कोहली में उल्लेखनीय रुप से एक विरोधाभास दिखता है । बिना किसी शक लक्ष्य का पीछा करने में उनका कोई सानी नहीं है । मुश्किल परिस्थितियों में हालात के विपरीत बल्लेबाजी करते हुए उन्होंने भारतीय टीम को कई मैच जिताए हैं । मतलब, बल्लेबाजी में तो कोहली लाजवाब हैं, लेकिन कप्तान के तौर पर वो अलग कोहली नजर आते हैं । आमतौर पर कप्तानी करते हुए वो बेचैन और जोश से भरे हुए नजर आते हैं । एक टीम के लिए सबसे बड़ी बात ये होती है कि उसका कप्तान अपने हाव-भाव से विरोधी टीम को ये ना पता चलने दे कि उसके मन में क्या चल रहा है । कोहली मैदान पर कुछ अच्छा होने पर बहुत ही ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं और बुरा होने पर उनके चेहरे पर शिकन आ जाती है । कप्तान की इस बेचैनी का प्रभाव कभी-कभी गेंदबाजों पर पड़ सकता है । वहीं दूसरी तरफ अश्विन हमेशा शांत रहते हैं, चाहे वो बैटिंग कर रहे हों या बॉलिंग । लेकिन वो कभी ज्यादा उत्तेजित नहीं होते हैं । कोहली ने पिछले कुछ सालों से काफी अच्छा प्रदर्शन किया है । लेकिन अपनी कप्तानी में उन्होंने जितने भी मैच जीते हैं उनमें से ज्यादातर मैचों में परिस्थितियां उनके अनुकूल रही हैं । जब परिस्थितियां कोहली के अनुकूल नहीं होती हैं तो उतना सफल नहीं हो पाते हैं और उन्हें ये कमी दूर करनी होगी । इसका सबसे अच्छा उदाहरण है डीआरएस के लिए कोहली का गेंदबाजों की तरफ देखना । कोहली बहुत कम अपने रिस्क पर डीआरएस लेते हैं और ज्यादातर अश्विन और जाडेजा के कहने पर ही वो इसके लिए अपील करते हैं । वो बहुत कम ही कीपर की सलाह लेते हैं जो कि डीआरएस लेने या ना लेने के फैसले के लिए सबसे अहम खिलाड़ी होता है ।