आधुनिक युग में ज्यादातर टेस्ट मैचों के परिणाम निकलने के पांच अहम कारण

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3. स्पिन/ पेस के खिलाफ बल्लेबाज़ी तकनीक में बदलाव
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क्योंकि आज कल के बल्लबाज़ तेज़ी से रन बनाने की तकनीक में ढले हुए हैं जिससे उनके पास लंबे समय तक पिच पर डटे रहने की क्षमता नहीं है। आज कम ही बल्लेबाज़ों को टेस्ट स्पेश्लिस्ट कहा जाता है और ज्यादातर बैट्समैन की तकनीक टेस्ट क्रिकेट में उजागर हो जाती है। आजकल काफी बल्लेबाज़ अपनी घरेलू कंडीशंस के माहिर हैं लेकिन जैसे ही उन्हें मुश्किल कंडीशंस का सामना करना पड़ता है , वो दयनीय स्थिति में दिखाई देते हैं। उद्धारण के तौर पर जिस तरह से भारतीय उपमहाद्वीप की टीमें ऑस्ट्रेलिया , साउथ अफ्रीका की ठोस बांउस वाली पिचों पर संघर्ष करती हैं और इंग्लैंड जैसी स्विंग कंडीशंस में भी उन्हें काफी मुश्किल होती है। इस प्रकार से विदेशी टीमों को सबकॉन्टीनेंट कंडीशंस में भारत , पाकिस्तान और श्रीलंका के स्पिनर्स को खेलने में खासी दिग्गतों का सामना करना पड़ता है। लगातार एकतरफा सीरीज़ खत्म हो रही हैं और मेजबान टीम का दबादबा काबिज़ रहता है। 4. पारी घोषित करने में कप्तानों की निडरता CRICKET-SRI-AUS आजकल कप्तान निडर हैं और वो पारी घोषित कर दूसरी टीम को छोटे लक्ष्य देने से गुरेज़ नहीं करते । जीत के लिए वो दूसरी टीम को छोटा लक्ष्य हासिल करने का लालच देते हैं ताकि वो विपक्षी टीम को जाल में फंसा सके और ड्रॉ की बजाए मैच का नतीजा निकल सके। इससे दो चीजें होती हैं - एक तो बल्लेबाज़ टारगेट हासिल करने के लालच में जल्द अपनी विकेट जल्द खो देते हैं और जीत में गेंदबाज़ों का दबदबा रहता है दूसरा ये कि अच्छी शुरुआत से बल्लेबाज़ी टीम लक्ष्य के करीब पहुंच जाते हैं और बल्लेबाज़ आज जिस तेज़ गति से रन बनाने में सक्षम हैं उसमें कुछ भी संभव है। पहले ऐसा नहीं होता था और कप्तान तब तक पारी घोषित नहीं करते थे जब तक ये तय न हो जाए की उनकी टीम की हार नहीं हो सकती। विपक्षी टीम को कम समय में विशाल लक्ष्य दिया जाता था जिससे बल्लेबाज़ी टीम पर टेस्ट को ड्रॉ कराने का दबाव रहता था।