5 कारण, क्यों महेंद्र सिंह धोनी बन गए भारत के सबसे पसंदीदा कप्तान

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ये तो किसी दिन होना ही था, जब भी होता एकदम सन्नाटे में हो जाता बिना किसी शोर शराबे के, लाइमलाइट से दूर। जिस तरह से धोनी मैदान पर शांत रहते हैं उतनी ही शांति से भारत के सबसे सफल कप्तान ने टीम की कप्तानी छोड़ दी। धोनी के कप्तानी छोड़ने के बाद ना केवल भारत बल्कि वर्ल्ड क्रिकेट में खलबली मच गई। सब धोनी के अचानक लिए गए इस फैसले से हैरान रह गए। कुछ खिलाड़ियों ने धोनी के इस कदम की जमकर तारीफ की। 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप में कप्तान बनाए जाने के बाद से ही धोनी ने भारतीय टीम को कई बड़े मैच में जीत दिलवाई। साल दर साल वो सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए और उनकी कप्तानी में भारतीय टीम इतिहास रचती गई। उनके अजीबोगरीब फैसलों ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरीं तो वहीं इस दौरान उनकी मानसिक मजबूती और आत्मविश्वास का भी पता चला। इस वजह से धोनी ना केवल भारत बल्कि दुनियाभर के क्रिकेट फैंस के पसंदीदा कप्तान बन गए। आइए आपको बताते हैं वो 5 कारण जिसकी वजह से धोनी सबके चहेते बन गए। 5. स्टंप के पीछे मजाकिया अंदाज में खिलाड़ियों से बातचीत 'ओ श्री उधर तेरी गर्लफ्रैंड नहीं है थोड़ा इधर आ जा' धोनी इस तरह से फील्डिंग के दौरान अपने साथी खिलाड़ियों से बातचीत करते थे। वे अपने हर एक खिलाड़ी के बारे में अच्छे से जानते थे और इसी वजह से मैदान के माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए वो अपनी ही स्टाइल में मजाकिया लहजे में खिलाड़ियों को दिशा-निर्देश देते थे। सफलता की नई ऊंचाइयां छूने के बावजूद धोनी के स्वभाव में जरा भी फर्क नहीं आया। हमेशा साथी खिलाड़ियों के साथ उनका दोस्तानापूर्ण रहा। उन्हें ये बात अच्छी तरह से पता थी कि साथी खिलाड़ियों से किस तरह से बातचीत की जाए जिससे उनका जोश ना कम हो। 'इसकी घंटी बजा दे' और 'जरा छक्का खा के दिखा' जैसे कमांड अब हमें नहीं सुनाई देंगे। धोनी की ये वो आवाजें थी जो स्टंप माइक्रोफोन में रिकॉर्ड हुई थीं। लेकिन इसके अलावा भी उन्होंने खिलाड़ियों को कई प्रेरणादायक चीजें बताई होंगी और उन्हें मोटिवेट किया होगा। 4.आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेना dhoni in world cup भले ही धोनी कितने खराब फॉर्म में क्यों ना हों लेकिन जब टीम की जिम्मेदारी लेने की बात आती है तो एक कुशल कप्तान की तरह आगे बढ़कर वो बखूबी उस जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और काम को अंजाम तक पहुंचाते हैं। 2011 वर्ल्ड कप में धोनी का बल्ला ज्यादा चल नहीं रहा था, लेकिन श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मैच में हालात को देखते हुए उन्होंने खुद को बैटिंग ऑर्डर में प्रमोट किया और 28 साल बाद भारत को विश्व चैंपियन बना कर ही लौटे। ये दिखाता है कि मानसिक रुप से वे कितने मजबूत खिलाड़ी हैं और खुद पर उन्हें कितना भरोसा है। धोनी उन गिने-चुने कप्तानों में से एक हैं जिन्होंने कप्तानी के दौरान अच्छी बल्लेबाजी की। धोनी ने टीम के लिए अपने खेलने का अंदाज भी बदल डाला पहले जहां वो अपने लंबे-लंबे छक्कों के लिए जाने जाते थे वहीं टीम का कप्तान बनने के बाद वो समझदारी और सूझबूझ से बल्लेबाजी करने लगे। जरुरत पड़ने पर ही उन्होंने ज्यादा बड़े शॉट लगाए। धोनी टीम के कप्तान थे वो चाहते तो बल्लेबाजी क्रम में खुद ऊपर खेलने आ सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि इसकी बजाय उन्होंने युवा खिलाड़ियों को अपनी स्किल दिखाने का ज्यादा मौका दिया। धोनी ने मैच फिनिशर की भूमिका ज्यादा निभाई वो आते थे और मुश्किल हालात से टीम को निकालकर मैच जितवाकर दम लेते थे। 