पहले अंपायर्स मन में संदेह होने पर बल्लेबाज़ों को lbw देने पर बचते थे और कोई भी संशय बल्लेबाज़ के हक में ही जाता था। कम ही अंपायर्स ऐसे थे जो बल्लेबाज़ों को लंबा कदम निकालने पर lbw आउट देते थे फिर भले ही गेंद चाहे विकेट के सामने हो। बल्लेबाज़ तभी lbw करार दिए जाते थे जब गेंद विकेट के बिलकुल सामने हो और बल्लेबाज़ साफ आउट हो। लेकिन आज ऐसा नहीं होता , आजकल अगर गेंद lbw के मापदंड पर जरा भी खरी हो तो अंपायर्स गेंदबाज़ के पक्ष में निर्णय देते हैं। चाहे बल्लेबाज़ ने लंबा कदम बाहर निकाला हो और गेंद स्टंप्स की लाइन में हो तो ज्यादातर मौकों पर आज अंपायर उसे आउट दे देते हैं। डिसिजन रिव्यू सिस्टम के आने से भी lbw की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी आई है। अगर बल्लेबाज़ गलती करता है तो गेंदबाज़ी टीम के पास उसे थर्ड अंपायर के पास रेफर करने की सुविधा है और अगर थर्ड अंपायर को बल्लेबाज़ के आउट होने के निर्णायक सबूत मिले तो उसे आउट दिया जा सकता है।