भारत को विशेषज्ञ टी20 टीम बनाने की जरुरत वाले 5 कारण

जब अधिक से अधिक देश अपने युवा खिलाड़ियों को मौका दे रहे हैं और उन्हें टी-20 के लिए विशेषज्ञ बना रहे हैं। ऐसे में भारत चयन प्रक्रिया में अजीब रूढ़िवादी रहा है और साथ ही खेल के इस सबसे छोटे फॉर्मेट के लिए भारत ने कोई अलग टीम नहीं बनाई है।

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यह निराशाजनक है क्योंकि कई सारे युवा खिलाड़ी, जो आईपीएल के स्टार खिलाड़ी हैं, वे नियमित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के लिए प्रमुख टीम में शामिल नहीं हो पाए हैं। समय के अनुसार जरूरी है कि उन खिलाड़ियो को आजमाया जाए क्योंकि वे लंबे समय तक लाभांश दे सकते हैं।

यहां हम पांच कारण बता रहे हैं कि आखिर क्यों भारत के पास विशेषज्ञ टी-20 टीम होनी चाहिए-

युवाओं में निवेश करना

जब टी-20 क्रिकेट की बात आती है तो युवाओं पर निवेश करना एक आजमाया हुआ फॉर्मूला है। अधिकांश देशों के पास उनकी युवा टी-20 साइड है और इसे ध्यान में रखते हुए भारत अधिक या कम समान संगठन का दावा कर सकता है जो वन-डे में प्रतिस्पर्धा करता है।

2019 के विश्व कप तक अधिकांश भारतीय सितारों की औसत आयु 30 से ऊपर होगी। रोहित शर्मा, विराट कोहली और रविचंद्रन अश्विन 30 के ऊपर हो जायेंगे जबकि धोनी की उम्र 38 के करीब होगी।

हालांकि कुछ अपवाद भी शामिल हैं, यह कहना गलत नहीं है कि टी-20 एक ऐसा प्रारूप है जिसमें खेल के तेज प्रकृति के कारण युवाओं का बोलबाला है। ऐसे में भविष्य को ध्यान में रखते हुए भारत को अधिक युवाओं को तहरीज देनी चाहिए और एक प्रभावी टी-20 टीम बनाने का मौका देना चाहिए।

2007 जीत के सूत्र को दोहराएं

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विश्वकप टी-20 के उद्घाटन संस्करण 2007 में वापस आते हैं जब भारत ने ट्रॉफी उठाकर कर सभी को चौंका दिया तब किसी को भारत की जीत की उम्मीद नहीं थी। वरिष्ठ टीम 50 ओवरों के विश्वकप में मिली हार से पस्त थी और जूझ रही थी और टीम का मनोबल पूरी तरह से टूटा हुआ था।

टीम के बड़े नामों को चयन से बाहर रख दिया गया था ताकि स्टार नामों के बिना टीम के नये युवा खिलाड़ी जीत की भूख दिखाते हुए खुद को साबित कर सके लेकिन यही सफलता का मंत्र साबित हुआ है।

युवराज सिंह और एमएस धोनी जैसे सितारों वाली युवा टीम ने निर्भीक होकर क्रिकेट खेला क्योंकि उनके पास हारने के लिए कुछ भी नहीं था। यही कारण है कि यह सबसे महत्वपूर्ण समय है कि भारत के युवा जो निडर होकर इस धुंआधार क्रिकेट को खेल सकते हैं उन पर निवेश करके जीत के उस फार्मूले को दोहराने की कोशिश की जाए।

पावर हिटर खोजना

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यदि आप 2007 विश्वकप टी-20 में भारत की जीत के बारें में फिर से सोचते हैं तो फिर क्या याद आता है, वह है युवराज सिंह की पावर हिटिंग परफॉर्मेंस। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दो महत्वपूर्ण नॉकआउट मैचों में युवराज ने अकेले अपनी बल्लेबाजी के दम पर ही अपनी टीम को जीत दिलायी थी।

जाहिर है पावर हिटिंग टी-20 क्रिकेट में सबसे महत्वपूर्ण चीज है इसलिए वेस्टइंडीज की टीम इस फॉर्मेट में इतनी सफल रही हैं। वेस्टइंडीज की टीम ऐसे पावर हिटर खिलाड़ियों से भरी हुई है जो मैदान पर आये और सीधे आकर चौके छक्कों की शुरुआत कर दें।

भारतीय टीम के साथ सबसे बड़ी समस्या अभी यह है कि टीम में हार्दिक पांड्या के अलावा कोई भी ऐसा बल्लेबाज नहीं है जो कि पावर हिटर हो और अपरंपरागत क्रिकेट खेल सकता है। यही कारण है कि भारत को पांड्या जैसे ऑलराउंडर की तलाश करना चाहिए जो पूरे आत्मविश्वास के साथ चौके छक्के लगा सकते हैं।

अतिरिक्त कार्यभार का प्रबंधन करना

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आजकल जिस अत्यधिक मात्रा में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला जा रहा है ऐसे में आज उन खिलाड़ियों के लिए कार्यभार मैनेज करना सबसे बड़ी चुनौती है। यह सच है कि आज खिलाड़ी पहले की तुलना में ज्यादा फिट और खेल के लिए ज्यादा भूखे हैं लेकिन इससे उन दबावों को दूर नहीं किया जाता है जो उनके शरीर में लेना पड़ता है।

कार्यभार को मैनेज करने के लिए एक सफल मंत्र एक रोटेशन पॉलिसी का उपयोग करना है, जहां खिलाड़ियों को आराम मिलता है। लंबे सीजन में स्टार खिलाड़ियों में से किसी को दीर्घकालिक चोट का नुकसान उठाना पड़ सकता है, जो पिछले साल रोहित शर्मा के साथ हुआ, यह एक टीम के लिए बहुत महंगा हो सकता है।

खेल के हर प्रारूप के लिए एक ही टीम के साथ जाने में समस्या है कि यह रोटेशन की संभावना को मारता है। शिखर धवन, विराट कोहली और अब हार्दिक पंड्या भारत के लिए तीनों प्रारूपों में शामिल हैं। इतना अत्यधिक क्रिकेट खेला जा रहा है, जब एक लंबी श्रृंखला के बाद उसी खिलाड़ी को टी-20 खेलने के लिए कहा जाता है तो यह उस प्रारूप को बेहद हल्के में लेने की प्रवृत्ति बन जाती है और उसे उतनी महत्वता नहीं दी जाती है जितना वह हकदार है।

प्रतिभा की कोई कमी नहीं

kuldeep yadav जब कोई भारत की चयन प्रक्रिया को देखता है, तो उसे वास्तव में यह आश्चर्य होगा कि आखिर टी-20 के विशेषज्ञों की संख्या को क्यों नहीं बढ़ाया गया है जबकि वास्तविक प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। यदि वेस्ट इंडीज, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका की टीमें ऐसा कर सकती हैं, तो यह एक बड़ा समय है जब भारत को इन उदाहरणों का पालन करना चाहिए।

आईपीएल के मुख्य उद्देश्य में से एक यह था कि नये तराशे हुए युवा हीरों को आवश्यक दिशा देना और उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए तैयार करना था। जबकि टूर्नामेंट के इतने सफल संस्करणों के बाद भी, यह अजीब बात है कि भारत उन प्रतिभाओं की निकाल नहीं रहा है, जो पहले से ही पास हैं।

आईपीएल के सितारों की कोई कमी नहीं है, जो टी-20 में शुरुआत करने के योग्य हैं। यजवेंद्र चहल और कुलदीप यदव पहले से ही सीमित मौके पर अपना अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं। वॉशिंगटन सुंदर जो तमिलनाडू प्रीमियर लीग में अपनी धुंआधार परफॉर्मेंस दे चुके है वो जरूर देखने योगय हैं। वह बल्लेबाज जो आईपीएल में बेहतरीन प्रदर्शन कर चुके हैं और एक मौका के लायक है जैसे संजू सैमसन, नीतिश राना और ईशान किशन।

क्रमश: शीर्ष क्रम में राहुल त्रिपाठी अपनी पावर हिटिंग क्षमता से तूफान ला सकते हैं, जबकि क्रुणाल पांड्या की ऑलराउंडर क्षमताएं तलाशा जा सकता हैं। वहीं गेंदबाजी विभाग में, बेसिल थम्पी, संदीप शर्मा और सिद्धार्थ कौल निश्चित रूप से एक मौके के योग्य हैं।

लेखक- दिप्तेश सेन

अनुवादक- सौम्या तिवारी

Edited by Staff Editor
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