199 वनडे मैचों में धोनी ने कप्तानी की है जिसमें से 15 बार वो खुद मैन ऑफ द् मैच रहे। अपनी कप्तानी में 15 दफा मैन ऑफ द् मैच का खिताब जीतने वाले वो चौथे खिलाड़ी हैं। ये उनकी गजब की प्रतिभा को दिखाता है। जब धोनी बल्लेबाजी के लिए क्रीज पर आते थे तो कुछ वक्त लेते थे लेकिन उसके बाद उनके हेलिकॉप्टर शॉट दर्शकों को दीवाना बना देते थे। अच्छे सा अच्छा गेंदबाज को भी धोनी के सामने गेंद करने में दिक्कत होती है। उनके अजीबोगरीब ताकतवर शॉट गेंद को मैदान के किसी भी कोने में पहुंचाने में सक्षम हैं। 3. गेंदबाजी में एक अलग तरह का बदलाव करना dhoni on field भले ही मैच में धोनी पर कितना भी दबाव क्यों ना रहा हो लेकिन अपने चेहरे के हावभाव से उन्होंने कभी इसे जाहिर नहीं होने दिया। हर परिस्थिति में धोनी कैप्टन कूल रहते थे, लेकिन अंदर ही अंदर उनका दिमाग कंप्यूटर की तरह काम करता था। धोनी ने कई मौकों पर गेंदबाजी में हैरान कर देने वाले बदलाव किए और उसका उन्हें पॉजिटिव रिजल्ट मिला। ये सिलसिला शुरु होता है 2007 में हुए पहले टी-20 वर्ल्ड कप से, जब धोनी पहली बार टीम के कप्तान बने थे। पहले टी-20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ लीग मैच में जब मुकाबल टाई हो गया तो फैसला बॉल आउट के आधार पर करने का निर्णय लिया गया। पाकिस्तानी टीम ने जहां अपने दिग्गज गेंदबाजों को स्टंप हिट करने की जिम्मेदारी दी तो वहीं इसके उलट धोनी ने सहवाग, उथप्पा और हरभजन सिंह से गेंदबाजी करवाई। इन तीनों ही खिलाड़ियों ने स्टंप को हिट किया जबकि पाकिस्तान का कोई भी गेंदबाज विकेट को छू तक नहीं सका। वहीं इसी टूर्नामेंट के फाइनल मुकाबले में उनके एक फैसले ने भारत को टी-20 वर्ल्ड कप का पहला चैंपियन बना दिया। फाइनल ओवर में जब पाकिस्तानी टीम को जीत के लिए 13 रन चाहिए थे धोनी ने अपने मुख्य गेंदबाजों की बजाय अनुभवहीन जोगिंदर शर्मा को गेंद थमा दी। धोनी की ये चाल कामयाब हो गई और भारतीय टीम ने मुकाबला जीत लिया। साल बीतते गए और धोनी अपने फैसलों से सबको इसी तरह चौंकाते गए। 2013 के आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भी धोनी की कप्तानी का एक जबरदस्त उदाहरण देखने को मिला जब इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल मुकाबले में महंगे साबित होने के बावजूद उन्होंने इशांत शर्मा को गेंद थमा दी। सबको लगा मैच हाथ से गया, लेकिन यही ओवर भारतीय टीम के लिए टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ। वहीं 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में अश्विन से नाजुक मौके पर गेंदबाजी करा उन्होंने सबको हैरान कर दिया। हाल ही में अपनी कप्तानी के आखिरी सीरीज में न्यूजीलैंड के खिलाफ जिस तरह से उन्होंने केदार जाधव का उपयोग किया वो काबिलेतारीफ था। धोनी ने जाधव पर भरोसा जताया और जाधव ने भी कीवी बल्लेबाजों को खूब परेशान किया। ये दिखाता है कि धोनी खुद पर और अपने खिलाड़ियों पर कितना विश्वास रखते हैं। ये एक बेहतर कप्तान की निशानी है। 