क्रिकेट के खेल में टेस्ट एक बेहतरीन फॉरमेट है। खेल के हर पारूप का अपना महत्व है लेकिन कई क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ियों ने टेस्ट को सबसे अव्वल दर्जे पर रखा है। साल 1877 में अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत हुई थी। तब से लेकर अब तक खेल में काफ़ी बदलाव आए हैं। साल 1912 और 1939 के बीच कुछ ऐसे टेस्ट मैच खेले गए थे जिसमें समय की सीमा नहीं होती थी, ऐसे मैच को ‘टाइमलेस टेस्ट’ कहा जाता है। ऐसे टाइमलेस टेस्ट मैच में एक दिन खिलाड़ियों के आराम के लिए होता था जो रविवार को रखा जाता था। साल 2005 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल ने प्रयोग करने के लिए ऑस्ट्रेलिया और वर्ल्ड इलेवन के बीच 6 दिनों का टेस्ट मैच आयोजित करवाया था। ये टेस्ट मैच चौथे दिन ही ख़त्म हो गया और आईसीसी का ये प्रयोग बुरी तरह असफल रहा। वक़्त-वक़्त पर टेस्ट क्रिकेट की ‘सेहत’ पर चर्चाएं होती रही हैं, मसलन टेस्ट मैच के दौरान स्टेडियम में भीड़ कैसे बढ़े, दर्शकों का रुझान कैसे टेस्ट की तरफ ज़्यादा हो। यही वजह है टेस्ट क्रिकेट में कई तरह के प्रयोग किए गए हैं, मसलन डे-नाइट टेस्ट मैच जिसमें गुलाबी गेंद का इस्तेमाल हुआ है, आईसीसी की कोशिश थी कि स्टेडियम में ज़्यादा लोग आएं। प्रयोग के इसी क्रम में 4 दिनों के टेस्ट मैच की भी चर्चाएं हुईं। ऐसे में 26 दिसंबर 2017 को सेंट जॉर्ज पार्क में साउथ अफ़्रीका और जिम्बाब्वे के बीच पहला ऐसा टेस्ट मैच खेला जाएगा जो 4 दिनों का होगा। कुछ देशों के क्रिकेट बोर्ड जैसे इंग्लैड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड और क्रिकेट साउथ अफ़्रीका ने 4 दिनों के टेस्ट का समर्थन किया है, तो कई मौजूदा और पूर्व क्रिकेटर्स ने इस नए फॉरमेट के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है। यहां हम उन 5 वजहों के बारे में बताएंगे जो 5 दिनों के टेस्ट मैच बरक़रार रखने की वक़ालत करते हैं।
#5 कड़ा संघर्ष
वनडे और टी-20 के मुक़ाबले टेस्ट क्रिकेट में संघर्ष का स्तर अलग-अलग होता है। टेस्ट में पिच का मिज़ाज बदलता रहा है और एक खिलाड़ी हर तरह के हालात में खेलने का हुनर होना चाहिए। टेस्ट क्रिकेट में हालात मुश्किल होते हैं, हर बल्लेबाज़ को संघर्ष करना पड़ता है, रन आसानी से नहीं बन पाते हैं। पहले दो एशेज़ टेस्ट मैच में हमले देखा कि ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीवन स्मिथ ने मुश्किल वक़्त में 141 रन की शानदार पारी खेली और पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया को बढ़त दिलाई। शॉन मार्श ने ऐसी ही मुश्किल पारी खेली और नबाद 126 रन बनाए। अगर हम चेतेश्वर पुजारा की बात करें तो वो हर मैच में मज़बूती के साथ उभर कर सामने आते हैं। अगर 4 दिनों का टेस्ट मैच शुरू हो गया तो शायद हम ऐसी लंबी और संघर्षपूण पारी नहीं देख पाएंगे। तेज़ रन बनाना किसी भी बल्लेबाज़ की मजबूरी बन जाएगी। लंबी पारियों की जगह स्ट्राइक रेट की अहमियत बढ़ जाएगी जो टेस्ट मैच के लिए सही नहीं है। गेंदबाज़ों के लिए स्पेल में भी बदलाव आ जाएगा, वो उस ख़ूबसूरती के साथ गेंदबाज़ी नहीं कर पाएंगे जैसा कि 5 दिनों के टेस्ट मैच में करते आए हैं।चूंकि टेस्ट मैच संयम का खेल है तो ऐसे में इसकी कमी देखने को मिलेगी। गेंदबाज़ जल्दी-जल्दी विकेट लेने की कोशिश करेंगे। गेम में स्पीड ज़रूर बढ़ जाएगी लेकिन बेहद मुमकिन है कि चुनौतियों में कमी आएगी।
#4 पिच में वक़्त पर दरार पैदा नहीं होगी
जैसी पिचों का इस्तेमाल आज किया जाता है वैसा करीब 18 महीने पहले नहीं होता था। वक़्त के साथ पिच में भी काफ़ी बदलाव आया है। नई पिचों में सभी को फ़ायदा मिलता है जैसे कि बल्लेबाज़, तेज़ गेंदबाज़ और स्पिनर। इसलिए मौजूदा वक़्त में हमें दिलचस्प टेस्ट मैच देखने को मिल रहा है। अगर 4 दिनों के टेस्ट मैच की शुरुआत हो गई तो घरेलू टीम पिच के साथ फेरबदल शुरू कर देगी। मुमकिन है कि मेजबान टीम पिच पर कुछ घास छोड़ देगी जिससे मैच के नतीजे में बदलाव आ जाए। साल 2015 की फ़्रीडम सीरीज़ हो या जब साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया ने श्रीलंका का दौरा किया था, तब पिच काफ़ी टर्न ले रही थी, जिससे बल्लेबाज़ों को रन बनाने में मुश्किल आ रही थी। इन सीरीज़ों में किसी टीम का सर्वाधिक स्कोर 355 और 334 था। कई टेस्ट मैच 3 दिनों में ही ख़त्म हो गए थे। इसलिए ये ज़रूरी है कि बल्ले, गेंद और पिच में संतुलन बना रहे जिससे टेस्ट का रोमांच बरक़रार रहे।
#3 बल्लेबाज़ों के मिज़ाज में बदलाव
मौजूदा दौर में दर्शक टी-20 में गेल की तूफ़ानी पारी देखना चाहते हैं या फिर एबी डीविलियर्स का विस्फोटक शॉट जो मैदान के सभी कोनों में गेंद पहुंचा देते हैं। लेकिन क्रिकेट के जानकार मुरली विजय और चेतेश्वर पुजारी के डिफ़ेंसिव गेम की तारीफ़ करते हैं। केन विलियमसन भी अपने इसी संयम भरे अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं। बेहद मुमकिन है कि 4 दिनों के टेस्ट मैच में कोई भी बल्लेबाज़ पहले की तरह संभल कर नहीं खेल पाएगा। बल्लेबाज़ वैसा खेल नहीं दिखा पाएंगे जैसा वो 5 दिनों के टेस्ट मैच खेलते हैं। 4 दिनों के टेस्ट मैच में वक़्त की कमी की वजह से तेज़ खेलते हुए ज़्यादा रन बनाने की ज़रूरत पड़ेगी, ताकि उन्हें 2 बार गेंदबाज़ी करने का पूरा मौक़ा मिल सके। तो ऐसे में ये माना जाए कि बल्लेबाज़ों की सोच और मिज़ाज में बदलवा ज़रूर आएगा और वो 4 दिनों के खेल के हिसाब से बल्लेबाज़ी करेंगे।
#2 स्पिनर की अहमियत में बदलाव
किसी भी हुनरमंद खिलाड़ी के लिए टेस्ट क्रिकेट किसी चुनौती से कम नहीं होता है। क्रिकेटर को अलग-अलग हालात और माहौल के हिसाब से खेलना पड़ता है। स्पिन गेंदबाज़ी भी इस खेल का अहम हिस्सा होता है। अगर भारतीय उपमहाद्वीप की बात करें तो पिच चौथे या 5वें दिन ही टूटना शुरू हो जाती है, इसलिए आख़िरी दो दिनों में स्पिनर की अहमियत काफ़ी बढ़ जाती है। जिस पिच पर स्विंग और सीम गेंदबाज़ी होती है वो भी 5वें दिन ही टर्न लेना शुरू करती है। कई टेस्ट टीम जिनमें ख़ासकर एशिया की कुछ टीमें स्पिनर को मैच में खेलाना या खेलना पसंद करती है। इसलिए आख़िरी दिन स्पिनर से गेंदबाज़ी कराई जाती है ताकि ज़रूरी विकेट मिल सके। मुमकिन है कि 4 दिनों के टेस्ट मैच में स्पिनर की अहमियत घट सकती है।
#1 पांचवें दिन का रोमांच
हांलाकि किसी भी टेस्ट मैच का हर दिन अपने आप में अहमियत रखता है। ऐसे कई मौक़े आते हैं जब टेस्ट मैच बारिश या ख़राब रोशनी की वजह से प्रभावित होता है, ऐसे में 5वां दिन काफ़ी रोमांचक बन जाता है। अगर 4 दिनों के टेस्ट मैच में कोई दिन बारिश या ख़राब रोशनी की वजह से बर्बाद हो जाता है तो टीम के पास सिर्फ़ 3 दिनों का ही खेल बचेगा जिससे मैच का नतीजा निकलना मुश्किल हो जाएगा। अब तर्क ये दिया जा सकता है कि हम मैच को जल्दी शुरू कर देंगे तो ऐसे में एक दिन में करीब 98 ओवर का खेल हो पाएगा, और मैच को आधे घंटे पहले शुरू करना पड़ेगा। ऐसे में 4 दिन का टेस्ट खेलना मुश्किल हो सकता है। अगर हम ये मान भी लें कि बारिश की वजह से खेल में दख़ल नहीं पड़ेगा तो 5वें दिन के रोमांच की तुलना नहीं की जा सकती। मसलन अगर हम हाल में ही ख़त्म हुए दूसरे एशेज़ टेस्ट की बात करें तो, ये गेम संतुलित लगा रहा था लेकिन आख़िरी दिन इंग्लैंड को 178 रन बनाने थे और 6 विकेट टीम के बचे हुए थे। ये मैच अपने आप में 5वें दिन रोमांचक बन गया था। हाल में भारत-श्रीलंका के बीच हुए कोलकाता टेस्ट में पहला 2 दिन बारिश की भेंट चढ़ गया, फिर भी इस मैच का नतीजा निकला जो शायद 4 दिनों के मैच में मुमकिन नहीं होता। अगर 4 दिनों का मैच शुरू हो गया तो ड्रॉ की संभावना कई गुणा बढ़ जाएगी। खिलाड़ी भी अटैक से ज़्यादा मैच ड्रॉ करने की कोशिश करेंगे। इसलिए टेस्ट क्रिकेट 5 दिनों से कम दिन का करना सही फ़ैसला नहीं होगा। लेखक – साहिल जैन अनुवादक- शारिक़ुल होदा