदर शर्मा से कराना, 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल मैच में बल्लेबाजी के लिए खुद को प्रमोट करना, 2013 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में महंगे साबित होने के बावजूद ईशांत शर्मा से गेंदबाजी करवाना। ये वो फैसले थे जिससे भारतीय क्रिकेट टीम ने इतिहास रच दिया और धोनी सबसे बड़े कप्तान बन गए। धोनी मैच दर मैच अपंरपरागत फैसले लेते गए और उसे सही भी साबित किया। इस मामले में अब चाहें उन्हें भाग्यशाली कहें या फिर मैच का सबसे गैंबलर कहें या फिर उन्हें जीनियस कहें, धोनी ने जो भी निर्णय लिया वो सही साबित हुआ और उससे भारतीय टीम को काफी फायदा हुई। उन्होंने साबित कर दिया कि उनके अंदर ऐसे बड़े फैसले लेने की क्षमता है और वे इससे पीछे हटने वाले नहीं हैं, भले ही रिजल्ट कुछ भी हो। धोनी के कप्तानी छोड़ने के बाद भारतीय क्रिकेट का अब एक सुनहरा अध्याय खत्म हो चुका है। एक बार ऐसे ही पूछे जाने पर कि वो नए और पुराने खिलाड़ियों के बीच वो तालमेल कैसे बिठाते हैं धोनी ने जवाब दिया कि' अब हम किशोर कुमार के जमाने से निकलकर सीन पॉल के जमाने में आ गए हैं"। कप्तानी के लिए भी ये बात सटीक बैठती है अब हम धोनी युग से निकलकर कोहली युग में आ गए हैं। अब सब कुछ कोहली के ऊपर निर्भर है।