5 वजहों से कुलदीप यादव भारतीय स्पिन गेंदबाजी का चेहरा बन सकते हैं

कुलदीप यादव ने मार्च में टेस्ट, वन्डे और टी-20 क्रिकेट में डेब्यू किया। इसके अलावा वह लंबे समय से घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहें हैं। जिसकी वजह से उन्हें भारतीय टीम जगह मिली है। कुलदीप यादव भारत की ओर से खेलने वाले पहले चाइनामैन गेंदबाज हैं। साल 2012 के अंडर 19 विश्वकप में कुलदीप यादव ने सबसे ज्यादा विकेट लिए थे। जिसके बाद वह चर्चा में आ गये थे। इस विश्वकप में भारत ने खिताबी जीत दर्ज की थी। उसके बाद कुलदीप का आईपीएल में शानदार प्रदर्शन रहा, जिसके बाद साल 2012 में उनका चयन राष्ट्रीय टीम हो गया। तीन साल पहले यादव को आस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम में चुना गया था। कुलदीप के प्रदर्शन को देखते हुए, ऐसा लग रहा है कि वह बहुत जल्द ही भारतीय टीम में मुख्य स्पिनर के रूप में खेलेंगेः स्पिनर जो बल्लेबाजी कर सकता है कुलदीप अभी नए-नए टीम में आएं हैं, इसलिए ज्यादातर लोगों को ये नहीं ये पता है कि वह एक बेहतरीन बल्लेबाज भी हैं। लेकिन घरेलू क्रिकेट में कुलदीप का प्रदर्शन शानदार रहा है। जिसको देखते हुए वह निचले क्रम पर अच्छी बल्लेबाज़ी कर सकते हैं। कुलदीप ने 23 प्रथम श्रेणी मैचों में 28 के औसत से 730 रन बनाएं हैं। जिसमें उनके नाम एक शतक व 5 अर्धशतक भी शामिल हैं। अश्विन व जडेजा की तरह ही कुलदीप भी अपनी बल्लेबाज़ी से टीम को जरूरत के समय मददगार साबित हो सकते हैं। हालांकि अभी उनकी बल्लेबाज़ी की तुलना जडेजा और अश्विन से करना बेमानी होगी लेकिन वह 30 से 40 रन की पारी खेलने में सक्षम हैं। आर अश्विन और आर जडेजा सीमित ओवर के क्रिकेट में संघर्ष कर रहे हैं टेस्ट क्रिकेट में घरेलू मैदान पर जडेजा और अश्विन का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा है, लेकिन इन दोनों की गेंदबाज़ी में बड़ी गिरावट देखने को मिला है। जब टीम विदेश दौरे पर होती है। इसके अलावा ये दोनों गेंदबाज़ अक्सर सीमित ओवर के क्रिकेट में विकेट पाने के लिए संघर्ष करते हुए नजर आते हैं। इसका उदाहरण अभी हाल ही में सम्पन्न हुए आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में देखने को मिला है। जहां जडेजा और अश्विन विकेट से टर्न न मिलने की वजह से उतने प्रभावी नहीं नजर आये। जबकि वेस्टइंडीज के खिलाफ कुलदीप ने विकेट लेकर ये दिखा दिया कि वह बिना विकेट के मदद से भी अपना असर छोड़ सकते हैं। अश्विन साल 2015 विश्वकप के बाद सीमित ओवर प्रारूप में विकेट लेने के लिए संघर्ष करते हुए नजर आये हैं। ऐसे में कुलदीप को सीमित ओवर की टीम में स्थायी रूप में शामिल किया जा सकता है। क्योंकि उनका प्रदर्शन सीमित ओवर के क्रिकेट में भी बेहतरीन रहा है। कुलदीप विकेट लेने के लिए पिच पर निर्भर नहीं रहते हैं कुलदीप यादव की ये खासियत सबसे अहम है, जो उन्हें अन्य स्पिनरों से अलग बनाती है। वह विकेट की प्रकृति पर निर्भर नहीं करते हैं। वह दुनिया के किसी भी कोने में जाकर विकेट ले सकते हैं। उन्हें स्पिन विकेट की जरूरत नहीं होती है। अपने डेब्यू टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक तरफ डेविड वार्नर और स्टीव स्मिथ जडेजा और अश्विन को बड़ी आसानी से खेल रहे थे। वहीं कुलदीप ने बिना किसी टर्न की मदद से 3 विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिया को बैकफुट पर धकेल दिया था। इसी साल आईपीएल में मैच के बाद कुलदीप ने कहा था कि उन्हें विकेट लेने के लिए टर्न की जरूरत नहीं है। दुनिया में अगर स्पिनर ऐसी बात करता है तो सबको हैरानी होगी, ये बड़ी बात है। चाइनामैन फैक्टर किसी भी टीम में कलाई के स्पिनर की जरूरत होती है, ये बात तब और अहम हो जाती है, जब स्पिनर बाएं हाथ का हो। ये बात टीम के लिए बेहद खास हो जाती है। क्योंकि बाएं हाथ के स्पिनर बहुत कम देखने को मिलते हैं, चाइनामैन स्पिनर तो बिल्कुल ही नहीं मिलते हैं। बहुत से चाइनामैन गेंदबाज अबतक विश्व क्रिकेट में देखे गये हैं, लेकिन कुलदीप एक चाइनामैन होने के साथ-साथ एक नियमित लेग स्पिनर की तरह बिना एक्शन बदले गूगली और लेग स्पिन भी फेंक सकते हैं। जिससे बल्लेबाजों को भांपने में कठिनाई हो सकती है। 22 वर्षीय इस युवा स्पिन गेंदबाज़ ने चाइनामैन गेंदबाज़ होने के साथ-साथ खुद को एक बेहतरीन विशुद्ध लेग स्पिनर के सांचे में भी ढाला हुआ है। जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रभावी साबित होगा। मैच जिताऊ हैं कुलदीप कुलदीप के घरेलु करियर पर अगर निगाह दौड़ाएं तो पाएंगे कि वह चौके-छक्के खाने के बावजूद भी अपनी लय को खराब नहीं होने देते हैं। वह अपने रनअप पर जाते हैं और बल्लेबाज को जाल में फंसाने की तैयारी करते हैं। ऐसा उन्होंने धर्मशाला टेस्ट में ग्लेन मैक्सवेल के खिलाफ किया था। जब चौका खाने के बाद कुलदीप ने बेहतरीन गूगली से मैक्सवेल को ऑउट कर दिया था। अन्य स्पिनरों की तरह कुलदीप ज्याद डैमेज और कंट्रोल करने का काम नहीं करते हैं। वह बल्लेबाज के सामने हर गेंद पर चुनौती पेश करते हैं। जिसकी वजह से वह मैच जिताऊ स्पिनर साबित हुए हैं। लेखक-साग्निक कुंडू, अनुवादक-जितेन्द्र तिवारी

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