5 बातें जिनकी वजह से भारतीय प्रशंसक महेंद्र सिंह धोनी से नफरत करते हैं

वीरेंदर सहवाग और युवराज सिंह

महेंद्र सिंह धोनी विश्व के एकलौते क्रिकेटर हैं, जिन्हें अपने देश को जबरदस्त कामयाबी दिलाने के बावजूद, लोगों की नफरत का सामना करना पड़ता है। जितने उनके चाहने वाले हैं, उतने ही उनसे नफरत करने वाले भी हैं। 2004 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू करने वाले धोनी का कप्तानी करियर कभी स्थिर नहीं रहा। धोनी ने 2007 आईसीसी T20 विश्व कप, भारत में आयोजित 2011 विश्व कप और 2013 चैंपियंस ट्राफी जीत कर अपने टीम को बुलंदियों पर पहुँचाया। धोनी भारत के सबसे सफल कप्तान हैं। किसी और कप्तान के मुकाबले धोनी की कप्तानी में भारत ने सबसे ज्यादा टेस्ट और एकदिवसीय मैच जीते हैं। लेकिन विदेशों में टेस्ट में ख़राब प्रदर्शन करने के कारण उनकी हमेशा आलोचना हुई है। जिसमें दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का दौरा शामिल है। जिसकी वजह से उन्होंने टेस्ट से संन्यास ले लिया। टेस्ट के अलावा टीम में सीनियर खिलाडी को लेकर उनके किये गए टिपण्णी से भी भारतीय प्रशंसक नाराज़ हैं। ये रहे पांच कारण जिनकी वजह से भारतीय प्रशंसक धोनी से नफरत करते है: #1 सीनियर प्लेयर्स को बाहर करना [caption id="attachment_12277" align="alignnone" width="595"] वीरेंदर सहवाग और युवराज सिंह[/caption] धोनी ने 2007 में जबसे कप्तानी संभाली है, तब से ज्यादातर युवा खिलाडियों को टीम में मौका दिया गया है। युवाओं को मौका देने की वजह से सीनियर्स को टीम से बाहर करना पड़ा। 2007 के शर्मनाक वर्ल्ड कप के बाद सीनियर्स जैसे सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर और अनिल कुंबले को आलोचना झेलनी पड़ी थी। राहुल द्रविड़ के कप्तानी से हटने के बाद धोनी को एकदिवसीय टीम का कप्तान बनाया गया। इसके बाद भविष्य के दौरों में सचिन को छोड़ कर बाकी के सीनियर्स को नहीं चुना गया। 2011 विश्व कप के बाद जब भारत का भाग्य बदला, तो गौतम गंभीर, जहीर खान, युवराज सिंह, हरभजन सिंह और वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाडियों को टीम में ज्यादा जगह ना मिली। विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद उन्हें टीम में जगह नहीं मिली। इन खिलाडियों की जगह युवा खिलाडी को मौका दिया गया। कोई भी सीनियर खिलाडी 2015 विश्व कप के संभावित टीम का हिस्सा नहीं था। इन सब के पीछे धोनी को कारण समझा गया जिसकी वजह से भारतीय दर्शकों के दिल में धोनी के लिए नफरत भर गयी। #2 विदेशों में टेस्ट श्रृंखला जीतने में असमर्थ रहना [caption id="attachment_12276" align="alignnone" width="800"]पिछले कुछ सालों में भारत का विदेशों में प्रदर्शन चिंताजनक रहा है पिछले कुछ सालों में भारत का विदेशों में प्रदर्शन चिंताजनक रहा है[/caption] 2008 में अनिल कुंबले के बाद जब धोनी को टेस्ट कप्तानी सौंपी गयी, तब सभी को उनसे ढेर सारी उम्मीदें थी। शुरुआत में धोनी ने चयनकर्ताओं के भरोसे पर खरा उतरे। होम टेस्ट सीरीज में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और बाकी बड़े टीम को मात दी। धोनी के ही कप्तानी में भारत पहली बार टेस्ट रैंकिंग में नंबर 1 स्थान पर पहुंचा। सौरव गांगुली को पछाड़ते हुए वे भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान बने। लेकिन अभी सबसे बुरा दौर तो आना बाकी था। 2011 के बाद से भारत विदेशी धरती पर सीरीज जीतने में असफल रही। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के हाथों उसे 4-0 से मुंह की खानी पड़ी। इसके साथ साथ न्यूज़ीलैंड और दक्षिण अफ्रीकन दौरे पर टीम का प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में जब भारत के ख़राब प्रदर्शन के कारण सभी धोनी के कप्तानी पर सवाल उठा रहे थे, तब उन्होंने बीच सीरीज में ही संन्यास की घोषणा कर दी और टेस्ट कप्तान कोहली को बना दिया गया। #3 चेन्नई सुपरकिंग्स के खिलाड़ियों को वरीयता देना [caption id="attachment_12275" align="alignnone" width="628"]ऐसा माना जाता है कि धोनी चेन्नई के खिलाड़ियों को तरजीह देते हैं ऐसा माना जाता है कि धोनी चेन्नई के खिलाड़ियों को तरजीह देते हैं[/caption] एक और बात जिस के कारण धोनी पर उँगलियाँ उठी वो थी CSK के खिलाडियों को टीम में जगह देना। आईपीएल के शुरुआत से धोनी चेन्नई सुपरकिंग्स के कप्तान हैं और उन्होंने 2010 और 2011 में चेन्नई सुपरकिंग्स को जीत भी दिलवाई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आईपीएल में युवा प्रतिभा निखर के सामने आई है। युसूफ पठान, सुरेश रैना, स्टुअर्ट बिन्नी, रवि अश्विन जैसे खिलाडी आईपीएल की ही देन है। लेकिन धोनी के कप्तान होने के कारण ये आशंका जताई गयी की टीम के चयन में वे चेन्नई सुपरकिंग्स के खिलाडियों को ज्यादा महत्व देते हैं। ये भी कहा गया कि धोनी ने योग्य खिलाडी की जगह चेन्नई सुपरकिंग्स के खिलाडियों को जगह दी। #4 ख़राब खेल के बावजूद कुछ खिलाडियों पर ज्यादा विश्वास दिखाना [caption id="attachment_12274" align="alignnone" width="594"]ख़राब फॉर्म के बावजूद जडेजा टीम में बने रहे ख़राब फॉर्म के बावजूद जडेजा टीम में बने रहे[/caption] कप्तान कूल को खिलाडियों में विश्वास रखने के लिए जाना जाता है। अगर कोई अच्छा खिलाडी ख़राब प्रदर्शन करें तो भी धोनी उसके साथ खड़े रहते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण हैं रोहित शर्मा। रोहित के ख़राब प्रदर्शन के बावजूद उन्होंने रोहित के चयन का समर्थन किया और उन्हें बल्लेबाज़ी करने के लिए ओपनिंग पर भेजा। रोहित अपने आलोचकों का मुँह बंद करते हुए धोनी के विश्वास पर खरे उतरे। ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने दोहरा शतक भी जमाया। लेकिन सभी रोहित की तरह नहीं निकले। धोनी ने रविन्द्र जडेजा पर पूरा विश्वास जताया, लेकिन वे उम्मीदों के मुताबिक परिणाम नहीं ला सके। 2013 आईसीसी चैंपियंस ट्राफी में कमाल का प्रदर्शन करने के बाद जडेजा के फॉर्म में भरी गिरावट आई। भारत के न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड के दौरे के लिए जब जडेजा को चुना गया तो सभी को आश्चर्य हुआ। सौराष्ट्र का यह ऑलराउंडर विपक्षी खिलाडियों पर दबाव बनाने में असमर्थ रहे थे। वें गेंदबाज़ी में रन लुटाए जा रहे थे। विदेशी पिचों पर उनकी गेंदबाज़ी की सभी ने आलोचना भी की। इसके बावजूद धोनी ने जडेजा में विश्वास बनाये रखा। इस वजह से पूर्व खिलाडियों धोनी से नाराज़ होते गए। बाद में जडेजा को टीम से निकाल दिया गया। #5 धोनी के फिनिशिंग एबिलिटी में कमी आना [caption id="attachment_12273" align="alignnone" width="594"]धोनी एक शानदार फिनिशर हैं धोनी एक शानदार फिनिशर हैं[/caption] एम एस धोनी को क्रिकेट का एक शानदार फिनिशर माना जाता है। कई बार धोनी ने आखिरी ओवरों में भारत को जीत दिलाई है, इसलिए उन्हें विश्व का नंबर 1 फिनिशर भी माना जाता है। उल्लेखनीय मैच है आईसीसी 2011 विश्व कप का फाइनल। जब धोनी ने छक्का लगा कर भारत को दूसरी बार विश्व विजेता बनवाया था। वेस्ट इंडीज में त्रिकोणीय श्रृंखला के फाइनल में धोनी आखिर तक विकट पर जमे रहे और 45 रनों की नाबाद पारी खेल कर भारत को एक विकट से मैच जितवाया। इससे कप्तान ने वाहवाही अर्जित की। लेकिन कई ऐसे भी मौके आये जब धोनी मैच को सही ढंग से खत्म नहीं कर सके। पिछले कुछ महीनों में धोनी की फिनिशिंग एबिलिटी में काफी कमी देखी गयी है। 2014 के इंग्लैंड दौरे में एकमात्र T20 में भारत 180 रनों का पीछा कर रहा था। भारत का स्कोर 131 पर 2 विकेट थे और जीत के लिए 34 गेंदों पर 50 रन की जरुरत थी। फिर कोहली और रैना के आउट होने के बाद सब जिम्मेदारी धोनी पर आ गयी। आखिरी ओवर में टीम को 17 रनों की जरुरत थी। ओवर की शुरुआत तो अच्छी हुई, लेकिन धोनी ने एक रन लेने से इंकार कर दिया। वह मैच भारत 3 रनों से हार गया। धोनी के ऐसे व्यवहार की कड़ी आलोचना हुई। हालांकि पिछले एक वर्ष से धोनी ने अपनी फिनिशर वाली क्षमता फिर से प्राप्त कर ली है। लेखक: रोहन नागराज, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी