जैसा कि शुरु में ही बताया गया है आइए आपको बताते हैं कुछ डिस्क्लेमर डिस्क्लेमर 1 : पिछले कुछ सालों में अश्विन ने लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है । उन्होंने ना केवल भारत की पिचों पर बल्कि इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी अपने आपको साबित किया है । उनके रिकॉर्ड उनको महान खिलाड़ियों की सूची में खड़ा करते हैं और भारतीय टीम की कप्तानी के लिए भी एक बेहतर उम्मीदवार बनाती हैं। कोहली ने इंग्लैंड में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन किया है । डिस्क्लेमर 2 : इस आर्टिकल का मतलब ये नहीं है कि कोहली बेहतर कप्तान नहीं हैं । बल्कि हम सभी उनके बहुत बड़े प्रशंसक हैं और वो एक बेहतरीन कप्तान और खिलाड़ी हैं । एक कप्तान के तौर पर हम उनकी उपलब्धियों के बारे में जरुर लिखेंगे, लेकिन अभी बात अश्विन की । कहीं ना कहीं विराट कोहली की लाजवाब बल्लेबाजी उनकी कप्तानी की कमियों को छुपा लेती है । एक सच्चाई ये भी है कि कप्तानी के लिए गेंदबाजों को ज्यादा तरजीह नहीं दिया जाता है । बहुत से क्रिकेट प्रशंसकों को ये जानकार दुख होगा कि धोनी को अपने पूरे करियर में खेल को लंबा खींचने और अटैक ना करने के कारण कई बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और कुछ हद तक ये आलोचना सही भी थी । लेकिन कोहली इसके उलट हैं । वो युवा हैं, आक्रामक हैं और जोश उनके अंदर कूट-कूटकर भरा हुआ है । कहा ये भी जा रहा है कि स्टीव वॉ नहीं तो वो इंडिया के माइकल क्लार्क साबित हो सकते हैं । इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट के दूसरे दिन उनकी कप्तानी की कमियां उजागर हुईं । कोहली के बाद रविचंद्रन अश्विन कप्तानी के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं । क्यों ? आइए आपको बताते हैं इसके 5 कारण । 1. स्किल के अनुरुप प्रदर्शन करने की क्षमता कप्तानी के लिए सबसे जरुरी होता है आत्मविश्वास । ये एक कप्तान का सबसे बड़ा हथियार होता है । अगर कप्तान का प्रदर्शन अच्छा नहीं होता है तो उसकी कप्तानी भी प्रभावति होती है । इस परिप्रेक्ष्य में अगर देखें तो अश्विन, कोहली से ज्यादा बेहतर दिखते हैं । इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि अश्विन एक बेहतरीन ऑलराउंडर हैं और बल्लेबाजी में नंबर 6 पर प्रमोट करने के लिए उन्हें कोहली को धन्यवाद कहना चाहिए । अश्विन पिछले कुछ सालों से ना केवल भारत के सबसे सफल गेंदबाज हैं, बल्कि उन्होंने लगातार बल्लेबाजी भी अच्छी की है । इससे उन्हें काफी आत्मविश्वास मिलता है । हम इस बात से इंकार भी नहीं कर सकते हैं कि कोहली एक शानदार फील्डर हैं, और अश्विन की फील्डिंग उतनी अच्छी नहीं है । लेकिन एक खिलाड़ी के तौर पर खासकर मुश्किल हालात में अश्विन एक परिपक्कव खिलाड़ी की तरह प्रदर्शन करते हैं । वहीं कोहली ने पिछले 2 सालों से भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाए हैं । उन्होंने 60.11 की औसत से 2104 रन बनाए हैं । अश्विन भी इस लिस्ट में पीछे नहीं है । उन्होंने 31.66 की औसत से 855 रन बनाए हैं । वहीं गेंदबाजी में अश्विन ने 21.36 की औसत से 134 विकेट चटकाए हैं, जबकि 54 विकेटों के साथ जाडेजा दूसरे नंबर पर हैं । 2. क्रिकेट की अच्छी समझ क्या आपने कभी अश्विन का इंटरव्यू पढ़ा है ? अगर आपने उनका इंटरव्यू पढ़ा या देखा होगा तो आपको पता लग गया होगा कि अश्विन को क्रिकेट की कितनी अच्छी समझ है । अश्विन कभी भी बोरिंग इंटरव्यू नहीं देते और अपने इंटरव्यू में काफी रोचक और मजेदार बातें करते हैं । वो बहुत अच्छे से क्रिकेट की रणनीतियों और गेम प्लान के बारे में बात करते हैं । लेकिन आप सिर्फ ऐसे ही क्रिकेटर को कप्तान नहीं बनाते हैं जो बातें अच्छी करता हो । लेकिन अश्विन गेम के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं । अगर टीम का कप्तान बेहतर रणनीतिकार होता है तो टीम को बहुत ज्यादा सफलता मिलती है । वहीं दूसरी तरफ कोहली जब मीडिया का सामना करने की बारी होती है तो नहीं आते हैं । इसमें कोई शक नहीं कि कोहली ना केवल भारत बल्कि दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक हैं, लेकिन एक कप्तान के तौर पर वो कभी-कभी ही स्पष्ट बातें कह पाते हैं । अश्विन में द्रविड़ की झलक मिलती है जो अपने खेल के बारे में बहुत ही ज्यादा सोचते हैं । जबकि कोहली में तेंदुलकर की झलक मिलती है जो अपनी प्रतिभा को अभिव्यक्ति नहीं कर पाते हैं । 3. बहुत ही शांत खिलाड़ी कोहली में उल्लेखनीय रुप से एक विरोधाभास दिखता है । बिना किसी शक लक्ष्य का पीछा करने में उनका कोई सानी नहीं है । मुश्किल परिस्थितियों में हालात के विपरीत बल्लेबाजी करते हुए उन्होंने भारतीय टीम को कई मैच जिताए हैं । मतलब, बल्लेबाजी में तो कोहली लाजवाब हैं, लेकिन कप्तान के तौर पर वो अलग कोहली नजर आते हैं । आमतौर पर कप्तानी करते हुए वो बेचैन और जोश से भरे हुए नजर आते हैं । एक टीम के लिए सबसे बड़ी बात ये होती है कि उसका कप्तान अपने हाव-भाव से विरोधी टीम को ये ना पता चलने दे कि उसके मन में क्या चल रहा है । कोहली मैदान पर कुछ अच्छा होने पर बहुत ही ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं और बुरा होने पर उनके चेहरे पर शिकन आ जाती है । कप्तान की इस बेचैनी का प्रभाव कभी-कभी गेंदबाजों पर पड़ सकता है । वहीं दूसरी तरफ अश्विन हमेशा शांत रहते हैं, चाहे वो बैटिंग कर रहे हों या बॉलिंग । लेकिन वो कभी ज्यादा उत्तेजित नहीं होते हैं । कोहली ने पिछले कुछ सालों से काफी अच्छा प्रदर्शन किया है । लेकिन अपनी कप्तानी में उन्होंने जितने भी मैच जीते हैं उनमें से ज्यादातर मैचों में परिस्थितियां उनके अनुकूल रही हैं । जब परिस्थितियां कोहली के अनुकूल नहीं होती हैं तो उतना सफल नहीं हो पाते हैं और उन्हें ये कमी दूर करनी होगी । इसका सबसे अच्छा उदाहरण है डीआरएस के लिए कोहली का गेंदबाजों की तरफ देखना । कोहली बहुत कम अपने रिस्क पर डीआरएस लेते हैं और ज्यादातर अश्विन और जाडेजा के कहने पर ही वो इसके लिए अपील करते हैं । वो बहुत कम ही कीपर की सलाह लेते हैं जो कि डीआरएस लेने या ना लेने के फैसले के लिए सबसे अहम खिलाड़ी होता है । 4. रणनीति भारत-इंग्लैंड सीरीज के दौरान कोहली की कमजोर कप्तानी के ऊपर अक्सर कमेंटेटरों ने चर्चा की । जबकि दूसरी तरफ अश्विन बल्लेबाजों के खिलाफ एक प्लान के तहत गेंदबाजी करते हैं जिससे पता चलता है कि उनको गेम की कितनी समझ है । लेकिन कोहली मैच पर पकड़ ढीली कर देते हैं और जिस तरह के वो आक्रामक बल्लेबाज हैं ये देखकर सबको हैरानी होती है । कोहली हमेशा चढ़कर बल्लेबाजी करना पसंद करते हैं और गेंदबाजों पर हावी होने की कोशिश करते हैं । लेकिन ये बात उनकी कप्तानी में नजर नहीं आती । अपने आप को जमाने का प्रयास कर रहे बल्लेबाज के लिए लॉन्ग ऑन और डीप प्वॉइंड अच्छी कैचिंग पोजिशन नहीं है । खासकर के गली का एरिया जहां गेंद बहुत कम ही हवा में जाती है । आसान सिंगल और गेंदबाज के लय की परवाह किए बिना जल्दी-जल्दी गेंदबाजी में परिवर्तन उनकी कप्तानी की कमी को उजागर करता है । इंग्लैंड के साथ सीरीज में एक समय कोहली विवादस्पद रुप से कमजोर फील्डर रहे । अश्विन गेंदबाजी कर रहे थे और पुजारा मिड ऑन पर खड़े थे जो कि काफी अहम पोजिशन है । इस फील्ड पोजिशन को देखकर कमेंटेटरों की भी हंसी छूट गई । इस हिसाब से अश्विन उस विभाग में कुंबले की जगह ले सकते हैं । जो कि बल्लेबाज कप्तान से ज्यादा अच्छे से गेंदबाजों को समझता हो । इससे उन्हें अपने प्रयोग करने की आदत में भी मदद मिलेगी । 5. कोहली के जीनियस होने का खामियाजा जितने भी जीनियस खिलाड़ी हुए हैं , उनमें से ज्यादातर कप्तान अच्छे साबित नहीं हुए हैं । इसका सबसे उदाहरण हैं सचिन तेंदुलकर जो कि खिलाड़ी तो काफी महान थे, लेकिन कप्तानी में सौरव गांगुली उनसे ज्यादा बेहतर थे । कप्तानी के मामले में गांगुली भारत के भरोसेमंद खिलाड़ी राहुल द्रविड़ से भी आगे थे । ऐसा इसलिए क्योंकि कप्तानी का मतलब ये नहीं है कि आप कितने अच्छे बल्लेबाज या गेंदबाज हैं । बल्कि कप्तानी का मतलब होता है अपने खिलाड़ियों को अच्छे से समझना और उनसे बेहतर करवाना । तेंदुलकर के बचाव में हम इतना ही कह सकते हैं कि उस समय टीम कमजोर थी, लेकिन वो हमेशा दुविधा में रहते थे । हालांकि कोहली उस तरह नहीं हैं और अपनी टीम को साफ संदेश देते हैं, लेकिन उसी समय वो विरोधी बल्लेबाजों को भी बहुत ज्यादा तरजीह देने लगते हैं । जिस तरह से कोहली खुद बल्लेबाजी में असंभव सी लगने वाली चीज को संभव बना देते हैं, ऐसा उन्हें हर बल्लेबाज से उम्मीद नहीं रखना चाहिए । उनकी कप्तानी की बारे में ये भी कह सकते हैं कि वो अजीब सी फील्डिंग क्यों लगाते हैं । अक्सर कोहली जाडेजा के लिए मिडविकेट पर फील्डिंग लगाते हैं और अश्विन के लिए कवर पर । जबकि उनको बल्लेबाज को स्पिन खेलने के लिए मजबूर करना चाहिए । कोहली बेहद ही कलात्मक खिलाड़ी हैं और खुद को बहुत अच्छे से परिस्थितियों के हिसाब से ढाल लेते हैं । लेकिन कोई भी कप्तान अनावश्यक जगहों पर फील्डिंग लगाने के बजाय अटैकिंग पोजिशन पर अपनी फील्ड को सजाएगा । यहां पर फिर एक बार अश्विन बेहतर साबित होते हैं जो कि अटैक और डिफेंस में संतुलन बनाए रखते हैं ।