खेल के रोमांच को जिंदा रखने के लिए आईसीसी ने कई नए नियम बनाए हैं। क्रिकेट में हो रहे बदलाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। क्रिकेट आज के दौर में सिर्फ़ एक खेल नहीं बल्कि एक ब्रैंड से कम नहीं है। इसलिए ज़रुरत के हिसाब से इसमें बदलाव करना बेहद ज़रुरी हो जाता है। साल 2008 में इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत हुई थी। इसके बाद से क्रिकेट की परिभाषा पूरी तरह बदल गई । क्रिकेट अब जेंटलमैन गेम न रह कर एक आक्रामक खेल बन गया। हम यहां ऐसे 5 नियम के बारे में बता रहे हैं जो आईपीएल की शुरुआत होने के बाद बदले गए हैं।
#5 रनर के नियम को ख़त्म करना
क़रीब 200 साल तक क्रिकेट में किसी मैच के दौरान बल्लेबाज़ के चोटिल होने पर एक रनर को दौड़ने के लिए पिच पर लाया जाता था। साल 2011 में इस नियम को ख़त्म कर दिया गया क्योंकि कई खिलाड़ी चोट का बहाना बनाकर इस नियम का फ़ायदा उठाना चाहते थे, लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर पाएंगे। इस नए नियम का काफ़ी विरोध भी हुआ था हांलाकि ऑस्ट्रेलिया के तात्कालिक कप्तान माइकल क्लार्क ने इस बदलाव का समर्थन किया था। अगर पिच पर कोई बल्लेबाज़ चोटिल हो जाता है तब किसी भी रनर की मदद नहीं ले सकता है।
#4 दोनों छोर से 2 अलग-अलग सफ़ेद गेंद का इस्तेमाल
क्रिकेट में रोमांच पैदा करने के लिए आईसीसी ने वनडे में दोनों छोर से 2 अलग-अलग सफ़ेद गेंद का इस्तेमाल किए जाने की अनुमति दे दी है। हांलाकि ये तरीका नया नहीं है वर्ल्ड कप 1992 में भी ऐसा किया गया था। साल 2011 में इस नियम को दोबारा क्रिकेट में शामिल किया गया ताकि गेंदबाज़ों को नई गेंदों से लंबे समय तक स्विंग करने का मौक़ा मिले। इसके अलावा इस नियम की वजह से बल्लेबाज़ों को गेंद को देखने में काफ़ी मदद मिलते हैं। इससे पहले गेंद के घिस जाने पर वो ठीक से नज़र नहीं आती थी। हांलाकि रिवर्स स्विंग के नियमों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अब गेंदबाज़ों को पारंपरिक स्विंग गेंदबाज़ी करने के लिए 2 अलग-अलग गेंदों का इस्तेमाल करना होता है।
#3 डिसीज़न रिव्यू सिस्टम
डीआरएस का नियम इसलिए शुरु किया गया था ताकि तकनीक की मदद से सही फ़ैसला लिया जा सके। सबसे पहले इस नियम का इस्तेमाल साल 2008 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए टेस्ट सीरीज़ में किया गया था। हांलाकि बीसीसीआई ने पूरी तरह इस नियम को सबसे आख़िर में अपनाया था। इस नियम ने क्रिकेट की दुनिया में क्रांति पैदा कर दी है। इस नियम के बाद कैमरा की नज़र से बच पाना नामुमकिन होता है। इस नियम के ज़रिए टेलीविज़न रिप्ले में हर बॉल को ट्रैक किया जाता है और ये देखा जाता है कि बल्लेबाज़ को आउट या नॉट आउट घोषित करने में कोई ग़लती हुई है या नहीं। तकनीक के सहारे माइक्रोफ़ोन की मदद ली जाती है, इसमें लगे स्निकोमीटर और अलट्रेज सिस्टम के ज़रिए तय किया जाता है कि गेंद बैट या स्टंप पर लगी है या नहीं। हांलाकि इस नए नियम में भी काफ़ी बदलाव किए गए हैं। इस नियम की वजह से ग़लती की गुंजाइश लगभग ख़त्म हो गई है। साल 2018 के आईपीएल में भी इस नियम की मदद ली जाएगी।
#2 वनडे में पॉवर प्ले का नियम
साल 2011 में आईसीसी ने 16वें और 40वें ओवर में बॉलिंग और बैटिंग पॉवर प्ले के नियम को लागू किया था। हांलाकि इस नियम की वजह से बल्लेबाज़ों को ज़्यादा रन बनाने में मदद मिल रही थी, ऐसे में आईसीसी ने इस नियम में दोबारा परिवर्तन किया था। पहले 10 ओवर तक 30 यार्ड के घेरे में सिर्फ़ 2 फ़ील्डर ही मौजूद रहते थे। गेंदबाज़ों को मदद पहुंचाने के लिए आख़िरी 10 ओवर में बाउंड्री पर 5 फ़ील्डर लगाने का नियम बनाए गए हैं।
#1 बुरे व्यवहार के लिए रेड कार्ड
मार्च 2017 में आईसीसी ने फ़ील्ड अंपायर को ये इजाज़त दी कि अगर कोई खिलाड़ी मैदान में बेहद बुरा व्यवहार करता है तो उसे मैदान से बाहर किया जा सकता है। एमसीसी के प्रमुख जॉन स्टीफेंसन में कहा था कि “हमें महसूस होने लगा कि अब ऐसा वक़्त आ गया है कि हम ख़राब बर्ताव के लिए खिलाड़ियों पर सख़्ती से पेश आया जाए, क्योंकि कई अंपायर ने इस वजह से अंपायरिंग छोड़ चुके हैं”। स्टीफेंसन ने नए नियम के बारे में ये भी कहा है कि इससे मैदान में अनुशासन को बरक़रार रखने में मदद मिलती है। इस नियम की वजह से खिलाड़ियों के व्यवहार में काफ़ी बदलाव आया है और उनमें रेड कार्ड का ख़ौफ़ बना रहता है। लेखक- तान्या रूद्र अनुवादक – शारिक़ुल होदा