क्रिकेट में टेस्ट क्रिकेट का इतिहास काफी पुराना है। क्रिकेट इतिहास को टेस्ट क्रिकेट के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन आज टेस्ट क्रिकेट को लेकर लोगों में उत्साह की कमी देखने को मिल रही है। ऐसे में क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था और बोर्ड भी टेस्ट क्रिकेट को बचाने में लगी हुई है। सीमित ओवरों के बढ़ते चलन के कारण टेस्ट क्रिकेट अपनी चमक खोता जा रहा है। खासकर फटाफट क्रिकेट फॉर्मेट टी20 आ जाने के बाद तो टेस्ट क्रिकेट के दर्शकों में और ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। टी20 क्रिकेट के लिए लगातार बढ़ती दिलचस्पी के कारण टेस्ट क्रिकेट देखने में लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है। हालांकि अब टेस्ट क्रिकेट को बचाने और इसके लिए रुझान पैदा करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जाने जरूरी है। इनमें से दो टेस्ट मैचों की सीरीज कराने के कॉन्सेप्ट को भी खत्म किए जाने की जरूरत है। इसकी बजाय लंबी टेस्ट सीरीज कराने से लोगों के लिए बेहतर अनुभव मुहैया करवाया जा सकता है। दो-मैचों की टेस्ट सीरीज किसी को खेलने या देखने के लिए भी अच्छी नहीं लगती है। आइए यहां जानते हैं उन पांच कारणों को जिसके चलते दो देशों के बीच दो टेस्ट मैचों की सीरीज नहीं करवानी चाहिए...
कोई स्पष्ट विजेता नहीं
द्विपक्षीय सीरीज में ये बात काफी मायने रखती है कि कौनसी टीम ने शानदार प्रदर्शन किया है। आखिर में इसका खुलासा हो जाए। अगर दो टीमों के बीच सिर्फ दो टेस्ट मैच करवाए जाते हैं तो बेस्ट टीम की पहचना करने की संभावनाएं घट जाती है। दो टेस्ट मैच करवाने से जरूरी नहीं की आखिर में कोई स्पष्ट विजेता सामने आ ही जाए। दो टेस्ट मैच खत्म होने के बाद अगर दोनों टीमें एक-एक जीत के साथ सीरीज का अंत करती है तो इससे दर्शकों के उत्साह में कमी देखने को मिलेगी ही। इससे खेल में मौजूद रोमांच भी कम होगा और टेस्ट के प्रति लोगों का झुकाव भी कम देखने को मिलेगा। हाल ही में इंग्लैंड-पाकिस्तान के बीच भी कुछ ऊबाउ नजारा देखने को मिला। जहां दो टेस्ट मैचों की सीरीज में पहले टेस्ट मैच में पाकिस्तान ने जबरदस्त टक्कर देते हुए मैच को जीत लिया लेकिन दूसरे ही टेस्ट मैच में इंग्लैंड ने हिसाब चुकता करते हुए सीरीज को 1-1 की बराबरी पर खत्म कर दिया। ऐसे में किसी स्पष्ट विजेता के न होने के कारण इसमें दिलचस्पी भी घटती है।
बेहतर टीम को लेकर कोई स्पष्टता नहीं
दो टेस्ट मैच की सीरीज करवाने से ये स्पष्ट नहीं हो पाता कि दोनों टीमों में से बेहतर टीम कौनसी है। दो मैचों की सीरीज के मामले में यह कहना मुश्किल है कि कौन सी टीम ने मैदान पर परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सही खेल दिखाया है। अक्सर घरेलू टीम परिस्थितियों से परिचित होती है लेकिन दो टेस्ट मैचों की सीरीज में इसको लेकर भी संदेह हो जाता है कि बाहरी टीम दूसरी परिस्थितियों में बेहतर खेल दिखा रही है या नहीं। दो टेस्ट मैचों की सीरीज के कारण किसी टीम के लिए स्थितियां किस कदर विपरित और अनुकूल रहती है, इसको लेकर भी अंदेशा रहता है।
दर्शकों का दृष्टिकोण
किसी भी मुकाबले में दर्शकों को रोके रखने के लिए रोमांच और उत्साह बेहद जरूरी है। ऐसे में मैदान पर खेल में रोमांच होना बेहद जरूरी है लेकिन दो टेस्ट मैचों की सीरीज में ये रोमांच कहीं देखने को नहीं मिलता है। किसी खेल में दर्शकों का दृष्टिकोण भी बेहद मायने रखते है। दो टेस्ट मैचों की सीरीज कब शुरू होती है और कब खत्म हो जाती है, इसका कुछ खास पता भी नहीं चल पाता। ऐसे में दर्शक भी दो टेस्ट मैचों की सीरीज को लेकर कम उत्साही नजर आते हैं। सीरीज अगर लंबी होगी तो उत्साह भी उतना ही ज्यादा बढ़ता हुआ दिखाई देगा। ऐसे में दर्शकों का दृष्टिकोण भी बेहद मायने रखता है।
बताने लायक कोई अच्छी कहानियां नहीं
एक पूर्ण श्रृंखला न केवल देखने के लिए अच्छा क्रिकेट उपलब्ध करवाती है बल्कि आने वाले सालों में यादों और अनुभवों के तौर पर भी याद की जाती है। एक बड़ी और लंबी सीरीज अपने साथ खिलाड़ियों के लिए और दर्शकों के लिए एक बेहतर याद छोड़ जाती है। वहीं एक लंबी सीरीज में कई रिकॉर्ड भी बनते और टूटते देखे जा सकते हैं। ऐसे में दो टेस्ट मैचों की सीरीज में कुछ याद करने लायक पल आए, इसको लेकर भी संशय की स्थिति बनी रहती है।
खिलाड़ियों के लिए लाभ
टेस्ट क्रिकेट में एक लंबी सीरीज खिलाड़ी को परखने का सबसे बढ़िया माध्यम साबित होती है। खिलाड़ी कितना स्थिर होकर बल्लेबाजी कर सकता है यह छोटी सीरीज में पता करना पाना बेहत मुश्किल होता है। लंबी सीरीज के माध्यम से खिलाड़ियों के प्रदर्शन आंका जा सकता है और मैदान पर उनकी सहजता को परखा जा सकता है। खिलाड़ी निरंतर खेलो में कैसा प्रदर्शन कर रहा है इसका आंकलने करने के लिए भी लंबी सीरीज काफी मायने रखती है। वहीं दो टेस्ट मैचों की सीरीज में खिलाड़ी की स्थिरता का आंकलन करना बेहद मुश्किल हो जाता है। खिलाड़ी निरंतर कैसा प्रदर्शन कर रहा है, इसके लिए छोटी सीरीज कम रह जाती है। लेखक: शंकर नारायण अनुवादक: हिमांशु कोठारी