हाल ही में समाप्त हुए भारत-श्रीलंका टेस्ट सीरिज में जिन दो खिलाड़ियों पर सबसे ज्यादा नजर थी, वे थे अभिनव मुकुंद और शिखर धवन। दोनों टेस्ट में वापसी कर रहें थे लेकिन दोनों का ही भविष्य निश्चित नहीं था। टीम इंडिया के दोनों नियमित ओपनर केएल राहुल और मुरली विजय खराब फॉर्म नहीं फिटनेस की वजह से टीम में नहीं थे और टीम में इनके वापसी के बाद अभिनव मुकुंद और शिखर धवन में से कम से कम किसी एक पर गांज गिरना निश्चित था। दूसरे टेस्ट के दौरान ऐसा हुआ भी जब केएल राहुल के फिट होने के बाद अभिनव मुकुंद को बाहर बैठना पड़ा। हालांकि मुकुंद ने पहले टेस्ट की दूसरी पारी में 81 रनों की शानदार पारी खेली थी, लेकिन तब भी वह टीम में अपनी जगह बरकरार नहीं रख पाए। संभव है कि जब चयनकर्ता अगले टेस्ट सीरिज के लिए टीम का चयन करें तो उसमें मुकुंद का नाम न हो। हालांकि इस बाएं हाथ के इस बल्लेबाज में काफी क्षमता है और घरेलू सीजन में उनके प्रदर्शन से उनकी बल्लेबाजी कौशल का भी पता चलता है। लेकिन इस खब्बू बल्लेबाज का अंतर्राष्ट्रीय कैरियर अब अधर में है। यहां हम ऐसे ही पांच कारणों पर चर्चा करेंगे जो बताते हैं कि अभिनव मुकुंद का अंतर्राष्ट्रीय कैरियर अब लगभग खत्म हो चुका है- #5 शिखर धवन की फॉर्म में वापसी श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज की शुरुआत से पहले, अभिनव मुकुंद सलामी बल्लेबाजी के लिए पहले विकल्प थे। शिखर धवन को तो दूसरे विकल्प के रूप में टीम में जगह मिली थी। लेकिन वायरल बुखार की वजह से केएल राहुल पहले टेस्ट से बाहर हो गए और शिखर धवन को उनकी जगह टीम में शामिल किया गया। धवन ने भी इस मौके को भरपूर भुनाया और पहली पारी में शतक ठोंक न केवल टीम में अपनी जगह मजबूत की बल्कि मुकुंद के टेस्ट टीम के दावे को भी पीछे ढकेल दिया। गॉल टेस्ट में धवन की आक्रामक 190 रन की पारी ने भारत की जीत की नींव तैयार की और अगले टेस्ट में धवन की जगह भी पक्की हो गई। हालांकि मुकुंद ने दूसरी पारी में अर्धशतक बनाया लेकिन उस समय तक धवन उनसे काफी आगे निकल चुके थे। धवन के इस वापसी का मतलब है कि टेस्ट ओपनर के लिए अब भारत के पास मुकुंद से पहले भी तीन विकल्प हैं। पिछले कुछ सालों के शानदार रिकॉर्ड ने मुरली विजय को भारत का फर्स्ट च्वॉइस सलामी बल्लेबाज बना दिया है और इसलिए फिट होने के बाद उनकी वापसी लगभग तय है। वहीं केएल राहुल ने पिछले सात टेस्ट पारियों में लगातार सात अर्धशतक बनाए हैं और इस निरंतरता के कारण वह विजय के एक स्वाभाविक साथी के रूप में उभरते हैं। हालांकि अब तक अभिनव मुकुंद को सलामी बल्लेबाजों के पहले विकल्प के रूप में भारत की टेस्ट टीम में शामिल किया गया था लेकिन धवन के सनसनीखेज वापसी ने उनसे यह जगह छीन ली है। अब मुकुंद के लिए चीजें बेहद मुश्किल हो गई हैं और संभवतः अगले टेस्ट सीरिज के दौरान वह भारतीय टीम में ना नजर आए। #4 आगामी कठिन विदेशी दौरे लंबे घरेलू सीजन का आनंद लेने के बाद टीम इंडिया को अब अगले कुछ टेस्ट सीरीज विदेशी जमीन पर खेलने हैं। 2018 की शुरूआत में भारत टेस्ट सीरीज खेलने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाएगा। उसके बाद उसे इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का भी दौरा करना है। इन देशों के पिच में अतिरिक्त तेजी, अतिरिक्त स्विंग और अतिरिक्त उछाल होता है और किसी भी ओपनर के लिए यहां पर नई गेंद का सामना करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे हालात में खेलते समय, भारत को एक ऐसे सलामी बल्लेबाज की जरुरत होगी, जो अपने मजबूत डिफेंस और टेम्परामेंट के मदद से नए गेंद को पुराना करे और आसानी से विकेट नहीं गवाए। इसके विपरीत स्विंग गेंदबाजों के सामने मुकुंद का रिकॉर्ड काफी खराब रहा है। पिछले इंग्लैंड दौरे में मुकुंद ने तेज गेंदबाजों के सामने सरेंडर ही कर दिया था। हालांकि, हाल के दिनों में मुकुंद ने इसमें सुधार करने की कोशिश की है लेकिन यह कमी अभी भी उनके बल्लेबाजी में साफ झलकती है। इसलिए ऐसे परिस्थितियों