आधुनिक युग में ज्यादातर टेस्ट मैचों के परिणाम निकलने के पांच अहम कारण

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बीते सालों में क्रिकेट के सबसे बड़े फॉर्मेट, टेस्ट क्रिकेट खेलने में तरीके में काफी बदलाव देखने को मिले हैं। बीते सालों में आज के मुकाबले टेस्ट मैच के काफी कम नतीजे निकलके थे, यहां तक की बिना तय समय सीमा वाले टेस्ट भी काफी ड्रॉ हुए । पहले ज्यादा आक्रामक क्रिकेट नहीं खेला जाता था और बल्लेबाज़ लंबे समय तक अपनी इच्छा के अनुसार बल्लेबाज़ी किया करते थे। रिजल्ट निकानले के लिए भी आज के मुकाबले आक्रामक खेल कम ही देखने को मिलता था , लिहाज़ा ज्यादातर मुकाबलों में दोनों टीमें रनों का अंबार लगा देती थी और मैच ड्रॉ हो जाया करते थे। लेकिन आधुनिक युग में खेल का तरीका बदल चुका है औऱ खिलाड़ियों की मानसिकता भी पहले के खिलाड़ियों से काफी अलग है। 1. बढ़ी हुई रन गति पुराने समय में बल्लेबाज़ों के पास काफी धीरज होता था और वो कई घंटों तक बिना रन बनाए खेल सकते थे, लिहाज़ा तब रन रेट काफी कम होती थी। तब के बल्लेबाज़ बड़े शॉट्स कम ही खेलते थे और कई मेडन ओवर्स खेलकर भी उनकी एक्रागता भंग नहीं होती थी। वनडे और टी-20 के आने से बल्लेबाज़ों का नजरिया पूरी तरह से बदल गया है और वो अब हम समय रन बनाने की ओर सोचते हैं। पहले की तरह मेडन ओवर्स काफी घट चुके है और रन रेट बढ़ गई है। आज के वक्त में 3 रन ज्यादा की रन रेट आम है और कई बार तो टीमें 4 से भी ज्यादा की औसत से रन बनाती हैं। एक दिन में 300 रन आसानी से बन जता हैं और सेट बल्लेबाज़ एक सेशन में 100 से ज्यादा रन बनाने की क्षमता रखते हैं। वीरेंद्र सहवाग , डेविड वॉर्नर और ए बी डिविलियर्स जैसे बल्लेबाज़ों ने तो टेस्ट में एक तरह की क्रान्ती ला दी है और ये बल्लेबाज़ तेज़ रन बनाने के लिए गेंद को हवा में खेलने से भी नहीं कतराते । बढ़ी हुई रन रेट के चलते आज कल ज्यादातर टेस्ट मैच का नतीजा 5 दिनों से पहले ही आ जाता है। 2. LBW की संख्या में इज़ाफा England v Pakistan: 4th Investec Test - Day Four पहले अंपायर्स मन में संदेह होने पर बल्लेबाज़ों को lbw देने पर बचते थे और कोई भी संशय बल्लेबाज़ के हक में ही जाता था। कम ही अंपायर्स ऐसे थे जो बल्लेबाज़ों को लंबा कदम निकालने पर lbw आउट देते थे फिर भले ही गेंद चाहे विकेट के सामने हो। बल्लेबाज़ तभी lbw करार दिए जाते थे जब गेंद विकेट के बिलकुल सामने हो और बल्लेबाज़ साफ आउट हो। लेकिन आज ऐसा नहीं होता , आजकल अगर गेंद lbw के मापदंड पर जरा भी खरी हो तो अंपायर्स गेंदबाज़ के पक्ष में निर्णय देते हैं। चाहे बल्लेबाज़ ने लंबा कदम बाहर निकाला हो और गेंद स्टंप्स की लाइन में हो तो ज्यादातर मौकों पर आज अंपायर उसे आउट दे देते हैं। डिसिजन रिव्यू सिस्टम के आने से भी lbw की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी आई है। अगर बल्लेबाज़ गलती करता है तो गेंदबाज़ी टीम के पास उसे थर्ड अंपायर के पास रेफर करने की सुविधा है और अगर थर्ड अंपायर को बल्लेबाज़ के आउट होने के निर्णायक सबूत मिले तो उसे आउट दिया जा सकता है। 3. स्पिन/ पेस के खिलाफ बल्लेबाज़ी तकनीक में बदलाव CRICKET-IND-NZL क्योंकि आज कल के बल्लबाज़ तेज़ी से रन बनाने की तकनीक में ढले हुए हैं जिससे उनके पास लंबे समय तक पिच पर डटे रहने की क्षमता नहीं है। आज कम ही बल्लेबाज़ों को टेस्ट स्पेश्लिस्ट कहा जाता है और ज्यादातर बैट्समैन की तकनीक टेस्ट क्रिकेट में उजागर हो जाती है। आजकल काफी बल्लेबाज़ अपनी घरेलू कंडीशंस के माहिर हैं लेकिन जैसे ही उन्हें मुश्किल कंडीशंस का सामना करना पड़ता है , वो दयनीय स्थिति में दिखाई देते हैं। उद्धारण के तौर पर जिस तरह से भारतीय उपमहाद्वीप की टीमें ऑस्ट्रेलिया , साउथ अफ्रीका की ठोस बांउस वाली पिचों पर संघर्ष करती हैं और इंग्लैंड जैसी स्विंग कंडीशंस में भी उन्हें काफी मुश्किल होती है। इस प्रकार से विदेशी टीमों को सबकॉन्टीनेंट कंडीशंस में भारत , पाकिस्तान और श्रीलंका के स्पिनर्स को खेलने में खासी दिग्गतों का सामना करना पड़ता है। लगातार एकतरफा सीरीज़ खत्म हो रही हैं और मेजबान टीम का दबादबा काबिज़ रहता है। 4. पारी घोषित करने में कप्तानों की निडरता CRICKET-SRI-AUS आजकल कप्तान निडर हैं और वो पारी घोषित कर दूसरी टीम को छोटे लक्ष्य देने से गुरेज़ नहीं करते । जीत के लिए वो दूसरी टीम को छोटा लक्ष्य हासिल करने का लालच देते हैं ताकि वो विपक्षी टीम को जाल में फंसा सके और ड्रॉ की बजाए मैच का नतीजा निकल सके। इससे दो चीजें होती हैं - एक तो बल्लेबाज़ टारगेट हासिल करने के लालच में जल्द अपनी विकेट जल्द खो देते हैं और जीत में गेंदबाज़ों का दबदबा रहता है दूसरा ये कि अच्छी शुरुआत से बल्लेबाज़ी टीम लक्ष्य के करीब पहुंच जाते हैं और बल्लेबाज़ आज जिस तेज़ गति से रन बनाने में सक्षम हैं उसमें कुछ भी संभव है। पहले ऐसा नहीं होता था और कप्तान तब तक पारी घोषित नहीं करते थे जब तक ये तय न हो जाए की उनकी टीम की हार नहीं हो सकती। विपक्षी टीम को कम समय में विशाल लक्ष्य दिया जाता था जिससे बल्लेबाज़ी टीम पर टेस्ट को ड्रॉ कराने का दबाव रहता था। 5. घरेलू टीम के लिए मददगार पिच CRICKET-ENG-PAK आजकल पिच घरेलू टीम के अनुकूल तैयार की जाती है , जिससे मेजबान टीम को बढ़त मिले। हालांकि ये एक खेल का विवादास्पद भाग है और हर सीरीज़ के दौरान इस विष्य पर बहस होती है। कुछ लोग सोचते हैं कि घेरूलू टीम को उनकी कंडीशंस का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन कुछ लोग ये मानते हैं कि स्पोरटिंग पिच होनी चाहिए। लेकिन असलीयत यही है कि कोई भी टीम अपने घर में टेस्ट नहीं हारना चाहती जिससे प्रभावित होकर पिच क्यूरेटर ऐसी पिचें तैयार करते हैं जो मेजबान टीम को मदद करे। जब भारत ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हो तो वहां का पिच क्यूरेटर टर्निंग नहीं तैयार करेगा, इसी तरह जब विदेशी टीम भारत दौरे पर आएंगी तो भारतीय क्यूरेटर उन्हें ठोस और बांउसी पिच नहीं देगा । इससे एक टीम के लिए अपना दबदबा कायम रखना आसान हो जाता है और यही कारण है कि दूसरों के घर में कम ही टीमें जीतकर लौटती हैं।

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