भले ही मैच में धोनी पर कितना भी दबाव क्यों ना रहा हो लेकिन अपने चेहरे के हावभाव से उन्होंने कभी इसे जाहिर नहीं होने दिया। हर परिस्थिति में धोनी कैप्टन कूल रहते थे, लेकिन अंदर ही अंदर उनका दिमाग कंप्यूटर की तरह काम करता था। धोनी ने कई मौकों पर गेंदबाजी में हैरान कर देने वाले बदलाव किए और उसका उन्हें पॉजिटिव रिजल्ट मिला। ये सिलसिला शुरु होता है 2007 में हुए पहले टी-20 वर्ल्ड कप से, जब धोनी पहली बार टीम के कप्तान बने थे। पहले टी-20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ लीग मैच में जब मुकाबल टाई हो गया तो फैसला बॉल आउट के आधार पर करने का निर्णय लिया गया। पाकिस्तानी टीम ने जहां अपने दिग्गज गेंदबाजों को स्टंप हिट करने की जिम्मेदारी दी तो वहीं इसके उलट धोनी ने सहवाग, उथप्पा और हरभजन सिंह से गेंदबाजी करवाई। इन तीनों ही खिलाड़ियों ने स्टंप को हिट किया जबकि पाकिस्तान का कोई भी गेंदबाज विकेट को छू तक नहीं सका। वहीं इसी टूर्नामेंट के फाइनल मुकाबले में उनके एक फैसले ने भारत को टी-20 वर्ल्ड कप का पहला चैंपियन बना दिया। फाइनल ओवर में जब पाकिस्तानी टीम को जीत के लिए 13 रन चाहिए थे धोनी ने अपने मुख्य गेंदबाजों की बजाय अनुभवहीन जोगिंदर शर्मा को गेंद थमा दी। धोनी की ये चाल कामयाब हो गई और भारतीय टीम ने मुकाबला जीत लिया। साल बीतते गए और धोनी अपने फैसलों से सबको इसी तरह चौंकाते गए। 2013 के आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भी धोनी की कप्तानी का एक जबरदस्त उदाहरण देखने को मिला जब इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल मुकाबले में महंगे साबित होने के बावजूद उन्होंने इशांत शर्मा को गेंद थमा दी। सबको लगा मैच हाथ से गया, लेकिन यही ओवर भारतीय टीम के लिए टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ। वहीं 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में अश्विन से नाजुक मौके पर गेंदबाजी करा उन्होंने सबको हैरान कर दिया। हाल ही में अपनी कप्तानी के आखिरी सीरीज में न्यूजीलैंड के खिलाफ जिस तरह से उन्होंने केदार जाधव का उपयोग किया वो काबिलेतारीफ था। धोनी ने जाधव पर भरोसा जताया और जाधव ने भी कीवी बल्लेबाजों को खूब परेशान किया। ये दिखाता है कि धोनी खुद पर और अपने खिलाड़ियों पर कितना विश्वास रखते हैं। ये एक बेहतर कप्तान की निशानी है।