5 कारण जिससे ज़हीर खान भारतीय गेंदबाजी को और मजबूत बना सकते हैं

दुनिया में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिनके चरित्र में ही काबिलियत समाहित होती है। परिस्थितियां कैसी भी क्यों न हों उनके पास कोई न कोई समाधान जरुर निकल आता है। वह आपकी हर मौके पर मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। उनकी ये खासियत लोगों को आकर्षित करती है। साल 2003 से लेकर 2013 तक ज़हीर भारत के शीर्ष गेंदबाज़ रहे। विकेट की जरूरत होती थी, कप्तान गेंद ज़हीर को थमा देता था। किस बल्लेबाज़ को कहाँ गेंद करनी है, ज़हीर सलाह देते थे। विपक्षी टीम को पेस दिखाना हो आप गेंद जहीर को दे दो। वहीं राहुल द्रविड़ को भारतीय बल्लेबाज़ी की दीवार माना जाता था। टेस्ट में वह विपक्षी टीमों के लिए सरदर्द बन जाया करते थे। ज़हीर ने साल 2011 के वर्ल्डकप अपनी गेंदबाज़ी से भारतीय टीम को विश्वविजेता बनने में अहम योगदान निभाया था। वहीं अब उन्हें भारतीय टीम का गेंदबाज़ी कोच नियुक्त किया गया है। उनके आने से क्या फायदा होगा,पढ़ें ये खास लेख: अमूल्य अनुभव जहीर भारत के लिए तीन विश्वकप खेल चुके हैं, जिसमें दो विश्वकप में भारत फाइनल तक पहुंचा है। इसके अलावा जहीर खान टीम के अंतिम एकादश में खेले हैं। साल 2003 व 2011 में जहीर खान ने भारत के लिए शानदार गेंदबाज़ी भी की थी। 2003 के संस्करण में जहीर ने 11 मैचों में 18 विकेट लिए थे। भारत उन्हीं दो मुकाबलों में हारा जब जहीर को विकेट नहीं मिला। उनका औसत इस दौरान 20.77 का रहा। दिग्गज जवागल श्रीनाथ भी उनसे पीछे रहे थे। साल 2011 में जब भारत विश्व विजेता बना तो ज़हीर खान ने सबसे ज्यादा विकेट चटकाए थे। 9 मैचों में ज़हीर को 21 मिले थे। कुल मिलाकर ज़हीर वर्ल्डकप में भारत के सबसे सफल गेंदबाज़ रहे और उनके नाम 23 मैचों में 44 विकेट दर्ज हैं। ज़हीर ने काउंटी क्रिकेट खेलकर खुद को एक बेहतरीन गेंदबाज़ बनाया था। मौजूदा समय में वह भारत के सबसे अनुभवी गेंदबाज़ हैं। जिनसे भावी पीढ़ी काफी कुछ सीख सकती है। पूर्व गेंदबाज़ी कोच जोए डावेस ने ज़हीर की तारीफ की है और उन्हें भारत के सबसे बेहतरीन गेंदबाज़ बताया है। सीखाने की प्रवृति ज़हीर खान नेचुरल टैलेंटेड गेंदबाज़ रहे हैं, जिसमें किसी को कोई शक नहीं है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में ज़हीर खान ने खुद स्वीकार किया था, “भारत में तेज गेंदबाज़ी का ढांचा अच्छा नहीं है, लेकिन ये भारत से बाहर भी बिलकुल अलग नहीं है। बुनियादी तौर पर आपको अपनी कला को पहचानने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय खुद को देना होगा और कठिन मेहनत करके अपनी कमियों को ठीक करना होगा। कुल मिलाकर ये पेशा कठिन मेहनत करने का है।” साल 2003 के वर्ल्डकप के बाद ज़हीर खान के प्रदर्शन में भारी गिरावट दर्ज हुई, जिसकी वजह से उन्हें सी-ग्रेड के कॉन्ट्रैक्ट में डाल दिया गया। लेकिन जहीर ने हार न मानते हुए कठिन मेहनत को चुना। साल 2006 उनके करियर का सबसे अहम साल साबित हुआ। ज़हीर ने अपना बैग पैक किया और काउंटी क्रिकेट खेलने चले गये जहां उन्होंने वॉर्कशायर की तरफ से खेलते हुए 78 विकेट लिए। जिसके बाद उनकी टीम में वापसी हुई। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास बन गया, ज़हीर ने शानदार खेल दिखाते हुए लम्बे समय तक भारतीय क्रिकेट की सेवा की। ऐसे में अब इस दिग्गज की मदद से जसप्रीत बुमराह और भुवनेश्वर कुमार जैसे गेंदबाजों की प्रतिभा को और निखारा जा सकता है। ज़हीर गेंदबाजों को मानसिक रूप से तैयार कर सकते हैं जब टीम संकट में होती थी, ज़हीर खान भारतीय टीम में आशा का संचार करते थे। वह चाहे गांगुली का दौर रह हो या धोनी का वह शर्लाक होम्स के कप्तान के जॉन वाटसन रहे हैं। वह विकेट ही नहीं लेते थे, जरुरी समय पर आकर वह विपक्षी टीम पर दबाव भी बनाते थे। अगर आप भारत और इंग्लैंड के बीच साल 2011 के विश्व कप के मुकाबले पर नजर डालें तो आपको अंदाजा लग जायेगा। जिस एंड्रू स्ट्रास अपनी टीम को जीत को ओर अग्रसर करवा रहे थे। उस समय ज़हीर ने आकर 158 पर खेल रहे स्ट्रास को आउट किया था। ज़हीर को पैरों में पड़ती हुई उस यॉर्कर गेंद ने पूरे मैच का पासा पलट दिया था। जिसमें लेट स्विंग का मिश्रण भी था। जिससे भारत इस मुकाबले को टाई कराने में सफल रहा था। ज़हीर विकेट-मशीन नहीं थे। लेकिन वह मौके पर विकेट लेकर टीम को जीत दिलाने में अहम योगदान देते थे। वहीं जब हम ज़हीर की व्यक्तिगत भावभंगिमा की बात करते हैं, तो वह हमेशा चुनौतियों के लिए तैयार रहते थे। जब टीम से बाहर हुए थे, तब भी उन्होंने हार न मानते हुए दोबारा जोरदार वापसी की। एक तेज गेंदबाज़ के लिए चोटिल होना आम बात है। ऐसे में ज़हीर गेंदबाजों चोट से बचने के उपाय भी बताते रहेंगे। रिवर्स स्विंग की बारीकी सिखा सकते हैं ज़हीर खान को रिवर्स स्विंग का बादशाह माना जाता है, वह एक ऐसे तेज गेंदबाज़ रहे हैं, जिसने हर मैच में अपना प्रभाव छोड़ा है। मैच में जब गेंद की चमक चली जाती थी, तब भी जहीर उसका बेहतरीन इस्तेमाल करते थे। ट्रेंटब्रिज में जहीर ने 2007 में कमाल का प्रदर्शन करते हुए अपनी इसका कला बेहतरीन नमूना पेश किया था। यही नहीं इंग्लैंड के सबसे सफल तेज गेंदबाज़ जेम्स एंडरसन ने भी रिवर्स की इस कला को जहीर से ही सीखा था। जेम्स ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था कि उन्होंने गेंद को रिवर्स स्विंग करने की कला जहीर से सीखी थी। ऐसे में ये बात अहम हो जाती कि अगर जेम्स एंडरसन जहीर से इस कला को सीख सकते हैं, तो फिर भारतीय गेंदबाज़ क्यों पीछे रहें। ऐसे में बुमराह और भुवी को ज़हीर से काफी फायदा मिलने वाला है। बेहतरीन कम्युनिकेशन से खेल को अच्छे से विश्लेषित कर सकते हैं आज अगर हम आरपी सिंह, मुनाफ पटेल या श्रीसंत से पूंछे की उनके स्पेल के दौरान उनकी सबसे ज्यादा मदद की है। तो उनके जवाब में ज़हीर खान का नाम सबसे ऊपर होगा। विश्वकप विजेता टीम के हिस्सा रहे इस गेंदबाज़ को नये खिलाड़ियों को ग्रूम करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। इसका पहला कारण ज़हीर का व्यवहार है, उन्होंने अपने खेलने के दिनों में सभी गेंदबाजों आगे बढ़कर मदद की। दूसरा ज़हीर टीम में गेंदबाजों के कप्तान हुआ करते थे। जिससे उन्हें टीम की गेंदबाज़ी की मजबूत कड़ी की बढ़िया से जानकारी होती थी। इन सब में उनकी कम्युनिकेशन स्किल का अहम योगदान है। जब जहीर मौजूद युवा टीम के गेंदबाजों से मिलेंगे तो वह जल्द ही उनकी कमजोरी और ताकत को समझ जाएंगे। उसके बाद समस्याओं को बेहतरीन तरीके से बातचीत करके उन्हें सुलझा वह सकते हैं। जिसका फायदा टीम को होगा। लेखक- उमीद डे, अनुवादक- जितेन्द्र तिवारी