2. हमेशा शांत रहना captain cool वर्ल्ड कप मुकाबले में भारत के खिलाफ मैच में मुश्फिकुर रहीम ने जैसे ही हार्दिक पांड्या की तीसरी गेंद पर चौका लगाया वो हवा में उछल पड़े, उन्हें लगा कि 2007 वर्ल्ड कप की तरह एक बार फिर बांग्लादेशी टीम भारत को हरा देगी। लेकिन धोनी इस नाजुक मौके पर बिल्कुल शांत रहे और उनका फोकस आखिर की 3 गेंदों पर था। स्टंप के पीछे खड़े धोनी का दिमाग कंप्यूटर की तरह काम कर रहा था। इसका रिजल्ट भी देखने को मिला जब 2 गेंदों पर भारतीय टीम ने 2 विकेट निकाल लिए, आखिरी गेंद पर बांग्लादेश को जीतने के लिए 2 रन चाहिए थे और विकेट के पीछे खड़े धोनी ने पहले से ही अपना दस्ताना निकाल लिया था कि अगर बल्लेबाज बिना गेंद को हिट किए ओवर थ्रो के रन भागे तो वे उसे आसानी से रन कर सकें। ठीक वैसा ही हुआ जैसा धोनी ने सोचा था, बल्लेबाज गेंद को हिट नहीं कर पाए लेकिन मैच टाई करने के लिए रन दौड़ पड़े। पर धोनी को तो मानो पहले से ही पता था कि ये होने वाला है जैसे ही गेंद उन्होंने कलेक्ट की वो स्ट्राइंकर एंड पर दौड़ पड़े और बल्लेबाज के क्रीज में पहुंचने से पहले ही विकेट की गिल्लियां बिखेर दी। बांग्लादेश को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके जबड़े में आ चुका मैच धोनी बहुत दूर निकाल कर ले जा चुके हैं। धोनी की खासियत ये थी कि वो मैच हार भी रहे होते थे तो भी एकदम शांत रहते थे। पिछले आईपीएल सीजन में राइजिंग पुणे सुपरजाएंट्स की कप्तानी करते हुए उनके सामने कई चुनौतियां आईं। टीम के कई अहम खिलाड़ी चोटिल हो गए, लेकिन इसके बावजूद धोनी शांत तरीके से अपना क्रिकेट खेलते रहे। दबाव को उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यही वजह रही कि किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ मैच में उन्होंने आखिरी ओवर में ताबड़तोड़ 23 रन जड़ डाले। 1. रिजल्ट देना dhoni with world cup धोनी भारत के अकेले ऐसे कप्तान हैं जिनके पास आईसीसी की हर बड़ी ट्रॉफी है। चाहे वो टी-20 वर्ल्ड कप हो, 50 ओवरों का वर्ल्ड कप हो या फिर आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी। वहीं उन्होंने आईपीएल में भी अपनी कप्तानी कई बार चेन्नई सुपर किंग्स को चैंपियन बनाया है। यही वजह है कि आज वो भारत के सबसे सफल कप्तान हैं। सचिन, गांगुली और अजहरुद्दीन की तुलना में कप्तान के तौर पर धोनी का वनडे मैचों में जीत प्रतिशत काफी ज्यादा है। धोनी के लिए ये सफर कतई आसान नहीं रहा। उन्हें एक युवा खिलाड़ियों से भरी एक अनुभवहीन टीम मिली थी जिसे उन्होंने तैयार किया और भारतीय टीम को बेहतर रिजल्ट दिए। 2007 की वर्ल्ड कप टीम के पास कोई अनुभव नहीं था फिर भी धोनी ने भारत को चैंपियन बनाया वहीं 2011 के वर्ल्ड कप में अनुभव और युवा खिलाड़ियों के मिश्रण से उन्होंने भारतीय टीम को कप दिलाया। वहीं आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स की कप्तानी करते हुए धोनी ने लगातार 2 बार टाइटल पर कब्जा जमाया। उन्होंने टीम में युवा खिलाड़ियों की अच्छी-खासी फौज तैयार कर दी। कुल मिलाकर कहें तो धोनी एक ऐसे कप्तान थे जो अपनी और अपनी टीम की किस्मत खुद लिखते थे। उनके जैसी लीडरशिप वाले कप्तान को भारतीय क्रिकेट हमेशा याद रखेगी।

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