में टीम प्रबंधन टीम मुकुंद को शामिल करने का जोखिम नहीं ले सकती। #3 घरेलू क्रिकेट में युवा प्रतिभाशाली बल्लेबाजों का उम्दा प्रदर्शन अभिनव मुकुंद ने 2016 के रणजी ट्रॉफी के 14 परियों में 65.30 के औसत से 849 रन बनाया था, जिसमें चार शतक शामिल था। इसी प्रदर्शन की बदौलत मुकुंद की टीम इंडिया में वापसी हुई थी। मुकुंद के आंकड़े बेहद प्रभावशाली थे, लेकिन इसी सत्र में गुजरात के प्रियंक पांचाल ने 17 पारियों में 87.33 के औसत से 1310 रन बनाए। पांचाल ने इस दौरान पांच शानदार शतक भी जड़ा। झारखंड के ईशान किशन ने भी 16 पारियों में 57.07 की औसत से 799 रन बनाए, जिसमें तीन शतक शामिल थे। पांचाल और किशन मुकुंद की तुलना में अभी युवा हैं और उनके इस प्रदर्शन ने चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है। रणजी सीजन में उनके इस शानदार प्रदर्शन का इनाम भी उन्हें मिला जब इन दोनों खिलाड़ियों को ऑस्ट्रेलिया जाने वाली इंडिया ए की टीम में शामिल किया गया। इसके अलावा कई अन्य युवा सलामी बल्लेबाज भी हैं जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में शानदार बल्लेबाजी कर टीम में अपना दावा पेश किया है और उनकी युवावस्था इन्हें मुकुंद के ऊपर एक बढ़त दिलाती है। इसलिए कहा जा सकता है कि किसी युवा को मौका देने के लिए भविष्य में चयनकर्ता मुकुंद को नजरंदाज कर सकते हैं। #2 मिले मौकों को ना भुना पाना अभिनव मुकुंद ने 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना पहला खेला था और दोनों पारियों में क्रमश: 11 और 25 रन बनाए थे। उनका पहला टेस्ट अर्धशतक पांचवें टेस्ट की पहली पारी में आया था और फिर अगले पारी में वह गोल्डेन डक पर ऑउट हो गए। इंग्लैंड के अपने दूसरे दौरे में उन्होंने चार पारियों में सिर्फ 64 रन बनाए और उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। उन्होंने छह साल बाद जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट टीम में वापसी की, तो फिर से वह असफल रहें और पहली ही पारी में शून्य पर ऑउट हो गए। तमिलनाडु के इस सलामी बल्लेबाज ने सात वर्षों के अपने लम्बे कैरियर में दो अर्धशतको की मदद से 320 रन बनाए हैं। इस दौरान उनका औसत केवल 22.85 का रहा। ऐसी खराब वापसी किसी भी अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी का कैरियर समाप्त कर सकती है। #1 बेहद रक्षात्मक बैटिंग शैली मुकुंद एक पारंपरिक शैली के सलामी बल्लेबाज हैं, जो रक्षात्मक शैली में बल्लेबाजी करते हैं। पेशेंस और डिफेंस इनकी दो प्रमुख खासियत है। बाएं हाथ का यह बल्लेबाज आम तौर पर गेंदबाजों के गलती करने का इंतजार करता है और खराब गेंदो पर ही रन बनाता है। मुकुंद ऐसे बल्लेबाज नहीं है जो आक्रामक बल्लेबाजी कर अच्छे गेंदों को भी सीमा पार भेज दें। उनकी रक्षात्मक बल्लेबाजी भी एक कारण है जिसके कारण वह टेस्ट टीम से बाहर हो सकते हैं। वर्तमान समय में टेस्ट क्रिकेट लगातार बदल रहा है। अब टीमों का लक्ष्य सिर्फ रन बनाना ही नहीं तेजी से रन बनाना होता हे ताकि उनके गेंदबाजों को 20 विकेट लेने का पर्याप्त समय मिल सके। आक्रमकता और तेजी अब टेस्ट क्रिकेट की नई आवश्यकता है और अधिकांश खिलाड़ियों ने इस आवश्यकता के अनुसार अपने खेल को ढाल लिया है। चेतेश्वर पुजारा इसके प्रमुख उदहारण हैं, जिन्होंने टीम से बाहर होने के बाद अपने शैली में सुधार किया है और अब वह तेजी से रन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि मुकुंद अभी भी अपने पुराने अप्रोच से ही खेल रहे हैं। 14 टेस्ट पारियों में सिर्फ चार मौकों पर उनका स्ट्राइक रेट 50 से अधिक रहा है। उनका कैरियर स्ट्राइक रेट 45.71 है, जो आधुनिक टेस्ट क्रिकेट के मुकाबले कम माना जा सकता है और यह उनके लिए अब सबसे बड़ी बाधा बन सकता है। भारत के कप्तान विराट कोहली को उनकी आक्रामकता के लिए जाना जाता है और इसलिए वह मुकुंद की जगह किसी बेहतर स्ट्राइक रेट वाले बल्लेबाज को मौका देना अधिक बेहतर समझेंगे। लेखक: सब्यसाची चौधरी अनुवादक: सागर